बिहार में बवाल,पटना में इफ्तार,’सुशासन’ और ‘सेक्युलर’ सरकार को समझिए?

बिहार में बवाल,पटना में इफ्तार,’सुशासन’ और ‘सेक्युलर’ सरकार को समझिए?
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बिहार। में रामनवमी के बाद भड़की हिंसा की आग अब धीरे-धीरे राख में तब्दील हो रही है। सासाराम और बिहारशरीफ में तनाव के साथ शांति है,लेकिन पटना में सियासी बवाल मचा हुआ है। असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम ने नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की सेक्युलर सरकार पर निशाना साधा है। बीजेपी हिंदुओं के मुद्दे पर पहले से हमलावर है।

हिंसा के 5 दिन बाद मीडिया के सामने आए डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने दंगाइयों पर कठोर कार्रवाई करने की बात कही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पहले ही किसी को छोड़ा नहीं जाएगा की बात कह चुके हैं, लेकिन सवाल पुलिस के रहते हुए दंगा कैसे हुआ, इसको लेकर उठाया जा रहा है।

एआईएमआईएम दंगे के बीच नीतीश कुमार के इफ्तार पार्टी में शामिल होने को लेकर सवाल उठा रही है। पार्टी का कहना है कि जब मुसलमानों में मातम पसरा था, तब बिहार की सेक्युलर सरकार खजूर खाने में व्यस्त थी।

कांग्रेस के कद्दावर नेता शकील अहमद ने भी राज्य प्रशासन को नसीहत दी है। उन्होंने कहा कि बीजेपी वोट के लिए दंगा कराती है, जिससे सत्ता हासिल हो सके। हालांकि, दंगों को रोकने की जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। कानून व्यवस्था राज्य का विषय है। भाईचारा और सौहार्द का माहौल बनाना भी प्रशासन की जिम्मेदारी है।

मुख्य आरोपी का पता नहीं, उपद्रवी घर छोड़ भागे
नालंदा के पुलिस अधीक्षक अशोक मिश्रा ने पत्रकारों से बातचीत करते हुए कहा कि उपद्रवियों को गिरफ्तार करने के लिए स्पेशल टीम बनाई गई है। उन्होंने कहा कि जांच के आधार पर जो नाम आ रहे हैं,उसे गिरफ्तार किया जा रहा है।

पुलिस अधीक्षक ने कहा कि कई उपद्रवियों ने घर छोड़ दिया है और दूसरे राज्य भाग गए हैं। उनके घरों की कुर्की की जाएगी। मिश्रा ने कहा कि पुलिस मुख्य आरोपी का पता लगा रही है, जो भी मुख्य आरोपी होगा, उसे कानूनी तरीके से दंड दिलाया जाएगा।

वहीं सासाराम में दंगाग्रस्त इलाकों में पहुंचे पुलिस के मुखिया आरएस भाटी ने पत्रकारों के सवालों का कोई जवाब नहीं दिया।

बिहार में हिंसा पर 3 बड़े बयान…

  1. नीतीश कुमार, मुख्यमंत्री- बिहार में दो जगह पर हिंसा हुई है। एक जगह जिनको जाना था, वहां जानबूझकर कराया गया है। हमने प्रशासन से कह दिया है कि किसी भी जाति-धर्म के नेता हो, उसे छोड़ना नहीं है।
  2. तेजस्वी यादव, उपमुख्यमंत्री-सत्ता रहे या नहीं रहे, बिहार में अमन चैन कायम किया जाएगा। शांति स्थापित करने के लिए जो करना होगा, करेंगे। यह कर्पूरी, नीतीश और लालू का बिहार है। गड़बड़ करने वालों को सीधा कर दिया जाएगा।
  3. असदुद्दीन ओवैसी, AIMIM चीफ- नीतीश और तेजस्वी की सरकार दंगे रोकने में नाकाम रही है। बिहारशरीफ में 100 साल पुराना मदरसा जला दिया गया। नीतीश कुमार को दंगे का अफसोस नहीं है, दंगे के बीच वे इफ्तार में खजूर का मजा लेने पहुंचे थे।
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मुसलमानों की सुरक्षा का मसला फिर गर्म क्यों?
बिहारशरीफ और सासाराम में दंगे के बाद पुलिस की भूमिका को लेकर सवाल उठ रहे हैं। दंगे प्रभावित इलाकों के लोगों का कहना है कि पुलिस के सामने उपद्रवियों ने मकान में आग लगाए।

