अल नीनो से खेती-बारी होगी प्रभावित! किसान यहां समझें लोन चुकाने को लेकर अपने अधिकार

अल नीनो से खेती-बारी होगी प्रभावित! किसान यहां समझें लोन चुकाने को लेकर अपने अधिकार
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नई दिल्ली। अल नीनो का असर किसानों पर साफ दिखने वाला है। सालाना खाद्य आपूर्ति में धान, दलहन, कपास, तिलहन, गन्ना आदि जैसे खरीफ फसलों का योगदान प्रभावित हो सकता है। ये सभी फसले वर्षा पर निर्भर हैं,लेकिन अल नीनो के कारण मानसून देर से आने की आशंका है।

अल नीनो के आने से क्या होगा?
दुनिया के किसी एक हिस्से में समुद्र के औसत तापमान की तुलना में ज्यादा गर्मी या ज्यादा ठंड पड़ने से दुनिया भर का मौसम प्रभावित हो सकता है। इसका मतलब है कि प्रशांत महासागर में तापमान बढ़ने से भारत में भी मौसम पर प्रभाव पड़ सकता है।

अल नीनो के कारण मानसून आने में क्यों होती है देरी
प्रशांत महासागर में जब भूमध्य रेखा के समानांतर पूर्वी हवा बहती है और दक्षिण अमेरिका से गर्म हवा एशिया की ओर लेकर आती है तब मानसून सीजन के दौरान भारत में कुल वर्षा की 70 फीसदी बरसात होती है। यह अल नीनो के कारण प्रभावित हो सकता है। मानसून आने में इसी कारण देरी होती है।

भारत की जीडीपी पर भी होगा असर
भारतीय मौसम विभाग ने इस बार के मानसून के दौरान अल नीनो के विकसित होने के करीब 70 फीसदी संभावना का पूर्वानुमान किया है। अगर ये सच होती है तो कृषि सेक्टर पूरी तरह से प्रभावित हो सकता है। यह सेक्टर सकल जीडीपी में 16 फीसदी योगदान करता है और भारतीय आबादी के 52 फीसदी को रोजगार देता है।

अल नीनो कृषि को कैसे प्रभावित करता है?
कृषि देश में कुल बुवाई का लगभग आधा क्षेत्र सिंचाई की सुलभता से वंचित और पूरी तरह वर्षा पर निर्भर है। 91 प्राकृतिक जलाशय, जो बिजली पैदा करते हैं, कारखानों की पानी की ज़रूरत पूरी करते हैं और पेय जल उपलब्ध कराते हैं। यह मानसून पर निर्भर हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुमान के अनुसार, जुलाई,अगस्त और सितम्बर के दौरान अल नीनो के 80 फीसदी तक बढ़ जाने की संभावना रहती है, जिसके कारण मॉनसून के दौरान कम वर्षा होती है।

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छिटपुट वर्षा से अर्थतंत्र पर एक से ज्यादा रूप में मार पड़ती है। खराब पैदावार के कारण उपभोक्ता वस्तुओं पर खर्च में काफी गिरावट हो जाती है। उदाहरण के लिए दोपहिया वाहनों और टेलीविजन की बिक्री में ग्रामीण खरीदारों का अनुपात करीब 50 फीसदी है, लेकिन फसल की खराब पैदावार के कारण आमदनी रुकने से इस बिक्री में बाधा आती है।

अल नीनो से कब कब प्रभावित हुआ देश
वर्ष 2001 से लेकर 2020 तक भारत में सात बार अल नीनो वर्ष आए, जिनमें से चार वर्ष – 2023, 2005, 2009-10 और 2015-16 सुखा रहा। नीनो के कारण इन सालों में खरीफ फसल के लिए कृषि पैदावार क्रमश: 16 फीसदी, 8 फीसदी, 10 फीसदी और 9 फीसदी तक कम हो गई है।

लोन डिफॉल्ट में इजाफा
पैदावार कम होने से महंगाई में इजाफा होगा। जलवायु प्रभाव के कारण किसानों के पास पैसा कम होगा और वे लोन की रकम देने में असमर्थ होंगे,जो किसानों के लिए एक गंभीर समस्या होगी। वर्ष 2022 में, महाराष्ट्र में 2,942 किसानों ने आत्महत्या की,जो एक बड़ा आंकड़ा है।

किसानों की रक्षा के लिए सरकार का प्लान
इस वर्ष खेती की पैदावार पर खतरा को देखते हुए भारत सरकार ने किसानों की रक्षा के लिए एक आकस्मिक योजना को लागू करना शुरू किया है। कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय ने कृषि पट्टी के लिए परामर्शी सेवाओं और भविष्यवाणी की व्यवस्था की है, जिससे किसानों को फसल का नुकसान रोकने के लिए उचित कदम उठाने में मदद मिलेगी।

रिपेमेंट की हो सकती है सुविधा
किसानों और उनकी आजीविका पर कमजोर मानसून से पड़ने बाले दबाव की गंभीरता को देखते हुए, सरकार और बैंकों को प्रभावित किसानों के लिए लोन के रिपेमेंट की विस्तारित समय-सीमा की सुविधा मुहैया करने का विचार करना चाहिए।

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लोन डिफॉल्‍ट की स्थिति में किसानों के अधिकार
अगर किसान फसल की खराब पैदावार के कारण लोन चुकाने में असमर्थ होते हैं,तो उन्हें कर्ज के बोझ से राहत के लिए सरकार की ओर से जारी कृषि माफी और अन्य योजनाओं के बारे में पता करना चाहिए। उन्हें बैंक से लोन के पुनर्गठन और चुकौती के लिए समय-विस्तार के लिए आवेदन करना चाहिए। किसानों को नोटिस पाने का भी अधिकार है,जहां बैंक को किसी संपत्ति को वापस लेने के पहले पूरी प्रक्रिया का पालन करना चाहिए।

संपत्ति नीलामी के संबंध में अधिकार
इसी तरह, अगर कर्जदाता किसी संपत्ति को नीलाम करता है,तो संपत्ति के मालिक/मालकिन को न्यायोचित मूल्य का अधिकार होता है। नीलामी प्रक्रिया पर भी नजर रखनी चाहिए और यह इसकी जानकारी रखनी चाहिए कि संपत्ति को बेचने के बाद कर्जदाता द्वारा वसूले गये बकाया के बाद उन पर कुछ ​बकाया तो नहीं है। किसानों को यह अवश्य समझना चाहिए कि बैंक वाले या लोन संग्रह करने वाले चूक की स्थिति में भी उनके साथ दुर्व्यवहार नहीं कर सकते। भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुसार, कर्ज संग्राहक (डेट कलेक्‍टर्स) से अपेक्षा की जाती है कि वे चूककर्ता (डिफॉल्‍टर्स) के साथ किसी भी प्रकार के उत्पीड़न के बगैर उनकी निजता का सम्मान करेंगे।


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