बैकुंठ चतुर्दशी कब है 25 या 26 नवंबर,शुभ मुहूर्त पूजा विधि और महत्व
नई दिल्ली। बैकुंठ चतुर्दशी 25 नवंबर और 26 नवंबर दोनों दिन मनाई जाएगी और इस दिन भगवान विष्णु और शिवजी दोनों की समान रूप से पूजा होती है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के परम धाम का द्वार खुला रहता है और इस दिन पूजा करने से मनुष्य को बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है। आइए जानते हैं इस व्रत का महत्व, मान्यताएं और शुभ मुहूर्त।
बैकुंठ चतुर्दशी हर कार्तिक मास की शुक्ल चतुर्दशी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान शिव की पूजा के साथ भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। इस साल बैकुंठ चतुर्दशी 25 नवंबर यानी कि आज है। इस दिन माता पार्वती को जौ के आटे की रोटी बनाकर मां पार्वती को भोग लगाया जाता है और प्रसाद में वो रोटी खाई जाती है। देवीपुराण में लिखा है कि इस दिन मां पार्वती को जौ की रोटी का भोग लगाने से आपके घर में सुख संपत्ति बढ़ती है। आइए जानते हैं बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत पूजाविधि और शुभ मुहूर्त।
कब है बैकुंठ चतुर्दशी
बैकुंठ चतुर्दशी कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी को कहते हैं। मान्यता है कि इस दिन भगवान शिव के साथ श्रीहरि की पूजा करने से आपको बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है और इस लोक में भी सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। बैकुंठ चतुर्दशी का व्रत 25 नवंबर को रखा जाएगा।
महत्व
शिव पुराण में बैकुंठ चतुर्दशी के बारे में बताया गया है कि इस दिन भगवान विष्णु ने काशी जाकर भगवान शिव की पूजा की थी और उनकी पूजा के लिए एक हजार कमल एकत्र किए थे। श्रीहरि ने एक कमल कम पाया तो उन्होंने अपने कमल रूपी नेत्रों को शिवजी के चरणों में अर्पित कर दिया था। इस घटना के बाद भगवान शिव ने हरि को गले लगा लिया और इस प्रकार यह दिन हरि और हर के मिलन का गवाह बना। तब से इस दिन बैकुंठ चतुर्दशी की पूजा होती है।
शुभ मुहूर्त
हिंदू पंचांग के अनुसार बैकुंठ चतुर्दशी तिथि का आरंभ 25 नवंबर की शाम को 5 बजकर 22 मिनट पर होगा और 26 नवंबर दोपहर में 3 बजकर 53 मिनट पर समापन होगा। बैकुंठ चतुर्दशी में भगवान विष्णु की पूजा रात को निशिथ काल में में की जाती है इसलिए बैकुंठ चतुर्दशी का त्योहार 25 नवंबर को मनाया जाएगा। इसमें पूजा का शुभ मुहूर्त निशिथ काल में रात को 11 बजकर 42 मिनट से 12 बजकर 35 मिनट तक है।
पूजाविधि
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें और भगवान विष्णु और शिवजी का ध्यान करते हुए व्रत करने का संकल्प लें। पूजापाठ करें और मंदिर में घी का दीपक जलाकर रखें। ऐसी मान्यता है कि इस एक दिन भगवान शिव को भ्ज्ञी तुलसी का भोग लगाया जा सकता है। महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जप करें और विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।