बदन पर कपड़े नहीं,शिकार के लिए तीर-धनुष; आज भी हजारों साल पीछे जी रहा है ये भारतीय समुदाय

बदन पर कपड़े नहीं,शिकार के लिए तीर-धनुष; आज भी हजारों साल पीछे जी रहा है ये भारतीय समुदाय
ख़बर को शेयर करे

नई दिल्ली। भारत को विविधताओं वाला देश कहा जाता है। यहां पर तमाम तरह की संस्कृतियों का समावेश देखने को मिलता है। पूर्व से लेकर पश्चिम तक और उत्तर से लेकर दक्षिण तक भारत में आपको ऐसे अनेकों समुदाय मिल जाएंगे जिनकी आपसी संस्कृति मेल नहीं खाती है। हालांकि ये सभी समुदाय दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर आगे चल रहे हैं। भारत अंतरिक्ष को जीतने की तैयारी कर रहा है लेकिन यहां आज भी एक ऐसा समुदाय है जो किसी पाषाण युग के इंसानों की तरह जिंदगी बसर कर रहा है। इनके बदन पर कपड़े नहीं है और ये शिकार करने के लिए तीर-धनुष का इस्तेमाल करते हैं। भारत के अंडमान द्वीप पर रहने वाले जारवा नाम की जनजाति जो आज भी हजारों साल पीछे की जिंदगी बिता रही है।

क्या है इनकी खासियत?
‘अंडमान और निकोबार द्वीप समूह (पर्यटन व्यापार) विनियमन, 2014’ के अनुसार कोई बाहरी शख्स इस जनजाति से नहीं मिल सकता है। जारवा जनजाति की मौजूदा हालत देखी जाए तो इस समय यह काफी संकटग्रस्त स्थिति में हैं। वर्तमान में इनकी जनसंख्या 380 से लेकर 400 के करीब है। जारवा जनजाति के बारे में कहा जाता है कि यह जनजाति पिछले 55,000 सालों से हिंद महासागर के टापूओं पर निवास करती आ रही है। इनके बारे में कहा जाता है कि हजारों साल पहले ये लोग अफ्रीका से आकर यहां बस गए थे।

जारवा जनजाति के बारे में ये भी कहा जाता है कि ये दुनिया की सबसे पुरानी जनजाति हैं और शिकार करने के दौरान ये समूह में रहते हैं। अंडमान निकोबार प्रशासन ने इस जनजाति की किसी भी तरह की तस्वीर सोशल मीडिया पर पोस्ट करने को अपराध की श्रेणी में रखा है। इसे लेकर प्रशासन ने साल 2017 को एक प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की थी जिसमें कहा गया था कि अगर कोई व्यक्ति इस नियम का उल्लंघन करता है तो उसे 3 साल तक की सजा हो सकती है।

इसे भी पढ़े   कौशाम्बी में महिला की हत्या करने वाला आरोपी पुलिस एनकाउंटर में गिरफ्तार

नेग्रिटो समुदाय की जनजाति है जारवा
अंडमान निकोबार द्वीप समूह में आमतौर पर 6 आदिवासी जनजातियां निवास करती हैं। जारवा जनजाति की बात करें तो यह नेग्रिटो समुदाय की जनजाति कही जाती है। जारवा जनजाति जहां पर निवास करती है उसे 1979 में अधिसूचना के द्वारा ट्राइबल रिजर्व एरिया का दर्जा दिया गया है। आपको बता दें कि इस जनजाति के जीवन पर संकट गहराता जा रहा है।


ख़बर को शेयर करे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *