लाहौर में 8 में से 3 स्टूडियो ही बचे,जिनकी जमीन पर भी बन गए चोरी की गाड़ियां रखने के गोदाम
नई दिल्ली। पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री बर्बाद हो चुकी है। एक समय यह इंडस्ट्री साल भर में 150 फिल्में तक बनाती थी, लेकिन अब ये आंकड़ा 50-55 फिल्मों तक ही सिमट कर रह गया है। भारत के मुकाबले तो स्थिति और भी बुरी है। भारत में हर साल तकरीबन 2,400 फिल्में बनती हैं, जिनसे 3,800 करोड़ की कमाई होती है। वहीं, पाकिस्तान का कुल फिल्म रेवेन्यू भारत की एक हिट फिल्म के ओपनिंग कलेक्शन से भी कम है।
कोरोना काल के बाद तो पाक फिल्म इंडस्ट्री और गर्त में जा चुकी है। अब तो आलम ये है कि वहां बनने वाली फिल्मों का अधिकतम बजट 20-25 करोड़ से ज्यादा नहीं होता और बमुश्किल कोई फिल्म 50 करोड़ के आंकड़े तक पहुंच पाती है। यहां फिल्म दिखाने के लिए केवल 150 स्क्रीन मौजूद हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक एक वक्त लाहौर में 8 स्टूडियो हुआ करते थे जिनमें फिल्मों की शूटिंग होती थी, लेकिन अब यहां केवल 3 स्टूडियो ही बचे हैं। लाहौर में बना शाहनूर स्टूडियो तो अब इतना सिमट चुका है कि उस जमीन पर कॉलोनी बन चुकी है। कस्टम वालों ने भी यहां कुछ जमीनों को किराए पर लिया है और वहां चोरी की गाड़ियों का गोदाम बना दिया है।
आइए जानते हैं पाकिस्तानी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़ी कुछ अहम बातें…
पाकिस्तानी सिनेमा के पिटने का एक और बड़ा कारण ये है कि यहां फिल्ममेकर्स को क्रिएटिव लिबर्टी बिल्कुल नहीं है। फिल्मों पर भी कट्टरपंथी सोच हावी है और फिल्ममेकर्स कुछ भी अपने मन मुताबिक नहीं कर सकते। इसकी बानगी 1977-88 के बीच जमकर देखने को मिली।
आर्मी जनरल मुहम्मद जिया उल हक ने पाकिस्तान में बनने वाली ज्यादातर फिल्मों पर पाबंदी लगा दी थी, क्योंकि इसमें हिंसा और वल्गैरिटी बहुत ही ज्यादा बढ़ गई थी। फिल्मों को बनने से रोकने के लिए उन्होंने फिल्म मेकिंग के नियम सख्त कर दिए और लाहौर के लगभग सभी थिएटर बंद कर दिए। मूवी टैक्स इतना बढ़ा दिया कि लोगों ने फिल्में देखनी बंद कर दीं। यही हाल अब भी है जिससे ये इंडस्ट्री अब तक उबर नहीं पाई है।
हिंसक और अश्लील कंटेंट को रोमांटिक फिल्मों ने किया ओवरटेक
पाकिस्तान में पश्तो सिनेमा के फिल्ममेकर्स दर्शकों को लुभाने के लिए फिल्मों को सॉफ्ट-कोर पोर्नोग्राफी से भर दिया करते थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक ये सब कुछ पावरफुल पॉलिटिशियन की रजामंदी से हुआ करता था।
1960-70 के दशक में जो इंडस्ट्री रोमांटिक फिल्मों से पहचानी जाती थी, वो 1980 तक अश्लील और हिंसा से पहचान बनाने लगी। अफगानिस्तान में फिल्म इंडस्ट्री पर प्रतिबंध था, तो पाकिस्तान में आकर बसे अफगानी यहां पश्तो सिनेमा चलाया करते थे।
1990 में पाकिस्तान के लगभग सभी स्टूडियो हुए बंद
1990 की शुरुआत पाकिस्तान फिल्म इंडस्ट्री के लिए सबसे बुरा दौर साबित हुआ। दर्जनों स्टूडियो में से सिर्फ 11 स्टूडियो ही चालू रहे, जो सालाना सिर्फ 40 फिल्में ही बना पाते थे। ये बुरा दौर 2002 तक चला। कई सिंगर्स, एक्टर्स और फिल्ममेकर्स ने इंडस्ट्री छोड़ दी।
2003 से फिर पाकिस्तान में बननी शुरू हुई फिल्में
