रुपये को टूटने से बचाने के लिए RBI ने एक महीने में खर्च किए 44 अरब डॉलर
नई दिल्ली। पिछले कुछ समय से भारतीय रुपये में डॉलर के मुकाबले गिरावट देखी जा रही है। मंगलवार को रुपया ऑल टाइम लो 85.15 रुपये पर बंद हुआ। लेकिन शायद ही आपको पता हो कि रिजर्व बैंक ने अक्टूबर महीने में रुपये को कमजोर होने से बचाने के लिए बड़ा कदम उठाया था। अगर केंद्रीय बैंक की तरफ से यह कदम नहीं उठाया गया होता रुपये में और भी गिरावट आ सकती थी। आरबीआई ने रुपये में आ रही गिरावट को रोकने के लिए फॉरवर्ड और स्पॉट करेंसी मार्केट में 44.5 अरब डॉलर की भारी-भरकम रकम झोंकी। आबीआई के हालिया बुलेटिन में शामिल आंकड़ों से यह साफ हुआ कि स्पॉट बिक्री 9.3 अरब डॉलर रही, जबकि फॉरवर्ड सेल्स सबसे ज्यादा 35.2 अरब डॉलर की रही।
डॉलर के मुकाबले और नीचे आ सकता था रुपया…
आरबीआई की तरफ से उठाए गए कदम के बावजूद रुपया का आंकड़ा दिसंबर महीने में 85 रुपये प्रति डॉलर के लेवल को पार कर गया। अगर अक्टूबर में आरबीआई (RBI) की तरफ से कदम नहीं उठाए गए होते तो डॉलर के मुकाबले रुपये में और गिरावट आ सकती थी। अक्टूबर के महीने में आरबीआई (RBI) के बाजार में दखल के कारण रुपये को बड़ी गिरावट से बचाया जा सका। इस दौरान,अमेरिकी डॉलर की मांग बढ़ने से विदेशी निवेशकों ने भारत से काफी पैसा निकाला। आरबीआई के कदम से यह मदद मिली कि रुपये का मूल्य डॉलर के मुकाबले ज्यादा नीचे नहीं आ पाया।
बाजार से 10.9 अरब डॉलर निकाले
इस दौरान, शेयर बाजार में भी भारी गिरावट देखी गई थी। लेकिन रिजर्व बैंक की तरफ से उठाए गए उपायों से बाजार में पैसे की कमी नहीं हुई। अक्टूबर में विदेशी निवेशकों ने देश के शेयर बाजार से 10.9 अरब डॉलर निकाले। लेकिन इसी दौरान, रुपये का मूल्य केवल 30 पैसे ही गिरा और महीने के अंत में यह 84.06 रुपये प्रति डॉलर के लेवल पर हुआ। हालांकि, अक्टूबर महीने में अमेरिकी डॉलर के दाम 3.2% बढ़ गए। इसके अलावा उभरते हुए बाजार की मुद्राओं का मूल्य 1.6% कम हो गया। इस बीच रुपये का मूल्य अपने पुराने लेवल पर कायम रहा क्योंकि रिजर्व बैंक की तरफ से बड़ी मात्रा में डॉलर की बिक्री की गई।
नवंबर में भी बड़ी मात्रा में डॉलर की बिक्री किये जाने की उम्मीद
मनी मार्केट के जानकारों का मानना है कि रिजर्व बैंक ने नवंबर के महीने में भी बड़ी मात्रा में डॉलर की बिक्री की होगी। नवंबर 2024 में विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) ने भारतीय वित्तीय बाजारों से पैसा निकाला। इसका कारण अमेरिकी डॉलर के दाम बढ़ना और ब्याज दर में इजाफा होना है। जिससे दुनियाभर में रिस्क वाले इनवेस्टमेंट में निवेशकों का रुझान कम हो गया है। नवंबर के महीने के दौरान नेट एफपीआई आउटफ्लो 2.4 अरब डॉलर के करीब रहा।
भारतीय रुपये में क्यों आई गिरावट?
पिछले दिनों जुलाई-सितंबर तिमाही के दौरान देश की जीडीपी का आंकड़ा गिरकर 18 महीने के निचले स्तर 5.4 प्रतिशत पर पहुंच गया। इसके बाद डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट आई। इसके अलावा पिछले दो महीने के दौरान विदेशी निवेशक (FII) भी इंडियन स्टॉक मार्केट से अपना पैसा निकाल रहे हैं। पिछले दो महीने में शेयर बाजार में बड़ी गिरावट देखी गई। अक्टूबर और नवंबर के महीने में 1.16 लाख करोड़ रुपये के स्थानीय शयेर बेचे हैं। FII के पैसा निकालने से विदेशी मुद्रा की मांग बढ़ जाती है और इसका दबाव असर स्थानीय मुद्रा देखा जाता है।