बुद्ध पूर्णिमा पर नेपाल गए PM मोदी,विरासत से कैसे मजबूत होगी वैश्विक सियासत

बुद्ध पूर्णिमा पर नेपाल गए PM मोदी,विरासत से कैसे मजबूत होगी वैश्विक सियासत
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नई दिल्ली। शेर बहादुर देउबा ने बीते साल जुलाई में जब नेपाल की कमान संभाली थी, तभी से यह अनुमान लगाए जाने लगे थे कि उनके दौर में भारत से दोस्ती बढ़ेगी। उनसे पहले पीएम रहे केपी शर्मा ओली को चीन का करीबी माना जाता था,जबकि देउबा सभी देशों के साथ समान रिश्तों के पक्षधर रहे हैं। इसके अलावा भारत से उनकी करीबी भी रही है। एक साल पहले बेहतर रिश्तों के लिए लगाए गए कयास अब सही साबित होते दिख रहे हैं और इसमें भारत के पीएम नरेंद्र मोदी की अहम भूमिका है। वह आज बुद्ध पूर्णिमा के मौके पर नेपाल के दौरे पर हैं। इस दौरान वह महात्मा बुद्ध के जन्मस्थान लुंबिनी में पीएम शेर बहादुर देउबा से मुलाकात करेंगे। इससे पहले वह कुशीनगर पहुंचे, जहां उन्होंने महात्मा बुद्ध के महापरिनिर्वाणस्थल पर श्रद्धांजलि अर्पित की।

क्यों बुद्ध पूर्णिमा पर ही नेपाल गए हैं पीएम मोदी
हालांकि एक अहम सवाल यह भी है कि पीएम नरेंद्र मोदी ने नेपाल विजिट के लिए बुद्ध पूर्णिमा का दिन ही क्यों चुना है? दरअसल प्रतीकों के जरिए बड़े संदेश देने में माहिर पीएम नरेंद्र मोदी जानते हैं कि महात्मा बुद्ध कैसे नेपाल और भारत की साझा विरासत हैं। नेपाल पड़ोसी देश के साथ ही भारत का सांस्कृतिक साझेदार भी रहा है और काफी करीब रहा है। हालांकि बीते कुछ वर्षों में अलग-अलग सरकारों के दौर में नेपाल की चीन से भी करीबी बढ़ी है, लेकिन भारत का असर अब भी उस पर गहरा है। इसी असर को बनाए रखने और सांस्कृतिक एकता का संदेश देने के लिए पीएम मोदी ने यह अवसर चुना है। बुद्ध का जन्म नेपाल के लुंबिनी में हुआ था तो उनकी ज्ञानस्थली बिहार का गया बना था और यूपी के कुशीनगर में उन्होंने निर्वाण प्राप्त किया था।

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कुशीनगर एयरपोर्ट के उद्घाटन से दिया संदेश
इसके अलावा मगध साम्राज्य के दौर में ही बौद्ध मत का दुनिया में प्रसार हुआ था और श्रीलंका से लेकर पूर्वी एशिया तक के देशों में इसे फैलाने के लिए सम्राट अशोक ने बौद्ध भिक्षुओं को भेजा था। इसी प्राचीन विरासत के जरिए भारत और नेपाल मौजूदा वैश्विक सियासत में करीब आने की कोशिश कर रहे हैं। पीएम मोदी ने पिछले साल अक्टूबर में कुशीनगर इंटरनेशनल एयरपोर्ट का भी उद्घाटन किया था, जिसे बुद्ध सर्किट के लिए अहम माना जा रहा है। बता दें कि भारत सरकार ने बुद्ध सर्किट को विकसित करने का काम शुरू किया है और इस एयरपोर्ट के जरिए नेपाल से लेकर भारत तक में महात्मा बुद्ध के स्थानों पर पहुंचना दुनिया भर के लोगों के लिए आसान हो सकेगा।

बौद्ध धर्म के संरक्षक की छवि पेश करने का प्रयास
एक तरफ भारत में सारनाथ, बोधगया, नालंदा जैसे स्थान हैं तो वहीं नेपाल में भी लुंबिनी है। इस तरह एक पूरा सर्किट उत्तर प्रदेश, बिहार राज्य और नेपाल को मिलकर बनता है। इसे भारत टूरिज्म के साथ ही नेपाल से बेहतर रिश्तों के तौर पर भी भुनाना चाहता है, जो बीते कुछ सालों में चीन के करीब भी जाता दिखा था। तिब्बती बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा भी भारत के धर्मशाला में रहते हैं। वहीं से तिब्बत की निर्वासित संसद का भी संचालन होता है। इस तरह भारत खुद को दुनिया में बौद्ध मत के संरक्षक के तौर पर पेश करना चाहता है।


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