दूसरी तिमाही में फिसली जीडीपी ग्रोथ रेट, क्या लोगों ने कंजप्शन में कटौती की है?
नई दिल्ली। जीडीपी यानी ग्रॉस डेमेस्टिक प्रॉडक्ट। इसका ग्रोथ रेट मतलब किसी भी देश का आर्थिक विकास दर। चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही के लिए भारत के जीडीपी के आंकड़े आ गए हैं। इस दौरान देश की आर्थिक वृद्धि दर घटकर 5.4% रह गई है जो इसका दो साल का निचला स्तर है। यह पिछले वर्ष की समान अवधि के 8.1% और इस साल अप्रैल-जून तिमाही के 6.7% थी। शुक्रवार को जारी सरकारी आंकड़ों से यह जानकारी मिली है। अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कंजप्शन या उपभोग में कमी और कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर प्रतिकूल मौसम का प्रभाव जीडीपी के आंकड़ों पर दिखा है। पहले ही अर्थशास्त्रियों ने ऐसी भविष्यवाणी की थी। जीडीपी ग्रोथ का पिछला निम्न स्तर 4.3 प्रतिशत था जो वित्त वर्ष 2022-23 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में दर्ज किया गया था। हालांकि भारत सबसे तेजी से बढ़ने वाली प्रमुख अर्थव्यवस्था बना रहा। इस साल जुलाई-सितंबर तिमाही में चीन की जीडीपी वृद्धि दर 4.6% थी।
दूसरी तिमाही में मैन्युफैक्चरिंग की ग्रोथ 2.2% रही है जबकि माइनिंग एंड क्वेरिंग सेक्टर में -0.1% गिरावट आई है। अप्रैल-सितंबर छमाही के दौरान रियल ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) का ग्रोथ रेट 6.2% रहा। दूसरी तिमाही में रियल जीवीए 5.6% रहा जबकि पिछले साल की समान तिमाही में यह 7.7% रहा था।हालांकि एग्रीकल्चर सेक्टर में दूसरी तिमाही में 3.5% ग्रोथ देखने को मिली जबकि पिछले चार तिमाहियों में इसका प्रदर्शन अछी नहीं रहा था। इसी तरह कंस्ट्रक्शन सेक्टर में स्टील खपत में लगातार तेजी से 7.7% की तेजी आई। इस दौरान सर्विसेज सेक्टर में 7.1% की मजबूत ग्रोथ देखने को मिली जबकि ट्रेड, होटल्स और ट्रांसपोर्ट सेगमेंट की ग्रोथ 6.0% रही।
क्या था अनुमान
इकोनॉमिक टाइम्स के सर्वेक्षण में 17 अर्थशास्त्रियों ने इस अवधि के लिए 6.5% की औसत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि का अनुमान लगाया था। इसमें शहरी मांग में कमी, सरकारी खर्च में कमी और खनन और बिजली क्षेत्रों में भारी बारिश के कारण व्यवधान को शामिल किया गया था। रॉयटर्स द्वारा किए गए एक अलग सर्वेक्षण में भी भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के 7% के अनुमान से कम, 6.5% की जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगाया गया था। आर्थिक गतिविधियों का एक माप, सकल मूल्य वर्धित (जीवीए), पिछली तिमाही में 6.8% की तुलना में धीमी 6.3% दर से बढ़ने का अनुमान लगाया गया था, जो सभी क्षेत्रों में धीमी गति का संकेत देता है।
मंदी में मुख्य योगदानकर्ता कौन?
अर्थशास्त्रियों ने कई कारकों पर प्रकाश डाला है, जिसमें बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति, उच्च उधारी लागत और स्थिर वास्तविक वेतन वृद्धि शामिल है। ये वही कारक हैं, जिसने सामूहिक रूप से शहरी निजी खपत को कम कर दिया है – जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 60% का योगदान देने वाला एक प्रमुख कारक है। उदाहरण के लिए, खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति अक्टूबर में बढ़कर 10.87% हो गई, जिससे क्रय शक्ति में काफी कमी आई।
कॉरपोरेट इनकम भी घटा है
इस अवधि के दौरान कॉरपोरेट इनकम में भी आर्थिक प्रतिकूलता दिखाई दी है। प्रमुख भारतीय फर्मों ने जुलाई-सितंबर की अवधि के लिए चार वर्षों में अपने सबसे कमजोर तिमाही प्रदर्शन की रिपोर्ट की है। इस मंदी ने निवेश और व्यापार विस्तार योजनाओं में संभावित मंदी को लेकर चिंताएं बढ़ा दी हैं।
RBI की नीति और विकास दृष्टिकोण
इन चुनौतियों के बावजूद, RBI ने वित्त वर्ष 2024-25 के लिए अपने सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि का पूर्वानुमान 7.2% पर बनाए रखा है, जो पिछले वित्त वर्ष के 8.2% से कम है। हालांकि, केंद्रीय बैंक ने अपनी रेपो दर को 6.50% पर अपरिवर्तित रखा है। इसका नीतिगत रुख तटस्थ हो गया है, जो लगातार मुद्रास्फीति के दबावों के बीच सावधानी का संकेत देता है।
दूसरी छमाही में सुधार की आशा!
भविष्य को देखते हुए, विश्लेषक वित्त वर्ष 2025 की दूसरी छमाही में संभावित आर्थिक सुधार के बारे में आशावादी बने हुए हैं। चुनाव के बाद राज्य के खर्च में वृद्धि और अनुकूल फसल के बाद ग्रामीण मांग में सुधार जैसे कारकों से कुछ राहत मिलने की उम्मीद है।