मिशन गगनयान के एस्ट्रोनॉट्स की सीक्रेट ट्रेनिंग:10 फीट गहरे पानी में सीख रहे जीरो ग्रैविटी में कैसे जिएं
बेंगलुरु। बेंगलुरु का ओल्ड एयरपोर्ट रोड। इलाका- मारतल्ली। यहीं वो सीक्रेट जगह है, जहां गगनयान मिशन के लिए 4 भारतीय एस्ट्रोनॉट्स यानी अंतरिक्ष यात्रियों की ट्रेनिंग चल रही है। इन्हें घंटों गहरे पानी में प्रैक्टिस करवाई जा रही है, ताकि जीरो ग्रैविटी यानी गुरुत्वाकर्षण के बिना रहना सीख पाएं।
खास तरह के सिम्युलेटर (डमी कैप्सूल) में तेजी से घुमाया जा रहा है, ताकि उन्हें स्पेसक्राफ्ट में परेशानी न हो। हर रोज 4 से 6 घंटे बेहद मुश्किल एक्सरसाइज करवाई जा रही है, ताकि स्पेस में बॉडी में ब्लड सर्कुलेशन बना रहे। ट्रेनिंग ले रहे चारों टेस्ट पायलट इंडियन एयरफोर्स के हैं।
इस मिशन से जुड़े टॉप सीनियर साइंटिस्ट ने हमें ट्रेनिंग से जुड़ी कई बातें बताई हैं, लेकिन अपना नाम देने से इनकार कर दिया। उन्होंने बताया कि एस्ट्रोनॉट के लिए इंडियन एयरफोर्स के पायलट्स को इसलिए चुना गया, क्योंकि वो इसकी ट्रेनिंग से काफी हद तक वाकिफ होते हैं।
ट्रेनिंग के कोई फिक्स घंटे नहीं होते, ये डे टु डे रिक्वायरमेंट के हिसाब से बदलती है। एक साल रूस में ट्रेनिंग लेने के बाद बीते करीब 5 महीने से बेंगलुरु में ट्रेनिंग चल रही है। सिक्योरिटी रीजन की वजह से एस्ट्रोनॉट्स के नाम का खुलासा नहीं किया गया है।
बीते एक हफ्ते में हमने गगनयान मिशन के बारे में तमाम जानकारियां जुटाईं। बेंगलुरु के उस एरिया में घूमे, जहां एस्ट्रोनॉट्स की ट्रेनिंग हो रही है। उनके लिए कोर्स डिजाइन करने वाले एक्सपर्ट और ISRO के तमाम साइंटिस्ट्स से बात की। पढ़िए और देखिए बेंगलुरु से ये स्पेशल ग्राउंड रिपोर्ट…
4 लोगों को ट्रेनिंग दी जा रही है, लेकिन अंतरिक्ष में कितने भेजे जाएंगे, यह अभी तय नहीं है। अभी पूरा मिशन डेवलपमेंट स्टेज में है। हो सकता है दो एस्ट्रोनॉट्स जाएं या तीन। वे वहां कितने दिन रुकेंगे, इस पर भी फैसला नहीं हुआ है, क्योंकि अभी कई टेस्ट होने हैं। इनका जो रिजल्ट आएगा, उसी से तय होगा कि एस्ट्रोनॉट कितने दिन रुकेंगे। ये टाइम 12 घंटे से लेकर 72 घंटे तक हो सकता हो। एस्ट्रोनॉट्स गगनयान से बाहर नहीं जाएंगे, सिर्फ यान के अंदर एक्टिविटी करेंगे।
भारत के सपनों का गगनयान, मिशन कामयाब रहा तो चौथे देश होंगे
अब तक रूस, अमेरिका और चीन ही इंसानों को अंतरिक्ष में भेज पाए हैं। सोवियत रूस ने 12 अप्रैल 1961 को यूरी गागरिन को स्पेस में भेजकर पहली बार ये कारनामा किया था। अगले महीने यानी 5 मई 1961 को एलन शेफर्ड अंतरिक्ष में जाने वाले पहले अमेरिकी एस्ट्रोनॉट बने। चीन को ये कामयाबी 2003 में मिली। अगर गगनयान मिशन कामयाब रहा तो भारत स्पेस में इंसान भेजने वाला चौथा देश होगा।
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन यानी ISRO ने इस पूरे मिशन को सीक्रेट रखा है। एस्ट्रोनॉट्स के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम डिजाइन करने वाले एक्सपर्ट्स को भी उनसे बातचीत करने की इजाजत नहीं दी गई।
70 में से 4 लोग चुने गए, चारों की उम्र 40 साल से कम
ISRO को एस्ट्रोनॉट ट्रेनिंग के लिए 70 फॉर्म मिले थे। बेंगलुरु के इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन (IAM) में मेडिकल स्क्रीनिंग और फिजिकल टेस्ट के बाद 4 बेस्ट एप्लिकेंट्स को चुना गया। टेस्ट पायलट होने की वजह से इनके पास सबसे ज्यादा जोखिम में जहाज उड़ाने का एक्सपीरियंस है।
