मैंने 4000 लावारिस शवों को मुखाग्नि दी:वर्षा बोलीं-श्मशान मुझे डराते नहीं,लेकिन मैं रुकी नहीं
लखनऊ। सुबह हुई हल्की बारिश से तापमान 8 डिग्री पहुंच गया। दोपहर के 12 बज चुके थे पर कोहरा नहीं छटा था। लगभग 1 बजकर 30 मिनट पर वर्षा के फोन पर एक कॉल आई। हेलो… के जवाब में दूसरी तरफ से अवाज आई,“वर्षा जी मैं इंदिरानगर सेक्टर 21 से बोल रहा हूं। यहां एक मकान में रहने वाले बुजुर्ग की ठंड लगने से मौत हो गई है। उनका अंतिम संस्कार कराने वाला कोई नहीं है। आप तुरंत आ जाएंगी।”
1 घंटे के भीतर वर्षा शव वाहन लेकर मौके पर पहुंची। सेकेंड फ्लोर पर दूसरे कमरे में बेड पर 70 साल के व्यक्ति की अकड़ी हुई डेडबॉडी पड़ी थी। बिस्तर पूरा गिला हो चुका था। मोहल्ले वालों ने बताया कि वह अकेले ही यहां रहते थे। उनकी शादी नहीं हुई थी। आप उनका अंतिम संस्कार करवा दीजिए।
वर्षा ने पेपर वर्क पूरा करवाकर डेडबॉडी को लोगों की मदद से शव वाहन में रखवाया। फिर, वैकुंठ धाम श्मशान ले गईं और खुद अंतिम संस्कार किया। यूपी के लखनऊ जिले की रहने वाली वर्षा 2018 से लावारिस शवों का अंतिम संस्कार कर रही हैं। वे अब तक 4000 से ज्यादा शवों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं।
सड़क पर तड़पती महिला के इलाज से शुरू हुई ‘एक कोशिश ऐसी भी’
कहानी शुरू होती है 5 साल पहले यानी 2018 से। वर्षा किसी काम से हजरतगंज जा रही थीं। तभी सिविल अस्पताल के पास उन्हें सड़क पर पड़ी हुई महिला दिखी। वह दर्द से तड़प रही थी, जैसे अभी-अभी उसका एक्सीडेंट हुआ हो। वर्षा महिला के पास पहुंची, उन्हें किसी तरह उठाया और रिक्शे पर बैठाकर अस्पताल पहुंची।
बुजुर्ग महिला को याद करते हुए वर्षा कहती हैं, “मुझे याद है जब मैंने उन्हें एडमिट करवाया था, तब वह बोल भी नहीं पा रही थीं। उनका 3 दिन तक इलाज चला। ट्रीटमेंट के दौरान डॉक्टरों ने बताया कि कई बार एक्सीडेंट हो चुका है। उनके शरीर की 27 हड्डियां टूटी थी। उनका इलाज कराते-कराते मेरा उनसे जबरदस्त लगाव हो गया था। लेकिन जब उनकी मौत हुई, तब मुझे उनका अंतिम संस्कार नहीं करने दिया गया। इस बात से मुझे बहुत तकलीफ हुई।”
वर्षा के मुताबिक, इस घटना के बाद उन्होंने लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने की मुहिम शुरू की। इसका मकसद सड़क किनारे जीवन बिता रहे बेसहारा लोगों की मदद करना था। संस्था में इन लोगों के रहने, इलाज कराने और उनके रिहैबिलिटेशन पर काम होता था।
अस्पतालों के बाहर शव वाहन लेकर खड़ी हुई
2019 में सीएम योगी ने ‘एक कोशिश ऐसी भी’ संस्था की तारीफ की। यूपी के अलावा बिहार और हरियाणा तक मदद पहुंचाई। सब कुछ अच्छा चल रहा था। लेकिन मार्च 2020 में कोरोना आ गया।
वर्षा कहती हैं, “कोरोना की दूसरी वेव में लोग मर रहे थे। मुझे याद है मैं उस समय लोहिया अस्पताल के सामने ‘निशुल्क शव वाहन’ लिखी हुई तख्ती लेकर खड़ी रहती थी। अस्पतालों पर लोड बहुत ज्यादा था। ऐसे में वहां का प्रशासन और तीमारदार मुझसे खुद कॉन्टैक्ट करता और लावारिस शवों की अंतेष्टी के लिए मुझे डेडबॉडी सौंप दी जाती थी।”
वर्षा आगे कहती हैं, “कोरोनाकाल के दौरान मैंने 700 से ज्यादा शवों का दाह संस्कार करवाया। अखबारों में मेरी फोटो छपी। खूब तारीफ हुई, लेकिन कुछ लोगों ने मजाक भी उड़ाया। लेकिन मैं इन बातों को इग्नोर करते हुए काम करती रही।”
5 साल बीत गए, किसी से 1 रुपए की मदद नहीं ली