बिहारशरीफ के अजीजिया मदरसा को उपद्रवियों ने पूरी तरह जला दिया. वहां सदियों पुरानी रखीं किताबें जला दी गईं। उपद्रवी कई घंटों तक बिना डरे हिंसा करते रहे और सरकार पूरे मसले पर चुप रही।

रामनवमी के अगले दिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मुख्य सचिव आमिर सुबहानी, बिहार पुलिस के डीजीपी आरएस भाटी के साथ हाईलेवल मीटिंग की, जिसके बाद प्रशासन एक्टिव हुआ। हालांकि, दोनों जगहों पर दंगे के मुख्य आरोपी अब तक पुलिस की पकड़ से बाहर है।

पुलिसिया चूक के बावजूद सासाराम और नालंदा के बड़े पुलिस अधिकारियों पर अब तक कोई बड़ी कार्रवाई नहीं हुई है। सरकार कार्रवाई को जांच कराने के नाम होल्ड कर दी है।

दंगे के पूरे मसले पर 50 घंटा बाद डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव ने एक ट्वीट किया,जिसके बाद से ही मुस्लिम नेता नीतीश और तेजस्वी सरकार पर हमलावर है। लोग महागठबंधन सरकार को लालू यादव का दौर याद दिला रहे हैं, जब दंगा रोकने के लिए लालू खुद सड़क पर उतर आए थे।

सीतामढ़ी में लालू ने सड़क पर उतरकर रूकवाया था दंगा
साल 1992 में बिहार के सीतामढ़ी में दशहरे के दिन दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन को लेकर दो समुदाय के बीच हिंसा भड़क गई। देखते ही देखते पूरा जिला जलने लगा। प्रशासन एक जगह पर दंगा कंट्रोल करता था,तो दूसरी जगह पर हिंसा भड़क जा रही थी। दंगे में 5 लोगों की मौत हो चुकी थी।

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दंगे पर कंट्रोल न होता देख लालू यादव ने तुरंत सीतामढ़ी जाने का फैसला किया. लालू सीतमाढ़ी के गेस्ट हाउस से खुली जीप में सड़कों पर उतर आए. लालू यादव डीएम और एसपी के साथ खुद माइक पर कर्फ्यू का ऐलान कर रहे थे।

पूरी रात लालू उपद्रवियों को फसाद करने पर गोली मारने की नसीहत देते रहे। लालू की यह रणनीति काम कर गई और सीतमाढ़ी में दंगा रूक गया. इसके बाद लालू दंगा प्रभावित लोगों के घर गए. साथ ही कई इलाकों में सदभावना मीटिंग की। उस वक्त जनता दल के नेता चंद्रशेखर ने उनके इस कदम की तारीफ की थी।

सेक्युलर सरकार का दावा क्यों, 2 प्वॉइंट्स
कुल 19 विधायक मुस्लिम, इनमें 18 सरकार में शामिल- साल 2020 के विधानसभा चुनाव में बिहार से कुल 19 मुस्लिम विधायक जीतकर सदन पहुंचे. वर्तमान में 12 विधायक आरजेडी से, 4 विधायक कांग्रेस से और एक-एक विधायक जेडीयू, माले और सीपीआई से सरकार में शामिल हैं।

आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस और माले शुरुआत से ही सेक्युलर राजनीति करने का दावा करती रही है। आरजेडी माय (मुस्लिम और यादव) समीकरण के सहारे राजनीति में अपना जनाधार मजबूत की है। 2020 के चुनाव में आरजेडी ने 17 मुसलमानों को टिकट दिया था,जबकि जेडीयू ने 11 और कांग्रेस ने 10 मुस्लिम कैंडिडेट उतारे थे। 2015 में बिहार विधानसभा में 24 मुस्लिम विधायक जीतकर आए थे।

