हाईकोर्ट का आदेश: दालमंडी, वाराणसी स्थित मकान को बिना अधिग्रहण के नहीं तोड़ा जा सकता

हाईकोर्ट का आदेश:        दालमंडी, वाराणसी स्थित मकान को बिना अधिग्रहण के नहीं तोड़ा जा सकता
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दालमंडी रोड चौड़ीकरण का मामला

वाराणसी(जनवार्ता)। इलाहाबाद उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने शहनवाज़ खान द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह स्पष्ट किया है कि जब तक संपत्ति का स्वामित्व वैधानिक प्रक्रिया द्वारा प्राप्त नहीं किया जाता, तब तक न तो याचिकाकर्ता को बेदखल किया जा सकता है और न ही उसके निर्माण को ध्वस्त किया जा सकता है।

यह याचिका मकान संख्या CK39/5, मोहल्ला कुंडीनगर, टोला वार्ड चौक, तहसील एवं जनपद वाराणसी, जो दलमंडी क्षेत्र में स्थित है, को लेकर दायर की गई थी। याचिकाकर्ता का कहना था कि यह संपत्ति उनके स्वामित्व में है, जिसका नाम नगर निगम अभिलेखों में दर्ज है, फिर भी राज्य सरकार बिना किसी अधिग्रहण या मुआवज़े के मकान को तोड़ने और बेदखल करने की योजना बना रही है।

प्रतिवादी:

  • राज्य सरकार सहित चार पक्ष प्रतिवादी थे, जिन्होंने जवाब में यह स्पष्ट किया कि दलमंडी रोड को चौड़ा करने के लिए परियोजना प्रस्तावित है और जिन भवनों को प्रभावित किया जाएगा, उनके अधिग्रहण की प्रक्रिया या आपसी सहमति से क्रय का मार्ग अपनाया जाएगा।

न्यायालय की टिप्पणी:
न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता एवं न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की खंडपीठ ने कहा:

“प्रतिवादी याचिकाकर्ता के कब्जे में बाधा नहीं डालेंगे और न ही उसके निर्माण को ध्वस्त करेंगे, जब तक कि संपत्ति का वैधानिक रूप से अधिग्रहण न हो जाए या किसी अन्य विधिसम्मत माध्यम से स्वामित्व प्राप्त न कर लिया जाए।”

अधिवक्तागण:

  • याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता  राकेश पांडे, अधिवक्ता मनीष सिंह और श्रीमती सुषमा सिंह ने पक्ष रखा।
  • राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता एम.सी. चतुर्वेदीराज्य विधि अधिकारी राजीव सिंह उपस्थित रहे।
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योजना का विवरण:
राज्य सरकार की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया कि दलमंडी रोड के चौड़ीकरण एवं सुदृढ़ीकरण के लिए 22059.46 लाख रुपये का प्रारंभिक प्रस्ताव भेजा गया है। लोक निर्माण विभाग द्वारा प्रभावित भवनों की सीमांकन प्रक्रिया भी की गई है।
यह आदेश नागरिकों के संपत्ति अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक सशक्त कदम माना जा रहा है। न्यायालय ने दो टूक शब्दों में कहा कि वैधानिक प्रक्रिया के बिना किसी भी व्यक्ति को उसके कब्जे और निर्माण से वंचित नहीं किया जा सकता।

कई अन्य याचिकाकर्ताओं के पक्ष में भी इसी तरह के फैसले हुए हैं।


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