वर्षा कहती हैं, “अस्पताल से लावारिस शवों को क्रिमेशन प्वाइंट तक लाने का खर्च में खुद उठाती हूं। किसी भी सरकारी माध्यम से हम फंड नहीं लेते। हम कोई लावारिश शव लेकर जब श्मशान घाट पहुंचते हैं, तो पहले से उसके सारे डॉक्युमेंट तैयार रखते हैं। हर केस की हिस्ट्री हमारे पास रहती है। इसलिए शव के अंतिम संस्कार के लिए हमसे कोई भी चार्ज नहीं लिया जाता। परिवार और कुछ दोस्तों के सपोर्ट से ये सब काम हो रहा है।”
जब लोगों ने अपनों को कंधा देने से मना कर दिया
अप्रैल 2021 की बात है। कोरोना की दूसरी वेव में डेथ काउंट लगातार बढ़ रहा था। लोग घरों से बाहर निकलने से डर रहे थे। लेकिन वर्षा एक कॉल पर लोगों की मदद के लिए हाजिर रहती थी।
23 अप्रैल 2021 की एक घटना के बारे में वर्षा कहती हैं, “लखनऊ के कृष्णा नगर से मेरे पास एक कॉल आई। लोगों ने बताया कि किराए के घर में रह रही एक महिला की मौत हो गई है। मैं वहां पहुंची तो देखा कि उनके रिश्तेदार जो महंगी लग्जरी गाड़ी से आए थे, वो दूर खड़े थे और डेडबॉडी को हाथ तक नहीं लगा रहे थे। जांच में मृतक महिला कोविड पॉजिटिव निकली, लेकिन फिर भी मैं शव को श्मशान तक लेकर आई। तब उसके रिश्तेदारों ने अंतिम संस्कार किया।”
मेरे पापा से कहा गया- आपकी लड़की महामारी फैलाएगी
वर्षा कहती हैं, “किसी पहल की शुरुआत कोई स्त्री करे या पुरुष, परिवार का सपोर्ट बहुत जरूरी होता है। मेरे केस में मेरे मम्मी-पापा और हसबैंड ने हमेशा मेरा सपोर्ट किया। हमारी 12 लोगों की टीम के वरिष्ठ साथी दीपक महाजन जी ने भी संस्था को बड़े मुकाम तक ले जाने में बहुत सहयोग किया।”
वर्षा आगे कहती हैं कि सबसे ज्यादा शुक्रगुजार हूं पापा की। क्योंकि उन्होंने मेरे काम को लेकर काफी कुछ झेला है। कोरोना के टाइम पर मेरी सोसाइटी के लोगों ने मेरी मां से मुझे इस काम को बंद करने के लिए कहा। लोग कहते थे कि ये लड़की मोहल्ले में कोरोना फैलाएगी। लेकिन मेरे पापा ने हमेशा मेरा साथ दिया।
साल 2022 में BEAUTIFUL INDIANS लिस्ट में शामिल हुईं
लखनऊ की रहने वाली वर्षा वर्मा स्टेट लेवल जूडो चैंपियन के साथ प्रोफेशनल राइटर भी हैं। उनकी कविताओं के संग्रह की 3 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्षा कई स्कूलों में लड़कियों को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग भी दे रही हैं। कोरोना काल में 500 से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने पर रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने अगस्त 2022 में वर्षा को प्रमिला श्रीवास्तव सम्मान दिया। सीएम योगी से लेकर लखनऊ की मेयर संयुक्ता भाटिया उनकी मुहिम ‘एक कोशिश ऐसी भी’ की तारीफ कर चुके हैं। कोविड के दौरान वर्षा के काम को सराहते हुए उन्हें BEAUTIFUL INDIANS-2022 लिस्ट में शामिल किया गया।
एंबुलेंस की संख्या बढ़ाने पर जोर
साल 2018 से लेकर अब तक वर्षा ने कोई सरकारी मदद नहीं ली है। फिलहाल…PPE किट, एम्बुलेंस के फ्यूल का खर्च और ड्राइवरों की सैलरी मिलाकर उनका लंबा खर्च हो जाता है। आगे की प्लानिंग के बारे में वर्षा कहती हैं, “आने वाले 10 साल में मैं कहां तक पहुंच पाउंगी ये तो नहीं बता सकती, लेकिन लाचार लोगों की मदद के लिए ये सेवा मरते दम तक करती रहूंगी। अभी हमारे पास एंबुलेंस की कमी है। ज्यादा से ज्यादा लोगों तक हमारी सुविधाएं पहुंच सके। इसके लिए मैं कुछ और गाड़ियां बढ़ाना चाहती हूं।”