मुसलमान,आरजेडी और कांग्रेस का परंपरागत वोट-आजादी के बाद से अब तक बिहार का मुसलमान आरजेडी और कांग्रेस का परंपरागत वोटबैंक माना जाता रहा है। बिहार में मुस्लिम बहुल जिले किशनगंज में 2019 में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी। 2020 के चुनाव में मुस्लिम बहुल मिथिलांचल और गया क्षेत्र में आरजेडी और कांग्रेस को बड़ी जीत मिली थी।

2020 में घोषणापत्र जारी करते हुए महागठबंधन ने नया आसमान बनाम हिन्दू-मुसलमान का चुनाव बताया था। महागठबंधन के नेताओं ने वादा किया था कि सरकार आने पर नफरतों को दूर किया जाएगा।

2022 में महागठबंधन की सरकार तो बन गई, लेकिन मुसलमानों के मसले पर सबने चुप्पी साध रखी है। दंगे के बाद मुसलमानों का मुद्दा फिर से सियासत के केंद्र में आ गया है।

पर ये आंकड़े आरजेडी के नेताओं को चुभ सकती है…
अमन चैन कायम करने के लिए सरकार को खोने का दावा करने वाले महागठबंधन के नेताओं के ये आंकड़े चुभ सकते हैं। बिहार में महागठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी है आरजेडी, जिसके पास करीब 79 विधायक हैं।

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स्थापना के बाद से ही आरजेडी यादव और मुसलमान गठजोड़ के फॉर्मूले पर आगे बढ़ती रही है। बीच-बीच में दलित और पिछड़ी जातियों के वोटों को भी जोड़ने की कोशिश करती है, लेकिन जनाधार यादव और मुस्लिम वोटबैंक ही है। इसकी 2 वजह है…

  1. आरजेडी के संस्थापक लालू यादव ने 1990 के दौर में बिहार में दंगा-फसाद को रोकने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। राम रथ यात्रा निकाल रहे लालकृष्ण आडवाणी को बिहार में गिरफ्तार किया गया था।
  2. आरजेडी के शासनकाल में लालू यादव ने मुस्लिम नेताओं को खूब आगे बढ़ाया। अली अशरफ फातमी और मोहम्मद तसलिमुद्दीन को केंद्रीय मंत्री बनवाया। अब्दुल बारी सिद्दीकी, सरफराज आलम जैसे नेताओं को राज्य कैबिनेट में जगह दी।

मगर, 2022 में बहुत कुछ बदल गया. तेजस्वी यादव और उनकी पार्टी को नीतीश कैबिनेट में 17 पद मिले। आरजेडी ने 17 में से 7 यादवों को मंत्री बना दिया। कैबिनेट में आरजेडी कोटे से 3 मुसलमान भी शामिल किए गए। आरजेडी को पथ निर्माण, नगर विकास, स्वास्थ्य, ग्रामीण कार्य, वन, राजस्व, कृषि, शिक्षा, उद्योग और सहकारिता जैसे टॉप-10 विभाग मिले।

दिलचस्प बात है कि 10 में से 7 विभाग यादव मंत्रियों को दे दिया गया. टॉप-10 में से एक भी विभाग मुस्लिम कोटे से बने मंत्रियों को नहीं दिया गया। मुस्लिम कोटे से मंत्री इसरायल मंसूरी को आईटी, शमीम अहमद को विधि और शहनवाज को आपदा प्रबंधन जैसे कमतर विभाग दिए गए हैं।

पूरी कैबिनेट की बात करें तो नीतीश सरकार में 5 मुस्लिम मंत्री और 8 यादव शामिल हैं। कांग्रेस और जेडीयू ने एक-एक मुस्लिम नेताओं को कैबिनेट में जगह दी गई है। जेडीयू ने एक बिजेंद्र यादव को अपने कोटे से मंत्री बनाया है। यादव के पास उर्जा जैसे बड़ा विभाग है।

आबादी की बात करें तो बिहार में मुसलमानों की आबादी करीब 17 फीसदी है, जबकि यादवों की आबादी 14 फीसदी के आसपास है। बिहार में 16 फीसदी दलित हैं और 6 फीसदी कोइरी-कुर्मी। सवर्ण जातियों की बात करे तो ब्राह्मण-राजपूत 5-5 फीसदी और भूमिहार 4 फीसदी है।


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