निजीकरण नहीं होने के मंत्री के बयान के बाद अब प्रक्रिया निरस्त करने और उत्पीड़न वापस लेने की मांग
वाराणसी (जनवार्ता): विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति के बैनर तले बनारस के बिजली कर्मियों ने सिगरा स्थित अधीक्षण अभियंता कार्यालय पर निजीकरण के खिलाफ और स्मार्ट मीटर लगाने का जमकर विरोध किया। कर्मियों ने ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा के 24 दिसंबर को विधानसभा में दिए बयान का हवाला देते हुए पूछा कि जब निजीकरण का कोई निर्णय ही नहीं है, तो पिछले 13 महीनों में की गई सारी प्रक्रिया क्यों नहीं निरस्त की जा रही?


प्रदर्शनकारियों ने कहा कि पावर कॉर्पोरेशन के चेयरमैन द्वारा 25 नवंबर 2024 को पूर्वांचल और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम के निजीकरण की एकतरफा घोषणा के बाद से कर्मी लगातार आंदोलनरत हैं। ठीक 13 महीने बाद ऊर्जा मंत्री ने सदन में स्पष्ट किया कि निजीकरण पर कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया है। फिर सवाल उठता है कि चेयरमैन ने निजीकरण की घोषणा क्यों की? अवैध रूप से ट्रांजैक्शन कंसल्टेंट ग्रांट थॉर्टन की नियुक्ति क्यों हुई, जिसमें करोड़ों रुपये खर्च हुए? इसी कंसल्टेंट से RFP दस्तावेज तैयार कराकर नियामक आयोग को भेजा गया, जिस पर आयोग ने आपत्ति जताई।
कर्मियों ने आरोप लगाया कि निजीकरण के नाम पर विवादित निदेशक (वित्त) निधि नारंग को तीन बार सेवा विस्तार दिया गया, जिससे पावर कॉर्पोरेशन को नुकसान हुआ। साथ ही, शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे कर्मियों पर पिछले 13 महीनों में विभिन्न उत्पीड़नात्मक कार्रवाइयां की गईं, जिससे ऊर्जा निगमों का कार्य वातावरण बिगड़ गया। इन कार्रवाइयों के लिए जिम्मेदार कौन है? समिति ने मांग की कि निजीकरण की सारी प्रक्रिया तत्काल निरस्त हो और कर्मियों पर की गई सभी उत्पीड़नात्मक कार्रवाइयां वापस ली जाएं।
सभा को ई. मायाशंकर तिवारी, राजेंद्र, ई. अवधेश मिश्रा, सिंह, संदीप कुमार, राजेश सिंह, अजय मौर्य, जे.पी.एन. सिंह, जमुना पाल, अशोक कुमार, मनोज जैसवाल आदि ने संबोधित किया। प्रदर्शनकारी मंत्री के बयान को महत्वपूर्ण बताते हुए बोले कि इसे प्रमुख अखबारों जैसे इकोनॉमिक टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया ने फ्रंट पेज पर छापा, जबकि PTI ने देशभर में प्रसारित किया।
कर्मियों का कहना है कि अब समय आ गया है कि प्रबंधन निजीकरण की प्रक्रिया स्वीकार कर निरस्त करे और उत्पीड़न वापस ले। आंदोलन जारी रहेगा जब तक मांगें पूरी नहीं होतीं।

