तीन रथ,अलग अलग रंग,खींचने के लिए अलग नामों की रस्सियां…भगवान जगन्नाथ के रथ से जुड़ी ये बातें

तीन रथ,अलग अलग रंग,खींचने के लिए अलग नामों की रस्सियां…भगवान जगन्नाथ के रथ से जुड़ी ये बातें
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नई दिल्ली। अयोध्या मथुरा माया काशी कांची अवन्तिका, पुरी द्वारावती ह्येता: सप्तैता: मोक्षदायिका:- धार्मिक मान्यताएं है कि सतपुरी मनुष्य का कल्याण करने वाली और मोक्ष देने वाली है। मोह प्राप्ति के इन तीर्थस्थलों में से एक जगन्नाथपुरी में अलग की छटां देखने को मिल रही है। भगवान जगन्नाथ की नगरी पुरी सजी हुई है और पुरी में जगन्नाथ की रथ यात्रा निकल रही है। लोग भगवान के दर्शन और सेवा के लिए भारी तादाद में उमड़े हैं।

भगवान जगन्नाथ यात्रा शुरू करने के लिए रथ पर भगवान जगन्नाथ,बलभद्र और सुभद्रा की मूर्तियों को स्थापित किया गया। लोग हर्षोल्लास के साथ उत्सव मनाते हुए अब रथ यात्रा के साथ आगे बढ़ रहे हैं। भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथों पर सवार होकर मौसी के घर तक पहुंचेंगे। गुंडिचा मंदिर को भगवान जगन्नाथ की मौसी का घर माना जाता है। ऐसे में हम आपको इन रथों और इनको खींचने वाली रस्सियों के बारे में बताते हैं।

ये रथ होते हैं खास
रथों की बात कर लें तो जगन्नाथ के बड़े भाई बलभद्र के रथ का नाम तलध्वज है। इसके रथ के रक्षक भगवान वासुदेव और सारथी मातलि इस रथ को खींचते हैं। रथ पर सारथी मातलि भी नजर आते हैं। इस रथ की ऊंचाई लगभग 13.2 मीटर है। काले और लाल रंग के पर्दों वाले रथ में भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा हैं। बहन सुभद्रा के साथ इस रथ में सवार होकर गुंडिचा मंदिर जाएंगी। इस रथ के सारथी अर्जुन होते हैं और जयदुर्गा इसकी रक्षक होती हैं। अश्व मोचिक इस रथ को खीचते हैं।

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लाल और पीले रंग के पर्दे लगा रथ भगवान जगन्नाथ के लिए सजाया गया है। इसे नंदीघोष के नाम भी जाना जाता है। त्रैलोक्यमोहिनी ध्वज इस रथ पर लहरते हुए दिख सकता है। गरुणाध्वज से नाम भी इसे भी जाना जाता है। भगवान जगन्नाथ के सारथी दारुक हैं। इस रथ की ऊंचाई 13.5 मीटर है और खास बात ये भी नजर आती है कि भगवान विष्णु का वाहक गरुण इस रथ की रक्षा करता नजर आता है।

बताया जाता है कि तीनों के रथ नारियल की लकड़ी से बनाए जाते हैं। तीनों रथों के शिखर अलग अलग रंग के होते हैं। भगवान जगन्नाथ का रथ अन्य रथों से आकार में बड़ा होता है, लेकिन यात्रा के समय उनका यह रथ भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के रथ के पीछे होता है।

रथों को खींचने वाली रस्सियां भी अलग होती हैं
खास चीज ये भी है कि जिन रस्सियों से रथों को खींचा जाता है,वो बहुत अलग होती हैं। बहुत बहुत मोटी रस्सियों से रथों को खींचा जाता है। कहा जाता है कि पुरातन काल में जब रथ यात्रा की शुरुआत हुई थी,जब शेषनाग इन रथों को खींचते थे। इसी के चलते अब शेषनाग के अवतार में इतनी मोटी रस्सियां बनाई जाती हैं और उनसे रथों को खींचा जाता है।

अहम बात ये भी है कि तीनों रथों की रस्सियों का नाम भी अलग अलग होता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को शंखचूड़ा नाम की रस्सी के खींचा जाता है, जबकि वासुकी रस्सी से सुभद्रा का रथ खींचा जाता है और स्वर्णचूड़ा रस्सी के बलभद्र का रथ खींचा जाता है।

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