68,000 सैनिक, 90 टैंक…गलवान झड़प के बाद बालाकोट की तर्ज पर चीन सीमा पर हो गई थी पूरी तैयारी?

68,000 सैनिक, 90 टैंक…गलवान झड़प के बाद बालाकोट की तर्ज पर चीन सीमा पर हो गई थी पूरी तैयारी?
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नई दिल्ली। 15 जून, 2020 को गलवान घाटी में भारत और चीन के बीच हुई झड़प के बाद भारत ने चीन को मजा चखाने की पूरी तैयारी करली थी। गलवान घाटी में हिंसक झड़पों के बाद वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तेजी से तैनाती के लिए भारतीय वायुसेना ने 68,000 से अधिक सैनिकों, 90 से अधिक टैंक और अन्य हथियार प्रणालियों को देशभर से पूर्वी लद्दाख में पहुंचाया था।

हवाई गश्त के लिए तैनात थे राफेल और मिग-29
चीन सेना पर 24 घंटे रखी जा रही थी निगरानी

LAC पर दोनों ओर से तैनात हैं 50,000 से 60,000 सैनि
गलवान में झड़पों के बाद, हवाई गश्त के लिए राफेल और मिग-29 विमानों सहित बड़ी संख्या में लड़ाकू विमानों को भी तैनात किया गया था। जबकि वायुसेना के अलग-अलग हेलीकॉप्टर को गोला-बारूद और सैन्य साजो-सामान को पर्वतीय ठिकानों तक पहुंचाने के काम लगाया गया था। दुर्गम क्षेत्रों में त्वरित तैनाती के लिए वायुसेना के परिवहन बेड़े ने सैनिकों और हथियारों को बहुत कम समय के अंदर पहुंचा दिया था।

24 घंटे रखी जा रही थी निगरानी
रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान के शीर्ष सूत्रों के हवाले से भाषा ने बताया कि दोनों पक्षों के बीच 15 जून 2020 को हुई सर्वाधिक गंभीर सैन्य झड़पों में भारतीय वायुसेना ने लड़ाकू विमानों के कई स्क्वाड्रन को तैयार स्थिति में रखने के अलावा, दुश्मन के जमावड़े की चौबीसों घंटे निगरानी और खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के लिए अपने एसयू-30 एमकेआई और जगुआर लड़ाकू विमान को तैनात किया था। वायुसेना ने चीन की गतिविधियों पर पैनी नजर रखने के लिए क्षेत्र में बड़ी संख्या में रिमोट संचालित विमान (RPA) भी तैनात किए थे।

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इन हथियारों को किया गया तैनात
वायुसेना के विमानों ने भारतीय सेना के कई डिवीजन को एयरलिफ्ट किया, जिसमें कुल 68,000 से अधिक सैनिक, 90 से अधिक टैंक, पैदल सेना के करीब 330 बीएमपी लड़ाकू वाहन, राडार प्रणाली, तोपें और कई अन्य साजो-सामान शामिल थे। सूत्रों के अनुसार, वायुसेना के परिवहन बेड़े द्वारा कुल 9,000 टन की ढुलाई की गई, जो वायुसेना की बढ़ती रणनीतिक एयरलिफ्ट क्षमता को दिखाता है। इस कवायद में C-130J सुपर हरक्यूलिस और C-17 ग्लोबमास्टर विमान भी शामिल थे।

सूत्रों ने कहा कि एसयू-30 एमकेआई और जगुआर लड़ाकू विमानों की निगरानी की सीमा लगभग 50 किलोमीटर थी और उन्होंने सुनिश्चित किया कि चीनी सैनिकों की स्थिति और गतिविधियों पर पैनी नजर रखी जाए। सूत्रों के मुताबिक वायुसेना ने विभिन्न राडार स्थापित करके और क्षेत्र में एलएसी के ठिकानों पर सतह से हवा में मार करने वाले निर्देशित हथियारों की तैनाती करके अपनी वायु रक्षा क्षमताओं और युद्ध की तैयारी को तेजी से बढ़ाया है।

थलसेना ने भी उठाए कदम
गलवान घाटी में हुई झड़पों के बाद से थलसेना ने भी अपनी लड़ाकू क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। इसने पहले ही अरुणाचल प्रदेश में एलएसी के साथ पर्वतीय क्षेत्रों में आसानी से ले जाने योग्य एम-777 अल्ट्रा-लाइट हॉवित्जर तोपें अच्छी-खासी संख्या में तैनात कर दी हैं। M-777 को चिनूक हेलीकॉप्टर में शीघ्रता से ले जाया जा सकता है और सेना के पास अब अभियानगत आवश्यकताओं के आधार पर उन्हें शीघ्रता से एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने का साधन है।

करीब 3 साल से चल रहा गतिरोध
बता दें, भारतीय और चीनी सेना के बीच पूर्वी लद्दाख में कुछ स्थानों पर तीन साल से अधिक समय से गतिरोध बना हुआ है, जबकि दोनों पक्षों ने व्यापक राजनयिक और सैन्य वार्ता के बाद कई क्षेत्रों से सैनिकों को पीछे हटाने की प्रक्रिया पूरी कर ली है। गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच टकराव के बाद भारत और चीन के संबंधों में काफी गिरावट आई। एलएसी पर दोनों ओर वर्तमान में लगभग 50,000 से 60,000 सैनिक तैनात हैं। पैंगोंग झील क्षेत्र में हिंसक झड़प के बाद पांच मई 2020 को पूर्वी लद्दाख सीमा पर गतिरोध पैदा हुआ था।

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