रूस में 13 महीने चली ट्रेनिंग, बेसिक वहीं से सीखे
चारों टेस्ट पायलट को फरवरी 2020 में ट्रेनिंग के लिए रूस भेजा गया था। रूस इसलिए, क्योंकि अंतरिक्ष में इंसानों का भेजने का सबसे लंबा और सबसे सफल अनुभव रूस के ही पास है, और वह हमारा सहयोगी भी है।
वहां करीब 13 महीने ट्रेनिंग चली। ये ट्रेनिंग रूस के स्पेसक्राफ्ट के मुताबिक थी, जबकि हम इस बार अंतरिक्ष में स्वदेशी स्पेसक्राफ्ट भेजने वाले हैं। इसलिए रूस में सिर्फ उन चीजों से फैमिलियर करवाया गया था, जो कॉमन हैं। जैसे, अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण यानी ग्रैविटेशन फोर्स नहीं होती। इससे आदमी हर समय हवा में उड़ता रहता है। अंतरिक्ष यात्रियों को ग्रैविटेशन फोर्स न होने पर कैसे रहना है, ये सिखाया गया। इसके लिए पानी में 8 से 10 फीट की गहराई में ले जाकर ट्रेनिंग दी गई।
हार्ट रेट बढ़ाने और रिड्यूस करने की भी ट्रेनिंग
हमने स्पेस ग्रुप ऑफ कंपनीज के फाउंडर और चेयरमैन सचिन भांबा से जाना कि एस्ट्रोनॉट बनना कितना मुश्किल है, और इसके लिए किस तरह की ट्रेनिंग दी जाती है। भांबा कहते हैं- ‘एस्ट्रोनॉट बनने के लिए अच्छी फिटनेस बहुत जरूरी है। जब हम झूले पर बैठते हैं और झूला गोल-गोल घूमना शुरू करता है तो हमें मितली या उल्टी जैसा फील होने लगता है।
इसी तरह स्पेस में जाने के बाद गुरुत्वाकर्षण महसूस नहीं होता और बॉडी रोटेट होती रहती है, ऐसे में दिमाग को इस बात के लिए तैयार करना होता है। दिमाग को सिखाया जाता है कि स्पेस में जाने के बाद वो पेट को ग्रैविटेशनल फोर्स फील नहीं होने का सिग्नल न दें, जिससे उल्टी जैसा फील नहीं होता। इसके लिए एस्ट्रोनॉट्स को कई-कई घंटे मशीनों में गोल-गोल घुमाया जाता है। ये ट्रेनिंग के सबसे अहम हिस्सों में से एक है।
वाइटल ऑर्गंस की खूब एक्सरसाइज करवाई जाती है, क्योंकि स्पेस में मदद के लिए कोई और नहीं होगा, रिमोटली ही मदद की जा सकेगी। शरीर के इंटरनल ऑर्गन्स की एक्सरसाइज करवाई जाती है। हार्ट रेट बढ़ाना और फिर उसे रिड्यूस करना सिखाया जाता है।
धरती पर ग्रैविटेशनल फोर्स काम करती है। हम खड़े न हों, तब भी हमारी हडि्डयों पर प्रेशर बना रहता है। स्पेस में जाते ही शरीर को यह महसूस होता है कि किसी भी कोशिका पर प्रेशर नहीं पड़ रहा। हड्डियां कैल्शियम कम करना शुरू कर देती हैं। ट्रेनिंग में इस तरह की कंडीशन को मैनेज करना सिखाया जाता है।
स्पेस में हमें कृत्रिम ऑक्सीजन मिलती है। इसका लेवल भी धरती से कम होता है। इसलिए ऐसी एक्सरसाइज करवाई जाती हैं, जिससे हमारा हार्ट ऐसी कंडीशन में शरीर की सभी कोशिकाओं को ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए प्रिपेयर रहे।
स्पेस में छोटे-छोटे काम करना भी बहुत चैलेंजिंग है। जैसे, धरती पर हम कोई स्क्रू आसानी से टाइट कर लेते हैं, क्योंकि ग्रैविटेशनल फोर्स काम कर रही होती है, लेकिन स्पेस पर स्क्रू टाइट करेंगे तो आप समझ नहीं पाएंगे कि आप घूम रहे हैं या स्क्रू घूम रहा है।
चारों एस्ट्रोनॉट्स के लिए रूस से ही कस्टमाइज स्पेस सूट भी खरीदे गए हैं, ये अंतरिक्ष की जरूरतों के हिसाब से तैयार किए गए हैं। इसके अलावा स्पेस मेडिसिन, लॉन्च व्हीकल, स्पेसक्राफ्ट सिस्टम और ग्राउंड सपोर्ट इंफ्रास्ट्रचर की ट्रेनिंग दी गई है।
बेंगलुरु में गगनयान के सिम्युलेटर में चल रही ट्रेनिंग
