समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के खिलाफ NCPCR की SC में याचिका
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादी को मान्यता देने की याचिका के साथ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुनवाई के लिए अपनी याचिका लगा दी है।
सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादी को मान्यता देने की याचिका के साथ राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुनवाई के लिए अपनी याचिका लगा दी है। एनसीपीसीआर ने अपनी याचिका में कहा है कि समलैंगिक जोड़े द्वारा बच्चों को गोद लेने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। आयोग का कहना है कि समलैंगिक अभिभावक द्वारा पाले गए बच्चों की पहचान की समझ को प्रभावित कर सकते है। इन बच्चों का एक्सपोजर सीमित रहेगा और उनके समग्र व्यक्तित्व विकास पर असर पड़ेगा।
गौरतलब है कि इससे पहले दिल्ली सरकार के बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में एक अर्जी दाखिल कर समलैंगिक विवाह को मान्यता देने की मांग वाली याचिकाओं के साथ सुनवाई की मांग की है। डीसीपीसीआर ने कहा है कि समलैंगिक जोड़ों को भी बच्चे गोद लेने की अनुमति मिलनी चाहिए।
18 अप्रैल को होगी समलैंगिक विवाहों पर सुनवाई
उच्चतम न्यायालय की पांच-सदस्यीय संविधान पीठ देश में समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता दिये जाने की मांग संबंधी याचिकाओं पर मंगलवार (18 अप्रैल 2023) से सुनवाई करेगी। चीफ जस्टीस डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति एसके कौल, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ याचिकाओं पर सुनवाई शुरू करेगी। इस मामले की सुनवाई और फैसला देश पर व्यापक प्रभाव डालेगा, क्योंकि आम नागरिक और राजनीतिक दल इस विषय पर अलग-अलग विचार रखते हैं।
केंद्र ने समलैंगिक विवाहों के लिए कानूनी मान्यता की मांग करने वाली याचिकाओं का विरोध किया है और कहा है कि संबंधित मामला व्यक्तिगत कानूनों और स्वीकृत सामाजिक मूल्यों के नाजुक संतुलन के साथ ‘पूर्ण विनाशकारी’ साबित होगा।
सरकार ने प्रस्तुत किया कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 377 के प्रावधानों को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने के बावजूद याचिकाकर्ता देश के संबंधित कानून के तहत समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के मौलिक अधिकार का दावा नहीं कर सकते।
सरकार ने कहा है, ‘‘विभिन्न कानूनी प्रावधानों के तहत वैवाहिक संबंध के कई वैधानिक और अन्य परिणाम हैं। इसलिए, इस तरह के मानवीय संबंधों की औपचारिक मान्यता को दो वयस्कों के बीच केवल गोपनीयता का मुद्दा नहीं माना जा सकता है।” केंद्र ने कहा कि एक ही लिंग के दो व्यक्तियों के बीच विवाह को असंहिताबद्ध ‘पर्सनल लॉ’ या संहिताबद्ध वैधानिक कानूनों में न तो मान्यता प्राप्त है और न ही स्वीकार किया जाता है। जमीयत उलेमा-ए हिंद ने भी इन याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा है कि यह परिवार व्यवस्था पर हमला है और सभी ‘पर्सनल लॉ’ का पूरी तरह से उल्लंघन है।