मुंबई का विले पार्ले पानी-पानी, इसी ने देश को दिया सबसे बड़ा बिस्किट ब्रांड ‘Parle-G’,दिलचस्प है किस्सा

मुंबई का विले पार्ले पानी-पानी, इसी ने देश को दिया सबसे बड़ा बिस्किट ब्रांड ‘Parle-G’,दिलचस्प है किस्सा
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नई दिल्ली। देश की आर्थिक राजधानी मुंबई कुछ घंटों की बारिश में ही पानी-पानी हो गई। एक रात की बारिश में ही मुंबई के जलमग्न हो गया है। सड़के,पटरियां, मोहल्ले हर जगह पानी ही पानी दिख रहा है। ट्रेनों की रफ्तार थम चुकी है, बसों पर ब्रेक लग चुका है। मायानगरी मुंबई के हाई प्रोफाइल इलाकों में घरों में पानी घुस चुका है। पहली ही बारिश में मुंबई की फास्ट लोकल बंद हो चुकी है, बेस्ट बसों का रूट बदला गया है। दादर, विले पार्ले, किंग्स सर्किल कुर्ला, जैसे इलाके पानी में डूब गए हैं। मुंबई के विले पार्ले का हाल बेहाल है,लोगों को घर से बाहर न निकले की सलाह दी जा रही है। सांताक्रूज और अंधेरी के बीच वेस्ट लाइन पर पड़ने वाले विले पार्ले स्टेशन पर रेल सेवाएं ठप है। कई बार आपने इसका नाम फिल्मों में भी सुना होगा,लेकिन क्या आर जानते हैं कि इसके नाम के पीछे का किस्सा क्या है? विले पार्ले के नाम पर 17 हजार करोड़ रेवेन्यू वाली कंपनी का नाम पड़ा है।

कैसे पड़ा विले पार्ले नाम
विले पार्ले नाम से कई लोग कंफ्यूज हो जाते हैं कि नाम अंग्रेजों ने रखा होगा, लेकिन ऐसा नहीं है। विले पार्ले नाम के पीछे कई तर्क है। सैकड़ों साल पहले इस इलाके में कई छोटी बस्तियां और झोपड़ियां थीं, कहा जाता है कि विले का मललब गांव होता है और पार्ले शब्द पुर्तगालियों की देन है। इस तरह से इस इलाके का नाम विलेपार्ले पड़ गया। इसके साथ देश की नंबर 1 बिस्कुट ब्रांड का नाम भी जुड़ा है।

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विले पार्ले से पारले जी का खास है रिश्ता
देश की सबसे ज्यादा बिकने वाली बिस्किट पारले जी ( Parle G) का खास रिश्ता मुंबई के विले पार्ले के साथ है। पारले जी कंपनी ने विले पार्ले के नाम पर अपने बिस्किट का नाम रखा। दरअसल साल 1929 में मोहनलाल दयाल नाम के शख्स ने विले पार्ले इलाके में एक पुरानी बंद पड़ी फैक्ट्री में बिस्किट बनाने की शुरुआत की। उसी फैक्ट्री में पारले जी का जन्म हुआ। वहीं से उसने अपने सफर की शुरुआत की। विले पार्ले स्टेशन के सामने छोटी सी दुकान खोलकर अपनी बिस्किट बेची। विले पार्ले ने पारले जी को खड़े होने के लिए अपनी जगह दी, इसलिए कंपनी के मालिक ने बिस्किट का नाम उस इलाके के नाम पर ही रख दिया और इस तरह से विले पार्ले और पारले जी का रिश्ता बन गया।

विले पार्ले से हुई शुरुआत
विले पार्ले की जिस बंद पड़ी फैक्ट्री से मोहनलाल दयाल शुरुआत की, उसमें पहले परिवार के ही 12 लोग काम करते थे। बिस्किट कंपनी के मालिक मोहनलाल दयाल अपने काम में इतने मशगूल थे कि कंपनी का नाम तक नहीं तय कर पा रहे थे। लोगों ने भारत के पहले कन्फेक्शनरी ब्रांड का नाम उसकी जगह के नाम पर बोलना शुरू कर दिया, जहां वो बिक रहा था। इस तरह से पारले तरह से पारले जल्द ही लोगों के बीच मशहूर होने लगा।

देश की सबसे बड़ी बिस्किट ब्रांड
आजादी के बाद पारले बिस्किट के कारोबार में छोड़ी परेशानी आई। विभाजन के चलते देश में अचानक गेहूं की कमी हो गई थी। जिसकी वजह से पारले को अपने ग्लूको बिस्किट का उत्पादन रोकना पड़ा। संकट ,से उबरने के लिए उसने जौ के साथ बिस्टिक बनाना शुरू किया। लोगों से अपील की कि जब तक गेंहू की सप्लाई सामान्य नहीं हो जाती वो जौ की बिस्किट से काम चलाएं। पारले ने अपनी ब्रांडिंग पर खास ध्यान देते हुए एक छोटी लड़की की तस्वीर को अपना ब्रांड फेस बनाया, जिसे लोगों ने पारले गर्ल का नाम दे दिया। ‘जी माने जीनियस’, ‘हिंदुस्तान की ताकत’, ‘रोको मत, टोको मत’।।। जैसी टैगलाइन के साथ पारले-जी ने विज्ञापनों के जरिए देश-दुनिया तक अपनी पहुंच बना ली।

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कम कीमत ने दिया बड़ा मुनाफा
पारले ने अपने मेन प्रोडक्ट को लो-प्रॉफिट मार्जिन ही रखा। बड़े स्केल पर उत्पादन किया और बेहद कम मुनाफा कमाया, जिससे लोगों को सस्ता बिस्किट मिलता रहा। पारले की इस स्ट्रैटजी का फायदा उसे बिजनेस में खूब मिला। बाजार से मुकाबला करने के लिए मेन प्रोडक्ट के अलावा क्रैक जैक, 20-20 जैसे अन्य बिस्किट, मैंगो बाइट, पारले मेलोडी जैसी कैंडी , केक बाजार में उतार दिए, जिसके रेट बाजार को देखते हुए रखे गए। पारले जी बिल्किट का रेट बढ़ाने के बजाए उन्होंने पैकेट का वजन कम कर महंगाई को मात देने की कोशिश की।

विले पार्ले से दुनियाभर का सफर
आज पारले-जी के पास देश भर में 130 से ज्यादा फैक्ट्रियां हैं,50 लाख रिटेल स्टोर्स, हर महीने 100 करोड़ से ज्यादा बिस्किट के पैकेट की खपत, 21 से ज्यादा देशों में सेल्स का बड़ा साम्राज्य है। कंपनी का मुनाफा 17,223 करोड़ के पार हो चुका है। विले पार्ले से निकली कंपनी अब 62,600 करोड़ की हो चुकी है।


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