काशी में बस एक बार खुलता है देश का इकलौता भगवान धन्वंतरि का मंदिर

काशी में बस एक बार खुलता है देश का इकलौता भगवान धन्वंतरि का मंदिर
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वाराणसी। हर वर्ष की तरह इस बार भी धनतेरस को धन्‍वंतरि निवास सुड़िया में भगवान धन्‍वंतरि के अमृत कलश से आरोग्य आशीष अमृत बरसने जा रहा है। साल भर में मात्र एक ही दिन इस मंदिर के खुलने की परंपरा होने की वजह से भक्‍तों को भी खास धनतेरस के दिन का इंतजार होता है। इस बार 22 अक्टूबर को शाम पांच बजे से आम श्रद्धालुओं के लिए धन्‍वंतरि मंदिर का पट खुलेगा। इस दौरान महज पांच घंटे ही भगवान धन्‍वंतरि के दर्शन होंगे। 

धन त्रयोदशी पर बाबा की नगरी में सौभाग्य लक्ष्मी कृपा बरसाएंगी और स्वर्ण अन्नपूर्णेश्वरी अन्न- धन का खजाना लुटाएंगी तो आरोग्य अमृत भी बरसेगा। वार्षिक परंपरा के अनुसार आरोग्य के देवता भगवान धन्‍वंतरि का सुड़िया स्थित वैद्यराज आवास में दर्शन पूजन होगा। कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी दो दिन लगने से तिथियों के फेर के बाद भी सुड़िया स्थित वैद्यराज आवास में विराजित भगवान धनवंतरी मंदिर के पट 22 अक्टूबर को ही खुलेंगे।

हालांकि, दर्शन शाम पांच बजे से रात 10 बजे तक सिर्फ पांच घंटे ही होंगे। काशी के प्रसिद्ध राजवैद्य स्व. पंडित शिव कुमार शास्त्री के धन्‍वंतरि निवास में प्रतिस्थापित भगवान धन्‍वंतरि की अष्टधातु की मूर्ति करीब 325 साल पुरानी है। जो भारत में एकमात्र मानी जाती है। राजवैद्य परिवार के पं राम कुमार शास्त्री, नन्द कुमार शास्त्री एवं समीर कुमार शास्त्री और उनके पुत्र गण उत्तपल कुमार शास्त्री, आदित्य विक्रम शास्त्री, मिहिर विक्रम शास्त्री अब भगवान के पूजन एवं सार्वजनिक दर्शन के परम्परा का निर्वहन कर रहे हैं।

 वर्ष में सिर्फ एक दिन धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि के दर्शन के लिए मंदिर का पट खुलता है। वर्ष भर निरोग रहने के लिए देश विदेश के दर्शनार्थी सायंकाल पांच बजे ही पट खुलने का इंतजार करते हैं। मंदिर का पट खुलते ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ भगवान के दर्शन के लिए आतुर रहती है।

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मंदिर का पूरा वातावरण दुर्लभ जड़ी बुटियों की सुगंध से ही अत्यंत शुद्ध एवं सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण दिखाई देने लगता है। सभी श्रद्धालुओं को भगवान धन्वंतरि के अमृत रूपी प्रसाद का वितरण किया जाता है। रात को ठीक 10 बजे मंदिर का कपाट आम श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिया जाता है। उसके बाद अगले साल धनतेरस को ही खुलता है। इस दौरान आस्‍था का सागर मं‍दिर में आरोग्‍य कामना से उमड़ता है। 


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