स्वामी अड़गड़ानंद ने पिंडदान को रूढ़ी परंपरा की उपज बताया
•कटाक्ष किया “जीये बाप के डंडी डंडा, मुवे बाप के पारे पिंडा”
वाराणसी (जनवार्ता)।यथार्थ गीता के प्रणेता स्वामी अड़गड़ानंद महाराज ने पितृ विसर्जन के अवसर पर परमहंस आश्रम पालघर महाराष्ट्र स्थित भक्तों को सत्संग के दौरान बताया कि पिंडदान एक सामाजिक मर्यादा है इसलिए लोग करते चले आ रहे हैं । उन्होंने कहा कि वास्तविक अध्यात्म जगत का जो पिंडदान है, पिंड का मतलब है शरीर । ये शरीर छूटा दूसरा शरीर मिलना ही मिलना है । हमारे पूर्वज कोई गड्ढे में नहीं है जिनको हम भोजन करायें या उनके नाम पर पिंडदान करें तो उनको मिल जाएगा। यह सब एक रुढ़ी को छोड़ कर उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। यह जो शरीर मिला है शरीर नश्वर है एक न एक दिन छुटना ही छुटना है यह शरीर छूटता है।
दूसरी योनी में आत्मा शरीर धारण करती हैं तो ये शरीरों पर शरीर की लम्बी श्रृंखला है । तो इस शरीरों से उपरांत होने के लिए भजन चिंतन किया जाता है। परमात्मा का एक ईश्वर में दृढ़ विश्वास के साथ एक परमात्मा के नाम का जप ओम अथवा राम महापुरुष लोग जो बता रहे हैं उसका जाप करना चाहिए। ज्यों ज्यों साधक एक परमात्मा के प्रति दृढ़ विश्वास के साथ लगता है तो धीरे धीरे नाना प्रकार की जो रीति रिवाज नाना प्रकार की जो सामाजिक परम्पराये है। उनसे उपरांत होता जाता है । समाज में जो तरह तरह की भ्रांतियां हैं। उच नीच भेदभाव छुआछूत उनसे उपरांत होने के लिए जब-तक ऐसे महापुरुष का सरन सानिध्य नहीं मिलता तब तक कोई उससे पार नहीं पाता। समाज में तो यही है। जीये बाप के डंडी डंडा, मुवे बाप के पारे पिंडा। जीते जी तो लड़ाई झगड़ा तकरार पूरा जीवन भर अपने पिता से तो लोग लड़ाई करते रहते हैं । जहा वो शरीर छूट गया तो लोग उनके नाम का पिंडा पारने लगते हैं। तो यह एक रुढ़ी कुरीती को छोड़कर और कुछ भी नहीं है लेकिन इनसे उपरांत होने के लिए भजन करना पड़ेगा स्वामी जी ने कहा ईश्वर एक है ईश्वर को पाने की विधि एक है और गीतोक्त विधि के अनुसार जब कोई चलेगा तभी ईश्वरीय राह मिल पाती है।
उन्होंने कहा यथार्थ गीता धर्मशास्त्र है। इसका मनन चिंतन सबको करना चाहिए यथार्थ गीता घर घर होनी चाहिए।
जब ऐसा होगा तब जाकर के इन सामाजिक रुढ़ियों से लोग उपरांत होकर एक ईश्वर के तरफ बढ़ने लगेंगे। इस अवसर पर स्वामी जी के शिष्य जंग बहादुर महाराज, संतोष महाराज,लाले महाराज,दीपक महाराज,आयुक्तानंद महाराज, शिवानंद महाराज, राम जी महाराज, राकेश महाराज, जय महाराज, हनुमान महाराज सहित संत के अलावा सत्संग में कई राज्य के भक्त स्वामी जी के दर्शन के लिए पहुंचे थे।