‘तेल तेरे बाप का,आग भी तेरे बाप की…’,मनोज मुंतशिर ने बताई आदिपुरुष में इस डायलॉग के पीछे की कहानी

‘तेल तेरे बाप का,आग भी तेरे बाप की…’,मनोज मुंतशिर ने बताई आदिपुरुष में इस डायलॉग के पीछे की कहानी
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नई दिल्ली। साल 2023 की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘आदिपुरुष’ ने बड़े पर्दे पर दस्तक दे दी है। पहले दिन फिल्म को दर्शकों की ओर से जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला है। सिनेमाघरों में हर कोई प्रभु श्रीराम की भक्ति में लीन नजर आ रहा है। फिल्म को लेकर सोशल मीडिया पर भी खूब चर्चा हो रही है। आदिपुरुष के लेखक मनोज मुंतशिर और निर्देशक ओम राउत ने फिल्म के बारे में रिपब्लिक मीडिया नेटवर्क से बात की।

इस दौरान मनोज मुंतशिर ने भगवान हनुमान के उस डायलॉग के बारे में भी बात की, जिसमें उन्हें कहते सुना जा सकता है- ‘तेल तेरे बाप का, आग भी तेरे बाप की, तो जलेगी भी तेरे बाप की।’ उन्होंने बताया- ‘हमने फिल्म के डायलॉग को आसान बनाया है, क्योंकि हमें एक बात समझनी है कि अगर किसी फिल्म में कई किरदार हैं तो वे सभी उसी भाषा में बात नहीं कर सकते। एक तरह का डायवर्जन और एक डिवीजन होना चाहिए।’

‘मैं पहला नहीं, जिसने ऐसे डायलॉग लिखे’
मनोज मुंतशिर ने फिल्म में हनुमान के डायलॉग को लेकर बात की। उन्होंने कहा- ‘हमलोग रामायण को कैसे जानते हैं? हमारे यहां कथा वाचन की परंपरा है और हमने वाचन परंपरा के बारे में भी पढ़ा है। रामायण एक ऐसा ग्रंथ है, जो हम बचपन से सुनते आ रहे हैं। इनमें अखंड रामायण, पाठ और कई सारी चीजें हैं। मैं बहुत ही छोटे गांव से हूं, जहां हमारी दादी हमें इसी भाषा में रामायण की कहानियां सुनाया करती थी। एक बात और, भगवान हनुमान के जिस डायलॉग की आप बात कर रहे हो, उसका उपयोग हमारे महान संतों और कथा वाचकों ने इसी तरह से किया है, जिस तरह से मैंने उसे आदिपुरुष में लिखा है। मैं पहला इंसान नहीं हूं, जिसने ऐसे डायलॉग लिखे हैं। यह पहले से ऐसे उपयोग किया जाता रहा है।’ जब उनसे पूछा गया कि क्या इन डायलॉग्स को संस्कृत में किया जा सकता था, तो उन्होंने कहा कि ऐसा करने का उनका कोई इरादा नहीं था।

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श्री राम को भी आया था क्रोध
मेकर्स ने कहा कि श्रीराम को कभी गुस्सा नहीं आया, यह बात पूरी तरह गलत है। उन्होंने बताया कि जब श्रीराम को लंका जाना था और समुद्र उन्हें जाने का रास्ता नहीं दे रहा था, तब उन्होंने तीन दिन तक कठोर साधना की थी। तीन दिन के बाद भी जब समुद्र नहीं माना तो उन्होंने क्रोध में आकर समुद्र को तीर से सुखाने की बात कही। तभी समुद्र देवता प्रकट हो जाते हैं और रघुनंदन के पैरों में गिर जाते हैं। इसके बाद वानर सेना मिलकर एक पुल बनाती है और लंका तक का सफर तय करती है।


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