काशी में करें शक्तिपीठ के दर्शन, यहां गिरे थे मां सती के कान के कुंडल

काशी में करें शक्तिपीठ के दर्शन, यहां गिरे थे मां सती के कान के कुंडल

शारदीय नवरात्री | 26 सितंबर 2022 से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो रही है. नौ दिनों के इस पर्व में माता के नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है. नवरात्रि के पहले दिन भक्त अपने घरों में कलश स्थापना कर देवी मां का स्वागत करते हैं. ऐसी मान्यता है कि इन नौ दिन माता भक्तों के घर में वास करती हैं. वैसे तो पूरे देश में देवी मां के कई स्वरूपों के कई प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है, जिनकी अपनी महिमा हैं. 

श्री विशालाक्षी मंदिर 

वाराणसी में काशी विश्‍वनाथ मंदिर’ से कुछ किलोमीटर की दूरी पर माता का विशालाक्षी मंदिर है. विशालाक्षी मंदिर मां गंगा के तट पर स्थित मणिकर्णिका घाट पर स्थित है. देवी पुराण में भी काशी के विशालाक्षी मंदिर का उल्लेख मिलता है. पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आए. भगवान शिव वियोग में सती के मृत शरीर को अपने कंधे पर रखकर घूम रहे थे, तब मां भगवती के दाहिने कान की मणि इसी जगह पर गिरी थी.  इसलिए इस जगह को मणिकर्णिका घाट भी कहते हैं.  यह भी कहा जाता है कि यहां भगवती का कान का कुण्डल गिरा था. यहां जो कोई भी सच्चे मन से प्रार्थना करता है उसकी इच्छा पूरी होती है.

नवरात्रि की पंचमी को नौ गौरी स्वरूप में भी मां विशालाक्षी का दर्शन होता है.  मां विशालाक्षी के दर्शन से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं और सुख, समृद्धि व यश बढ़ता है. मंदिर में मां विशालाक्षी की दो मूर्तियां हैं.  सन् 1971 में अभिषेक कराते समय पुजारी की गलती से मां की मुख्य प्रतिमा की अंगुली खण्डित हो गयी थी. जिसके बाद खंडित प्रतिमा के आगे मां की दूसरी प्रतिमा प्रतिष्ठापित की गई.

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