अभिनव ने अमेरिका में की बड़ी वैज्ञानिक खोज

अभिनव ने अमेरिका में की बड़ी वैज्ञानिक खोज
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जौनपुर। जौनपुर के छोटे से गांव समसपुर के रहने वाले डॉ. अभिनव मौर्य ने अमेरिका में बड़ी खोज की है। वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में उनकी खोज ने बीते चार दशकों से वैज्ञानिकों द्वारा किए जा रहे शोधों को बिल्कुल नया आयाम दिया है। इस खोज को उन्होंने सीड प्राइमिंग और डायरेक्ट एक्टिविज्म ऑफ प्लांट डिफेंड मैकेनिज्म नाम दिया है।

अब तक वैज्ञानिक यह मानते रहे हैं कि वनस्पतियां गंध के आधार पर एक दूसरे से बातचीत करती हैं। डॉ अभिनव मौर्या के ताजा शोध में इससे भी आगे की कई पुख्ता जानकारियां जुटाई गई हैं। उन्होंने यह साबित कर दिया है कि वनस्पतियों पर किसी रोग या कीट का हमला होने से पहले ही वे गंध के आधार पर भावी खतरे का अनुमान लगा लेती हैं। हमले के पहले स्वयं को उसके लिए तैयार कर लेती हैं। वनस्पतियों में गंध ग्रहण करने की क्षमता उनके बीजों में ही छिपी होती है।

बीएचयू के कृषि विज्ञान संस्थान के पूर्व छात्र डाॅ. अभिनव मौर्य ने शोध में पाया पौधे के बीज अपने वातावरण में मौजूद गंध सूंघकर आगामी खतरे के अनुरूप अपने अंदर प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं। रोगों या कीटों के पहले आक्रमण में भले ही वनस्पतियां क्षतिग्रस्त हो जाएं लेकिन दूसरा आक्रमण उन पर बेअसर हो जाता है। बीज के अंकुरण के दौरान ही उसके अंदर रोग और कीट प्रतिरोधक क्षमता विकसित होनी शुरू हो जाती है। जैसे इंसानों में स्मृति होती हैं उसी प्रकार बीजों में भी स्मृतियां होती हैं जो सूचनाओं को संग्रहित कर लेती हैं। उसके हिसाब से अपना विकास शुरू कर देती हैं।

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मेडिकागो और अर्बिडॉप्सिस के पौधों पर किया शोध:
डॉ.अभिनव ने इस शोध के लिए मेडिकागो और अर्बिडॉप्सिस के पौधों को चुना। इनके बीजों पर कीड़े की गंध छोड़ी। जब ये अंकुरित होकर पौधा बने तो उनमें उनमें उस खास कीट से मुकाबला करने वाली प्रतिरक्षा प्रणाली मिली। अब इससे आगे की शोध में भी लग गए हैं डॉक्टर अभिनव यह पता लगाने में जुटे हैं कि आखिर वह कौन सा जीन है जो बीजों की मेमोरी और प्रतिरक्षा प्रणाली के विकास के लिए जिम्मेदार है। यह शोध हाल ही में अमेरिका के प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जरनल केमिकल इकोलॉजी में प्रकाशित हुआ है।

दवा तैयार करना है अगला लक्ष्य:
डॉ. मौर्य ने बताया कि उनका लक्ष्य देश दुनिया के तमाम बड़े वैज्ञानिकों के साथ मिलकर कीटों की गंध से नेचुरल यूनिटी बूस्टर तैयार करने का है। यदि दवा बनाकर इनका गंध बीजों को सूंघा दें तो वह भविष्य के किसी भी खतरे पूरी तरह सुरक्षित हो जाएगा। ऐसा करके फसलों को कीटों अथवा रोगों के हमलों से पूरी तरह सुरक्षित किया जा सकेगा।

डॉ अभिनव मौर्य के बारे में
बीएचयू से बीएससी एजी करने के बाद अभिनव ने आगे की पढ़ाई के लिए 2013 में आईआईएम अहमदाबाद ज्वाइन किया। इसी बीच उन्हें अमेरिका से रिसर्च फेलोशिप मिल गई। अमेरिका में उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ नॉदर्न कोलेराडो से एमएससी तथा यूनिवर्सिटी ऑफ लुइसविले से पीएचडी पूरी की। डा.अभिनव के पिता एडवोकेट अवधेश मौर्य,मां गृहिणी गायत्री देवी भी नहीं बल्कि बीएचयू के कृषि विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिक प्रो.अमिताभ रक्षित और पूर्व निदेशक प्रो रमेश चंद भी डॉ अभिनव की इस खोज से स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं

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