2003 तक पाकिस्तान में यंग फिल्ममेकर्स ने कम बजट में फिल्में बनानी शुरू कीं। साल 2003 तक लाहौर पाकिस्तानी फिल्मों का हब माना जाता था, लेकिन अब फिल्में कराची में नए सिरे से बनने लगी थीं। साल 2007 में रिलीज हुई फिल्म ‘खुदा के लिए’ बड़ी हिट साबित हुई जिसे इंटरनेशनल रिलीज मिली।
2009 में पाकिस्तान में न्यू सिनेमा मूवमेंट हुआ लॉन्च
साल 2009 में पाकिस्तान में न्यू सिनेमा मूवमेंट लॉन्च हुआ, जिसमें करीब 1400 मेंबर शामिल हुए। इस समय पाकिस्तान में दर्जनों फिल्में बनने लगीं। साल 2011 में शोएब मंसूर की फिल्म ‘बोल’ रिलीज हुई जिसने पाकिस्तान में कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए।
2019 में भारतीय फिल्मों पर लगा बैन
साल 2018 में पाकिस्तानी इंडस्ट्री का रेवेन्यू 2,500 मिलियन, यानी 250 करोड़ था, जिसमें साल 2019 में 45 प्रतिशत का नुकसान हुआ। साल 2019 में पाकिस्तानी एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री का रेवेन्यू महज 180 करोड़ रह गया था। इसका मुख्य कारण है- पुलवामा अटैक के बाद पाकिस्तान में भारतीय फिल्मों पर प्रतिबंध लगना। पाकिस्तान का 50% रेवेन्यू भारतीय फिल्मों से आता था, लेकिन बैन लगने के बाद इंडस्ट्री को नुकसान उठाना पड़ा।
भारत में बढ़ी पाकिस्तानी टीवी शोज की लोकप्रियता
वैसे, पाक फिल्मों के हाल भले ही बुरे हों, लेकिन भारत में पिछले कुछ सालों से पाकिस्तानी ड्रामा का क्रेज बढ़ता चला जा रहा है। पाकिस्तानी फिल्मों और स्टार्स की बढ़ती पॉपुलैरिटी को देखते हुए पाकिस्तानी कलाकारों को सालों तक बॉलीवुड में भी लाने की कोशिश की गई। हालांकि भारत-पाक के बीच बढ़ते तनाव के कारण एक बार फिर दोनों इंडस्ट्रीज के बीच लकीर खींच दी गई। हमसफर, जिंदगी गुलजार है और इश्किया जैसे शोज को भारतीय दर्शकों ने ना सिर्फ देखा बल्कि खूब प्यार भी दिया। वहीं पाकिस्तानी सॉन्ग पसूरी, चन कित्था, तेरा वो प्यार इन दिनों भारतीय यंगस्टर्स की जुबान पर चढ़ा हुआ है। ये साबित करता है कि कला की कोई सीमा नहीं होती।
उरी अटैक के बाद भारत में टेलीकास्ट होने से रुके पाकिस्तानी शो
साल 2016 में हुए उरी अटैक के बाद जिंदगी चैनल ने पाकिस्तानी शोज टेलीकास्ट करने से इनकार कर दिया। सभी पाकिस्तान शोज बीच में ही बंद कर दिए गए। शोज भले ही चैनल से हटा दिए गए, लेकिन ये पहले ही भारतीयों पर गहरा असर छोड़ चुके थे। इसके बाद भारतीयों ने पाकिस्तानी चैनल के यूट्यूब पेज हम टीवी, ARY डिजिटल पर शोज देखने शुरू किए। हम टीवी चैनल के यूट्यूब पेज पर 21.6 मिलियन सब्सक्राइबर हैं, वहीं ARY डिजिटल के 31 मिलियन सब्सक्राइबर हैं।
भारत में कैसे मिली पाकिस्तानी ड्रामा को जगह?
साल 2014 में जी एंटरटेनमेंट एंटरप्राइज लिमिटेड ने जिंदगी चैनल लॉन्च किया था। जिंदगी चैनल में पाकिस्तानी शो हमसफर, जिंदगी गुलजार है, मेरे कातिल मेरे दिलबर जैसे शोज टेलीकास्ट किए गए। इस चैनल पर टेलीकास्ट हुआ पहला शो ओ जरा महज 20 एपिसोड का था। ये पहली बार था जब भारत में कोई शो सिर्फ 20 एपिसोड का था।
पाकिस्तानी शोज दिखाने वाला ये पहला भारतीय चैनल था। इसमें चंद एपिसोड के शोज होते थे, जिन्हें भारतीय महिलाओं का खूब प्यार मिला।
क्या है इन शोज की बढ़ती पॉपुलैरिटी का कारण?
पाकिस्तानी शोज काफी बंधी हुई कहानी के होते हैं। ये मिडिल क्लास की रियलिस्टिक कहानियों पर फोकस करते हैं और कहानियों को जल्दी आगे बढ़ाते हैं। इनमें भारतीय ड्रामा की तरह ना म्यूजिक और सस्पेंस का ओवरडोज होता है और ना ही हफ्तों चलने वाली शादी के फंक्शन।