वाराणसी में आगमन संस्था ने अजन्मी बेटियों के मोक्ष की कामना से श्राद्ध और तर्पण किया

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गर्भ में मारी गई अजन्मी बेटियों के मोक्ष के लिए सोमवार को काशी में श्राद्ध किया गया। दशाश्वमेध घाट पर आगमन सामाजिक संस्था ने अजन्मी बेटियों के मोक्ष की कामना से वैदिक रीति रिवाज के साथ श्राद्ध-तर्पण किया। आचार्य पं. दिनेश शंकर दुबे के आचार्यत्व में पांच ब्राह्मणों द्वारा अनुष्ठान कराया गया। संस्था के संस्थापक सचिव और श्राद्धकर्ता डॉ संतोष ओझा ने 13 हजार बेटियों का पिंडदान किया।

इस आयोजन में समाज के अलग अलग वर्ग के लोग न सिर्फ साक्षी बने बल्कि उन्होंने मृतक बच्चियों को पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित की।  श्राद्ध का आयोजन उन अजन्मी बेटियों के लिए किया गया जिनको जन्म से पहले ही उनके माता-पिता ने कोख में मार दिया। 

बेटी बचाओ अभियान में पूर्वांचल की अग्रणी सामाजिक संस्था आगमन हर साल पितृपक्ष के मातृ नवमी तिथि को ये अनुष्ठान करती है। पिछले 9 सालों से इस अनूठे आयोजन को कर उन्हें मोक्ष का अधिकार दिला रही है। संस्था की ओर से अब तक 66 हजार अजन्मी बेटियों का मोक्ष की कामना से श्राद्ध और तर्पण किया जा चुका है।

संस्था के संस्थापक सचिव डॉ. संतोष ओझा ने बताया कि 9 वर्षों से अजन्मी बेटियों की आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध का आयोजन करते आ रहे हैं। संस्था मानना है कि गर्भपात महज एक ऑपरेशन नहीं बल्कि हत्या है। ऐसे में कोख में मारी गई उन बेटियों को भी मोक्ष मिले और समाज से ये कुरीति दूर हो इसके लिए हम लोग ये आयोजन करते हैं। 

सोमवार को दशाश्वमेध घाट पर श्राद्ध क्रम की शुरुआत शांति वाचन से हुआ जिसके बाद अलग- अलग 13 हजार अनाम, ज्ञात और अज्ञात बेटियों के पिंड को स्थापित कर विधिपूर्वक आह्वान कर पूजा अर्चन कर उनके मोक्ष की कामना की गई। गंगा की मध्य धारा में पिंड विसर्जन के बाद सभी को जल अर्पित कर तृप्त होने का निवेदन किया गया।

पितृ पक्ष की नवमी तिथि मातृ शक्ति के लिए जानी जाती है। इसलिए मातृशक्ति को नमन करते हुए कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ विशेष आयोजन काशी में किया गया।  माना जाता है कि भ्रूण में प्राण वायु आने के बाद हुआ गर्भपात जीव ह्त्या है। उन्हीं अजन्मी अतृप्त आत्माओं को सदगति प्रदान करने के लिए वैदिक ब्राम्हणों के आचार्यत्व में शास्त्रीय रीतियों से सोमवार दोपहर दशाश्वमेध घाट पर श्राद्ध कर्म आयोजित किया गया।  


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