50 की मौत,255 से अधिक घायल,हिंसा की आग में जला ये पाकिस्तानी इलाका?

50 की मौत,255 से अधिक घायल,हिंसा की आग में जला ये पाकिस्तानी इलाका?
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नई दिल्ली। पाकिस्तान के अशांत उत्तर-पश्चिमी कुर्रम जिले में हिंसक झड़पों में शामिल जनजातियों ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। लगभग एक सप्ताह से जारी हिंसक झड़पों में 50 लोगों की मौत हो गई और 225 से अधिक लोग घायल हुए हैं।

अधिकारी ने बताया कि गुरुवार को जिरगा (स्थानीय पंचायत) नेताओं के हस्तक्षेप के बाद शांति समझौता किया गया।

समझौते के बाद रुकी हिंसा
उपायुक्त जावेद उल्लाह महसूद ने कहा कि शांति समझौते के बाद कुर्रम जिले में झड़पें बंद हो गई हैं। बता दें यह जिला अफगानिस्तान की सीमा से लगे खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में आता है।

अधिकारियों ने बताया कि शांति समझौता कुर्रम जिले में संघर्षरत शिया और सुन्नी गुटों के बीच दो अलग-अलग आयोजित जिरगा बैठकों में हुआ। दोनों पक्षों के प्रमुख लोगों ने समझौते पर हस्ताक्षर किये।

देना होगा करोड़ों का जुर्माना
समझौते के तहत दोनों जनजातियां सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने में सरकार के साथ सहयोग करने पर सहमत हुईं। समझौते के अनुसार, शांति समझौते का उल्लंघन करने वाले किसी भी पक्ष को 12 करोड़ रुपये तक का जुर्माना देना होगा। इसके अलावा, जिले के सभी मुख्य राजमार्गों और सड़कों पर कड़ी सुरक्षा सुनिश्चित की जाएगी। अंतर जिला सड़कें वाहनों के आवागमन के लिए खोल दी गई हैं।

अधिकारियों ने आदिवासी बुजुर्गों, सैन्य नेतृत्व, पुलिस और जिला प्रशासन की मदद से रविवार को शिया और सुन्नी जनजातियों के बीच समझौता करवाया।

अफगानिस्तान से सटा है कुर्रम
कुर्रम, एक पहाड़ी क्षेत्र है जो खैबर पख्तूनख्वा के उत्तर-पश्चिमी प्रांत में अफगानिस्तान के साथ एक लंबी सीमा साझा करता है।

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अलजजीरा की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां लगभग 700,000 लोग रहते हैं, जिनमें से 42 प्रतिशत से अधिक शिया समुदाय के हैं।

यह पाकिस्तान के किसी भी बड़े शहर की तुलना में अफगानिस्तान की राजधानी काबुल के ज़्यादा नज़दीक है।

इसकी सीमा अफगानिस्तान के खोस्त, पक्तिया, लोगर और नंगरहार प्रांतों से भी लगती है, जिन्हें आईएसआईएल (आईएसआईएस) और पाकिस्तान तालिबान (टीटीपी) जैसे शिया विरोधी सशस्त्र समूहों के लिए पनाहगाह माना जाता है।

इस क्षेत्र में शिया और सुन्नी बहुसंख्यक समूहों के बीच सांप्रदायिक संघर्ष का इतिहास रहा है और पिछले दशक के दौरान इसने उग्रवाद का भी सामना किया है, जिसमें टीटीपी और अन्य सशस्त्र समूहों द्वारा शिया समुदाय को निशाना बनाकर लगातार हमले किए गए हैं।

मौजूदा संघर्ष की जड़ें
स्थानीय अधिकारियों और आदिवासी नेताओं के अनुसार, मौजूदा संघर्ष की जड़ें शिया-बहुसंख्यक और सुन्नी-बहुसंख्यक जनजातियों के बीच चल रहे भूमि विवाद में हैं। पिछले साल भी इसी तरह की एक और घटना हुई थी, जिसके परिणामस्वरूप कम से कम 20 लोगों की मौत हो गई थी।

स्थानीय शांति समिति के सदस्य और इस सप्ताह बैठक करने वाले जिरगा के सदस्य महमूद अली जान का कहना है कि संघर्ष शिया बहुल जनजाति मालेखेल और सुन्नी बहुल जनजाति मादगी कलाय के बीच बोशेहरा गांव में एक जमीन को लेकर हुआ। यह जमीन पाराचिनार शहर से 15 किमी (9 मील) दक्षिण में स्थित है।

जान कहते हैं कि स्थानीय शांति समिति, जिसमें शिया और सुन्नी दोनों जनजातियों के सदस्य शामिल थे, ने तुरंत स्थिति को शांत करने की कोशिश की और सरकार से हस्तक्षेप करने को कहा। उनका कहना है कि सरकार ने प्रतिक्रिया देने में देर कर दी।

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जान ने दावा किया, ‘शुरू में राज्य पूरी तरह से अनुपस्थित था, जिसके कारण इतनी लड़ाई हुई। क्षेत्र में सैन्य और अर्धसैनिक बलों की भारी मौजूदगी के बावजूद उन्होंने हस्तक्षेप नहीं किया और न ही सेना या पुलिस भेजी।’

पुलिस खारिज किए निष्क्रियता के आरोप
हालांकि, जिला पुलिस अधिकारी निसार अहमद खान ने सरकार की निष्क्रियता के आरोपों का खंडन करते हैं। उन्होंने कहा कि जैसे ही लड़ाई शुरू हुई, राज्य ने तुरंत कार्रवाई की। हालांकि, उन्होंने माना कि जनशक्ति की कमी और मुश्किल इलाके ने सरकार की प्रतिक्रिया की गति को बाधित किया।

पुलिस अधिकारी ने अल जजीरा को बताया, ‘हमारे पास सीमित क्षमता है, और कुर्रम अपने पहाड़ी इलाके के कारण एक बड़ा, कठिन क्षेत्र है। अक्सर, हमें उन जगहों तक पहुंचने के लिए घंटों पैदल चलना पड़ता था जहां लड़ाई हो रही थी। साथ ही, अफगानिस्तान के साथ छिद्रपूर्ण सीमा के कारण, कई लोगों के पास अत्याधुनिक हथियार हैं, जिससे यह और भी मुश्किल हो जाता है।’


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