हरी प्रबोधिनी एकादशी ;तुलसी विवाह का आयोजन शुरू
वाराणसी । कार्तिक शुक्ल एकादशी तद्नुसार शुक्रवार को श्रीहरि क्षीर सागर में योग निद्रा से जाग गए। इसके साथ ही आषाढ़ शुक्ल एकादशी (10 जुलाई) से चल रहे चातुर्मास का समापन भी हो गया। मांगलिक कार्यों का भी आरंभ इसी के साथ शुरू हो गया है। कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि तीन नवंबर की रात 8.50 बजे लग गई जो चार नवंबर को शाम 7.02 बजे तक रहेगी। हरि प्रबोधिनी एकादशी व चातुर्मास व्रत का पारन पांच नवंबर को किया जाएगा। तुलसी विवाह के विधान भी पांच नवंबर को ही पूरे किए जाएंगे।
शुक्रवार की सुबह से ही काशी में गंगा तट पर देवों के निमित्त अनुष्ठान और पूजन के साथ ही विष्णु की पूजा और अर्चना का दौर शुरू हो गया। सुबह से ही गंगा में स्नान ध्यान के साथ ही तट पर पूजा और दान पुण्य का दौर शुरू हो गया। आस्था के स्वरों में हर हर महादेव और हर हर गंगे के साथ ओम नमो भगवते वासुदेवाय के स्वर भी गुंजायमान हो गए। कई स्थानों पर भागवत पाठ कर प्रसाद भी वितरित किया गया।
ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार हरि प्रबोधिनी एकादशी को प्रातः स्नानादि कर भगवान विष्णु के प्रसन्नार्थ व्रत रह कर रात में शयन करते हरि को जगान के लिए विष्णु सहस्त्रनाम, सुभाषित, विष्णु कथा, पुराणादि का श्रवण व भजनादि गायन करना चाहिए। घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़े व वीणा आदि बजा कर भगवान विष्णु को जगाना चाहिए। उनकी मूर्ति पर पुष्प-दीप-धूप अर्पित कर पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करना चाहिए। इससे सुख-सौभाग्यादि की प्राप्ति होती है। कार्तिक शुक्ल एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक भीष्म पंचक व्रत किया जाएगा।
इस व्रत के निमित्त काम-क्रोधादि त्याग कर क्षमा-दया व उदारता युक्त हो सोने-चांदी की लक्ष्मी नारायण की मूर्ति बनवा कर वेदी पर स्थापित करनी चाहिए। ऋतु फल, मिष्ठान, गंध-पुष्प, धूप-दीप व नैवेद्यादि से पूजन कर पांच दिनों तक व्रत रहना चाहिए। पद्म पुराण का श्रवण व वाचन आदि करना चाहिए। पूजन के पहले दिन भगवान के हृदय का कमल पुष्प से, दूसरे दिन कटि प्रदेश का बिल्व पत्र से, तीसरे दिन घुटनों का केतकी पुष्प से, चौथे दिन चरणों का चमेली पुष्प से, पांचवें दिन संपूर्ण अंगों का तुलसी पत्र से पूजन-वंदन करना चाहिए। इससे श्रीहरि सहित माता लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और सुख-सौभाग्य-वैभव का आशीर्वाद प्रदान करती हैं।