अशोक और सचिन पायलट का झगड़ा सुलझा नहीं!गांधी परिवार तक पहुंचा मुख्यमंत्री पद को लेकर ये संदेश
नई दिल्ली। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में प्रवेश से पहले गहलोत और पायलट गुट के बीच चल रही बयानबाजी की गर्मी को केसी वेणुगोपाल ने ठंडा करने में कामयाबी जरूर हासिल की। वेणुगोपाल ने दोनों नेताओं का हाथ उठा कर एकजुटता का संदेश देने की कोशिश की लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, गहलोत और पायलट का झगड़ा सुलझा नहीं है। दोनों नेताओं के मतभेद अब भी रह गए हैं।
सूत्रों के मुताबिक, राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट कांग्रेस आलाकमान पर उन्हें मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए दबाव बना रहे हैं। बीते दिनों उन्हें महासचिव बनाने का ऑफर दिया गया, जिसके लिए वो तैयार नहीं हुए। पायलट के करीबी नेताओं का दावा है कि उन्हें आखिरी के एक साल में सीएम बनाए जाने का वादा किया गया था।
सूत्रों ने बताया है कि इस बीच सचिन ने एक–दो माध्यमों से गांधी परिवार तक यह संदेश पहुंचाया है कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया तो वो पार्टी छोड़ भी सकते हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि क्या पायलट बीजेपी में शामिल होते हैं या क्या बीजेपी उन्हें पार्टी में लेगी?
सूत्रों ने क्या बताया?
सूत्रों से यह भी पता चला है कि राजस्थान को लेकर होने वाले फैसले पर हिमाचल और गुजरात चुनाव के नतीजों का सीधा असर होगा। यदि हिमाचल में कांग्रेस जीत गई और गुजरात में भी अच्छा प्रदर्शन रहा तो फिर राजस्थान में बीच का रास्ता निकालने की कोशिश हो सकती है। इस फॉर्मूले के तहत गहलोत की जगह किसी और को मुख्यमंत्री और पायलट को महासचिव बनाने का फैसला लिया जा सकता है। हालांकि तब भी देखना होगा कि सीएम से कम पर क्या सचिन राजी होते हैं या नहीं?
कहां से पूरा मामला शुरू हुआ?
गहलोत और पायलट के बीच की खींचतान तो तब से चल रही है जबसे राजस्थान में कांग्रेस सरकार आई है। साल 2020 में पायलट अपने डेढ़ दर्जन विधायकों के साथ बागी हो गए लेकिन मान–मनौवल के बाद घर लौट आए। हालांकि पायलट को उप-मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी से हाथ धोना पड़ा।
इसके बाद पायलट कैंप में हलचल तब शुरू हुई जब इस साल सितंबर में अशोक गहलोत के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की संभावना जगी। एक व्यक्ति एक पद के नियम के मद्देनजर पार्टी अध्यक्ष के चुनाव में गहलोत के नामांकन से पहले ही नया सीएम तय करने के लिए आलाकमान को अधिकृत करने के लिए जयपुर में विधायक दल की बैठक बुलाई गई,लेकिन गहलोत गुट ने मीटिंग होने ही नहीं दी। इसके बाद गहलोत पार्टी अध्यक्ष की रेस से बाहर हो गए। पायलट का इंतजार फिर बढ़ गया और इसके बाद बयानबाजी शुरू हो गई।
केसी वेणुगोपाल जयपुर क्यों आए?
कुछ दिनों बाद एक कार्यक्रम में पीएम मोदी के गहलोत को अनुभवी नेता बताए जाने पर पायलट ने सवाल खड़े करते हुए गहलोत की तुलना कांग्रेस छोड़ने वाले गुलाम नबी आजाद से कर दी थी। वहीं गहलोत ने एक इंटरव्यू में पायलट के 2020 में की गई बगावत का जिक्र कर नए सिरे से उन्हें गद्दार बता दिया।
दूसरी तरफ सितंबर में हुई बगावत के मामले में कार्रवाई ना होने से नाराज अजय माकन ने राज्य के प्रभारी पद से इस्तीफा दे दिया। ऐसे में राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के राजस्थान में प्रवेश करने से पहले माहौल ठीक करना जरूरी था जिसके लिए संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल जयपुर पहुंचे थे।
राहुल गांधी ने गहलोत और पायलट को कांग्रेस की ताकत बताया और वेणुगोपाल के दौरे के बाद फिलहाल दोनों गुटों ने बयानबाजी बंद कर दी लेकिन अंदरखाने विवाद जस का तस है। सबका ध्यान राहुल की पदयात्रा को कामयाब बनाने पर है, लेकिन सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के सामने है क्योंकि विधानसभा चुनाव के नतीजे और राहुल की पदयात्रा के राजस्थान से निकलने के बाद सबसे मुश्किल फैसला उन्हीं को करना है।