फीकी पड़ रही हीरे की चमक,दो साल में 4 गुना गिर गए दाम,डायमंड से इस बेरुखी की वजह क्या है?
नई दिल्ली।’हीरा है सदा के लिए’, ये लाइन आपने कई बार पढ़ी और सुनी होगी। हीरे की चमक के कसीदे पढ़े जाते हैं, उसे बेशकीमती समझा जाता है, लेकिन बीते दो सालों में हीरा अपनी चमक खो रहा है। हीरे की कीमत में लगातार आ रही गिरावट ने ये सोचने पर मजबूत पर कर दिया है कि क्या हीरा अपनी चमक खो रहा है? क्या हीरे से लोगों का मोह भंग होने लगा है ? दरअसल बीते दो सालों के जो आंकड़े सामने आए हैं वो कुछ ऐसा ही इशारा कर रहे हैं।
हीरे की कीमतों में भारी गिरावट
रिपोर्ट के मुताबिक बीते दो साल में भारतीय बाजार में हीरे की कीमत में बड़ी गिरावट देखने को मिली है। लैब निर्मित डायमंड के साथ-साथ नेचुरल डायमंड की कीमत में गिरावट देखने को मिली है। कीमत दो सालों में लैब निर्मित हीरे की कीमत 4 गुना तक गिर गई है। जुलाई 2022 में लैब डायमंड की कीमत 300 डॉलर यानी करीब 35 हजार रुपये प्रति कैरेट थी जो जुलाई 2024 में गिरकर सिर्फ 78 डॉलर यानी करीब 6529 रुपये प्रति कैरेट पर पहुंच गई है।
नेचुरल हीरा भी हुआ सस्ता
वहीं प्राकृतिक हीरे की कीमत में भी बीते दो सालों में 25 से 30% की गिरावट आई है। बढ़े इंपोर्ट और घटी डिमांड ने देश में हीरे की कीमत का संतुलन बिगाड़ दिया है। बीते दो सालों में हीरे में कीमत में लगातार गिरावट आ रही है। कारोबारियों की माने तो कीमत इतना गिर चुका है कि उनके लिए कारोबार करना मुश्किल हो गया है। नुकसान इतना बढ़ गया है कि वो ऑर्डर पूरा नहीं कर पा रहे हैं। डायमंड इंडस्ट्री से जुड़े लोगों, श्रमिकों पर इसका असर जिखने लगा है।
फीकी पड़ रही है हीरे की चमक
हीरा कारोबारियों के लिए बीते दो साल काफी कठिन रहे हैं। कीमतों में लगातार गिरावट का दौर जारी है। हर गुजरते दिन के साथ कीमत में गिरावट ने कारोबार पर बुरा असर डालना शुरू कर दिया है। सोने की कीमतों में लगातार हो रही बढ़ोतरी, अमेरिका समेत पश्चिमी देशों में मंदी के मंडराते संकट और हीरे को लेकर चीन की बेरुखी ने इसकी कीमत में बड़ी गिरावट ला दी है। विदेशों से हीरे की घटती डिमांड भी हीरे की डिमांड को कमजोर किया है। आंकड़ों के मुताबिक इस साल फरवरी में भारत से कच्चे हीरों का आयात बढ़ा। जिसके बाद उम्मीद जगी कि अब इसमें सुधार आएगा, लेकिन ये उम्मीद जल्दी ही टूट गई। जानकारों की माने तो भारत में अब हीरे की अधिक आपूर्ति है। नेचुरल हीरों की घटती डिमांड और गिरती कीमत को लेकर जानकारों की दलील है कि छोटे और सस्ते गुणवत्ता वाले दोषपूर्ण हीरों को लैब में बने डायमंड से कड़ी प्रतिस्पर्धा मिल रही है।
चीन जो प्राकृतिक हीरों का एक बड़ा खरीदार हुआ करता था, उसने अचानक से इसमें दिलचस्पी खत्म कर दी। चीन की ओर से हीरों की खरीद अब घटकर सिर्फ 10%-15% रह गई है। चीन खुद आर्थिक चुनौतियों से जूझ रहा है, ऐसे में उसने हीरे की खरीद कम कर दी है।चीन ने भी इन हीरों से मुंह मोड़ लिया है और इसमें दिलचस्पी दिखानी बंद कर दी है। कोविड के बाद से ही लोग उपभोक्ता विलासिता की वस्तुओं से दूर हो रहे हैं। हीरे की घटती डिमांड इससे जुड़े उद्योगों, श्रमिकों, कामगारों की मुश्किल बढ़ रही है।
हीरे की निर्यात में गिरावट
हीरे की घटती डिमांड का असर उसके निर्यात पर भी दिखा। इस साल अप्रैल-मई के दौरान रत्न और आभूषणों का कुल निर्यात 4,691.6 मिलियन डॉलर यानी करीब 39,123 करोड़ रुपये रहा है। जो कि पिछले साल इसी समय के मुकाबले करीब 5।9% कम रहा है। वहीं कटे और पॉलिशडायमं के निर्यात में 15.5% की गिरावट आई है। जबकि पॉलिश किए लैब वाले डायमंड का निर्यात एक साल में 41.6 मिलियन डॉलर से घटकर 204.2 मिलियन डॉलर रह गया।
हीरा कारोबारी की मुश्किल
हीरे की डिमांड में आई कमी का असर उसकी कीमत पर दिख रहा। हीरे की कीमत लगातार गिरती दा रही है, जिसका सबसे ज्यादा नुकसान हीरा कारोबारियों को हो रहा है। उन्होंने ऊंची कीमत पर हीरा खरीदा, लेकिन अब उसकी कीमत घट गई है। व्यापारियों ने ऊंची कीमत में इसे खरीद, जिसे अब उन्हें कम कीमत पर बेचना पड़ रहा है। इसका असर ज्वैलरी सेक्टर से जुड़े कामगारों पर भी दिख रहा है।