आप पर भरोसा इतना कि झुनझुने की गुंजाइश भी नहीं बची
नई दिल्ली। राम-राम। सरकारी खर्चों के हिसाब-किताब का लेखा-जोखा यानी बजट गुजर चुका है। नीरस होगा पर इतना होगा उम्मीद नहीं थी। जीएसटी के आने और रेल बजट खत्म होने से रोमांच घटा है लेकिन हम जैसे सैलरी वाले तो टकटकी लगाए रखते हैं। हमसे ज्यादा कमाने लेकिन टैक्स न देने वाले शायद इनकम टैक्स स्लैब के बारे में जानते भी नहीं होंगे। पर, हमें इंतजार रहता है। ये इंतजार 2017 से जारी है। सात साल हो गए। तब अरुण जेटली ने 2।5 लाख से पांच लाख के बीच की कमाई पर टैक्स घटाया था। उसके बाद स्लैब नहीं बदला। 2019 के बजट में पीयूष गोयल ने स्टैंडर्ड डिडक्शन 10 हजार बढ़ाकर 50 हजार कर दिया और पांच लाख तक की आय पर फुल टैक्स रिबेट दे दिया। ये भी अंतरिम बजट था। आज भी अंतरिम बजट था। इस बार नरेंद्र मोदी की तीसरी परीक्षा है। तो लोकसभा चुनाव से पहले उम्मीदें थीं। तार-तार हो गईं। मोदी का आत्मविश्वास भारी पड़ गया। इसे भरोसा भी कह सकते हैं। देश की जनता या कहिए वोटरों पर भरोसा। इसके आगे सवा तीन करोड़ इनकम टैक्स देने वाले कहां टिकते हैं। और इनकी भी उम्मीदें ही खत्म हुई है,भरोसा तो मोदी पर ही है। विचित्र स्थिति है। भाजपा को मालूम है हमारी मायूसी का लेश मात्र असर भी जनादेश पर नहीं पड़ने वाला।
चुनाव से पहले सरकार चाहती तो पॉप्युलर बजट पेश कर सकती थी। खास तौर पर राम मंदिर के बाद मिडल क्लास को रिझाने का एक बड़ा मौका था। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अनुपूरक बजट में भी खेल कर सकती थीं क्योंकि कोई कानून इससे मना नहीं करता। 2019 वाले बजट में तो इसी सरकार ने रिबेट दिया था। इससे पहले चिदंबरम ने 2014 के अनुपूरक बजट में वन रैंक वन पेंशन,एजुकेशन लोन पर व्याज में छूट,कार-बाइक-मोबाइल पर टैक्स कट जैसे ऐलान किए थे। लेकिन मोदी सरकार ने ये रास्ता नहीं चुना। 400 प्लस के मिशन पर निकली बीजेपी ने इकॉनमी की सेहत के हिसाब से ही बजट पेश किया। वित्त मंत्री ने स्पष्ट कहा कि डायरेक्ट और इनडायरेक्ट टैक्स पहले की तरह बने रहेंगे।
हां निर्मला ने हमें थैंक्यू जरूर कहा। वो कहती हैं,टैक्स देने वाले देश के विकास में अहम योगदान कर रहे हैं। हम उनका सम्मान करते हैं। सरकार ने टैक्स रेट को तार्किक बनाया है। नए टैक्स रिजीम में सात लाख रुपए तक की कमाई पर कोई देनदारी नहीं है।
थैंक्यू के आगे कुछ नहीं
लेकिन थैंक्यू के आगे कुछ नहीं। हो भी कैसे। लाभार्थी और समावेशी विकास के बजट में टैक्स से हो रही कमाई सरकार के लिए जरूरी है। राजकोषीय घाटा देख लीजिए।कुल जीडीपी का 5।8 प्रतिशत। यानी लोन छोड़ दें तो रेवन्यू की तुलना में खर्च और कमाई का फर्क कितना ज्यादा है।अगले साल भी सरकार लगभग 14 लाख करोड़ रुपए का उधार लेगी। तभी गरीब कल्याण अन्न योजना,पीएम किसान सम्मान निधि,पीएम आवास योजना जैसी वेलफेयर स्कीम पूरी होगी और इसके साथ-साथ इकॉनमी को फास्ट ट्रैक पर लाने वाले खर्चे पूरे होंगे। पीएम मोदी लगातार सड़क,पोर्ट,स्कूल-कॉलेज, डिफेंस,मैनुफैक्चरिंग पर खर्च बढ़ा रही है जो देश के विकास के लिए जरूरी है। इस बजट में भी कैपिटल एक्सपेंडिचर 11 परसेंट बढ़ाकर 11 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा रखा गया है।
निर्मला सीतारमण ने बजट में एक लाइन कही। ये बजट का सार जैसा है-सबके प्रयास से आत्मनिर्भर भारत पंचप्रण के साथ अमृतकाल की तरफ बढ़ रहा है। जय जवान,जय किसान,जय विज्ञान के बाद जय अनुसंधान यानी रिसर्च पर फोकस जैसे क्षेत्र ऐसे हैं जो हमारे देश का भविष्य और पूरी दुनिया में हमारी पोजिशनिंग तय करने में मदद करेंगे। दूरगामी सोच के कारण सियासी पिच पर न फिसल जाएं,इसका भी ध्यान बजट में रखा गया है। राहुल गांधी भारत जोड़ो न्याय यात्रा से पहले और इसके दौरान ओबीसी कार्ड और जातीय गणना पर फोकस कर रहे हैं। पीएम मोदी ने ये गेम ही पलट दिया है। इसकी छाया बजट में भी दिखी जब निर्मला ने दोहराया कि देश में सिर्फ चार जातियां हैं-गरीब,युवा,महिला और अन्नदाता। लखपति दीदियों पर बल के साथ नारी शक्ति या जेंडर बजट पर फोकस जारी रहेगा,ये तय है।
इन चार वर्गों पर फोकस के साथ राममय माहौल ने मोदी सरकार का आत्मविश्वास इतना बढ़ा दिया कि बजट में हमारे आपके लिए झुनझुने की गुंजाइश भी नहीं बची