बांग्लादेशी अदालत ने पूर्व पीएम शेख हसीना को सुनाई फांसी की सजा
ढाका (जनवार्ता) : बांग्लादेश के अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी-1) ने सोमवार को पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हिंसक दमन के लिए मानवता के खिलाफ अपराधों का दोषी ठहराते हुए फांसी की सजा सुनाई। हसीना पर यह मुकदमा गैर-हाजिर में चला, क्योंकि वे अगस्त 2024 से भारत में शरणार्थी के रूप में रह रही हैं। इस फैसले ने बांग्लादेश में राजनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया है, जहां ढाका सहित प्रमुख शहरों में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।

मामले की पृष्ठभूमि
यह सजा 2024 के जुलाई-अगस्त में छात्र-नेतृत्व वाले बड़े पैमाने के विरोध प्रदर्शनों से जुड़ी है, जो नौकरी कोटे के खिलाफ शुरू हुए थे और अंततः हसीना सरकार के पतन का कारण बने। संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार कार्यालय की रिपोर्ट के अनुसार, इन प्रदर्शनों के दौरान लगभग 1,400 लोग मारे गए, जिसमें ज्यादातर असैनिक थे। अभियोजन पक्ष ने हसीना को “मास्टरमाइंड” करार देते हुए आरोप लगाया कि उन्होंने सुरक्षा बलों को प्रदर्शनकारियों पर हेलीकॉप्टर, ड्रोन और घातक हथियारों का इस्तेमाल करने का आदेश दिया।
आईसीटी ने हसीना को तीन प्रमुख आरोपों में दोषी पाया: (1) भड़कावा और हत्या के आदेश देना, (2) प्रदर्शनकारियों के खिलाफ घातक बल का इस्तेमाल सुनिश्चित करना, तथा (3) अपराधों को रोकने या दोषियों पर कार्रवाई न करना। मुख्य न्यायाधीश ने फैसले में कहा, “शेख हसीना ने भड़कावे, साजिश और कमांड जिम्मेदारी के माध्यम से मानवता के खिलाफ अपराध किए।” पूर्व गृह मंत्री आसदुज्जमान खान कमाल को भी फांसी की सजा सुनाई गई, जबकि पूर्व पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्लाह अल-मामुन को राज्य साक्षी बनने पर सजा से छूट मिल गई।
हसीना का पक्ष और प्रत्यर्पण की मांग
शेख हसीना ने फैसले को “राजनीतिक रूप से प्रेरित” बताते हुए खारिज कर दिया। उनके बयान में कहा गया, “यह एक पूर्व-निर्धारित ट्रिब्यूनल का फैसला है, जो एक गैर-चुनावित सरकार द्वारा संचालित है। मैं इन आरोपों से इनकार करती हूं और गर्व से कहती हूं कि मेरी सरकार ने मानवाधिकारों की रक्षा की, रोहिंग्या शरणार्थियों को आश्रय दिया और जीडीपी में 450% की वृद्धि सुनिश्चित की।” हसीना ने कभी भी “निरस्त्र नागरिकों पर गोली चलाने का आदेश” देने से इंकार किया है।
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार, जिसके प्रमुख नोबेल विजेता मुहम्मद यूनुस हैं, ने भारत से हसीना के प्रत्यर्पण की मांग की है। अभियोजन पक्ष ने कहा, “हम सभी कानूनी उपाय अपनाएंगे।” हालांकि, भारत ने अब तक कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं दी है, जो हसीना को निकट सहयोगी मानता है। विशेषज्ञों का मानना है कि प्रत्यर्पण की संभावना कम है, लेकिन यह फैसला क्षेत्रीय कूटनीति को प्रभावित कर सकता है।
विवाद और अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
फैसले पर विवादास्पद प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। हसीना की अवामी लीग पार्टी ने इसे “राजनीतिक शिकार” करार दिया और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपील करने की बात कही। संयुक्त राष्ट्र और मानवाधिकार संगठनों ने ट्रिब्यूनल की निष्पक्षता पर सवाल उठाए हैं, इसे “राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों को निशाना बनाने का साधन” बताया। वहीं, अभियोजन पक्ष और पीड़ित परिवारों ने इसे “न्याय की जीत” कहा। बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के नेता मिया गोलाम परवार ने इसे “बांग्लादेश के लिए महत्वपूर्ण दिन” बताया।
देश में बढ़ता तनाव
फैसले के बाद ढाका में सुरक्षा बलों ने “शूट-ऑन-साइट” आदेश जारी किया है। पिछले कुछ दिनों में कच्चे बम विस्फोटों की घटनाएं बढ़ी हैं, हालांकि कोई हताहत नहीं हुआ। विशेषज्ञों का कहना है कि यह फैसला फरवरी 2026 के संसदीय चुनावों से पहले अस्थिरता बढ़ा सकता है, जहां अवामी लीग को पहले ही चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया गया है।
यह फैसला बांग्लादेश की राजनीति में एक नया मोड़ ला सकता है, जहां जवाबदेही और लोकतंत्र के बीच संतुलन की परीक्षा हो रही है। अंतरिम सरकार ने कहा है कि यह “शहीदों के लिए न्याय” सुनिश्चित करने का कदम है।

