जिलाधिकारी और वीडीए उपाध्यक्ष के देखरेख में14 सिनेमाघरों का होगा कायाकल्प

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वाराणसी। स्थानीय स्तर पर जिलाधिकारी और वीडीए उपाध्यक्ष को सक्षम अधिकारी बनाया गया है। जिनकी देखरेख में बंद सिनेमाघरों का कायाकल्प होगा। सिनेमाघरों की जमीन का इस्तेमाल शॉपिंग कॉप्लेक्स, पार्किंग और अन्य कार्यों में किया जाएगा। घनी आबादी के सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के बंद होने से यह जर्जर हालत में हैं। नए निर्माण से सरकार को राजस्व मिलेगा।

काशी के बंद चौदह सिनेमाघरों के दिन बहुरेंगे। कायाकल्प होने से एक ही छत के नीचे सभी सुविधाएं मिलेंगी। इनमें प्राची, मजदा, साजन, लक्ष्मी, अभय, यमुना, शिल्पी, नटराज, छविमहल, मजदा, सुशील, कामाक्षी,आनंद, गंगा पैलेस सिनेमाघर शामिल हैं। जो कई वर्ष से बंद हैं। इस संबंध में शासन की ओर से पत्र जारी किया गया है। कहा गया है कि बंद पड़े सिनेमाघरों को तोड़कर सिनेमाहाल सहित व्यवसायिक कॉप्लेक्स अन्य निर्माण की अनुमति दी जाए।

स्थानीय स्तर पर जिलाधिकारी और वीडीए उपाध्यक्ष को सक्षम अधिकारी बनाया गया है। जिनकी देखरेख में बंद सिनेमाघरों का कायाकल्प होगा। सिनेमाघरों की जमीन का इस्तेमाल शॉपिंग कॉप्लेक्स, पार्किंग और अन्य कार्यों में किया जाएगा। घनी आबादी के सिंगल स्क्रीन सिनेमाघरों के बंद होने से यह जर्जर हालत में हैं। नए निर्माण से सरकार को राजस्व मिलेगा। सिनेमा एसोसिएशन से भी अनुरोध किया गया है कि वे सहयोग करें। सिनेमाघर से जुड़े मनीष तिवारी ने बताया कि 2006 में लखनऊ के बाद ईस्टर्न यूपी का पहला मॉल आईपी सिगरा खुला था। इसके बाद आईपी विजया, जेएचवी और पीडीआर खुले। कन्हैया चित्र मंदिर को रेनोवेट कर केसीएम खुला, लेकिन सिंगल स्क्रीन होने के कारण कुछ दिनों बाद बंद हो गया। इसके अलावा चौदह सिनेमाघर बंद चल रहे हैं। सिनेमा एसोसिएशन की ओर से लंबे समय से मांग की जा रही थी। शासन से शर्त थी कि सिनेमाघर की जमीन पर सिनेमाघर के बाद ही कोई दूसरा इस्तेमाल किया जाए। इस नाते जितने भी सिनेमाघर के मालिक थे, उन्होंने घाटे का सौदा जानकर इसे बंद कर दिया।

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बनारस के सिनेमाघरों में शोले, नदिया के पार, निकाह,आंखें जैसी फिल्मों के लिए लंबी कतारें लगती थी। दस रुपये के टिकट के लिए तीस-तीस रुपये लोग अदा कर फिल्में देखते थेे। टिकटों के लिए मारामारी रहती थी। जिस थाना क्षेत्र में सिनेमाघर थे। वहां से पुलिस की ड्यूटी लगाई जाती थी। कई बार टिकट काउंटर पर पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ा था, लेकिन डिजिटल युग आने से सिनेमाघरों पर ताले लटक गए। लोग मोबाइल और मॉल में फिल्म देखने लगे।


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