भारत में एस्ट्रोनॉट्स को गगनयान मिशन की स्पेसिफिक ट्रेनिंग दी जा रही है। ISRO के सीनियर साइंटिस्ट के मुताबिक, सिम्युलेटर के जरिए उन्हें स्पेस का लाइव एक्सपीरियंस दिया जा रहा है। देखा जा रहा है कि किन एक्टिविटी को करने में वो अटक रहे हैं, और कौन सी एक्टिविटी आसानी से कर पा रहे हैं।
ट्रेनिंग वाली जगह इंस्टीट्यूट ऑफ एयरोस्पेस मेडिसिन (IAM) और इसरो सैटेलाइट इंटीग्रेशन एंड टेस्टिंग इस्टेबिलमेंट (ISITE) के नजदीक है। मिशन से जुड़े लोगों के अलावा यहां किसी को भी जाने की परमिशन नहीं है। चारों एस्ट्रोनॉट्स को फैमिली के साथ रहने की इजाजत है, लेकिन परिवारों को भी मिशन से जुड़ी जानकारी नहीं दी गई है।
राकेश शर्मा और उनके साथी रहे रवीश मल्होत्रा ने बनाया सिलेबस
इस मिशन के लिए दो मेंबर की कमेटी ने सिलेबस तैयार किया है। इसमें रूस के मिशन पर पहली बार भारत से अंतरिक्ष गए राकेश शर्मा और उनके साथी रवीश मल्होत्रा शामिल हैं।
रवीश कहते हैं- स्पेस में भेजने के लिए, हमने जो कैप्सूल तैयार किया है, उसकी कैपेसिटी एक बार में तीन लोगों को ले जाने की है। लेकिन ऐसा हो सकता है कि पहली बार में दो ही यात्रियों को अंतरिक्ष में भेजा जाए। एक जो रह जाएगा, उन्हें दूसरे राउंड में किसी ओर के साथ भेजा जाएगा।
एक बार हम अपने लोगों को अंतरिक्ष से सुरक्षित वापस ले आए, तो फिर हमारे लिए वहां आना-जाना चैलेंजिंग नहीं रहेगा। ISRO की तो लंबे वक्त से वहां स्पेस स्टेशन बनाने की योजना है। अभी जापान-अमेरिका के पास अपने स्पेस स्टेशन हैं, वहां हमारे लिए कई तरह की पाबंदियां हैं। ISRO अपना स्पेस स्टेशन बना लेगा तो इन पाबंदियों से छुटकारा मिल जाएगा।
मल्होत्रा कहते हैं, हमने कुल 3 सेमेस्टर का सिलेबस तैयार किया है। अभी दूसरा सेमेस्टर चल रहा है। रूस में इन लोगों को सिर्फ प्राइमरी प्रोसीजर से रूबरू करवाया गया है। अभी जिन सिम्युलेटर्स पर इन्हें ट्रेनिंग दी जा रही है, वे इंडियन स्टैंडर्ड्स के हैं। हमारे इक्विपमेंट हैं। इनसे पूरी तरह से फैमिलियर होना जरूरी है।
एस्ट्रोनॉट्स जब स्पेस में होंगे, तब ISRO के साइंटिस्ट उनसे टीवी स्क्रीन के जरिए कनेक्टेड रहेंगे। कोई प्रॉब्लम होने पर उन्हें गाइड किया जा सकेगा, लेकिन फिजिकली मदद करने के लिए वहां कोई नहीं होगा। रूस में रहकर हमारे अंतरिक्ष यात्रियों ने रशियन लैंग्वेज भी सीख ली है, लेकिन हमारी कम्युनिकेशन की लैंग्वेज इंग्लिश ही होगी, ISRO में वर्किंग लैंग्वेज इंग्लिश ही है।
मिशन में 500 से ज्यादा इंडस्ट्रीज इन्वॉल्व
गगनयान मिशन के लॉन्च में 500 से ज्यादा इंडस्ट्रीज इन्वॉल्व हैं। इसके अलावा ISRO का ह्यूमन स्पेस फ्लाइट सेंटर (HSFC), विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर (VSSC), यूआर राव सैटेलाइट सेंटर (URSC), इसरो सैटेलाइट इंटीग्रेशन एंड टेस्टिंग इस्टेबलिशमेंट (ISITE), हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) जैसे इंस्टीट्यूट भी इसका हिस्सा हैं।
स्पेस एंड साइंस की खबरें कवर करने वाले टाइम्स ऑफ इंडिया अखबार में सीनियर असिस्टेंट एडिटर चेतन कुमार बताते हैं कि इंटर एजेंसी टास्क फोर्स बनाई गई है। इसमें DRDO, ISRO, एयरफोर्स के साथ ही तमाम एकेडमी के एक्सपर्ट्स शामिल हैं। जिसकी जिस काम में एक्सपर्टाइज है, वो उसकी ट्रेनिंग दे रहा है। DRDO अंतरिक्ष यात्रियों के लिए पैकेज्ड फूड तैयार कर रहा है, जो रेडी टू ईट होगा।
अभी चल रही ट्रेनिंग में फॉरेन का कोई एक्सपर्ट शामिल नहीं है। मेडिकल टीम, जो एस्ट्रोनॉट्स की हेल्थ को मॉनिटर करेगी, उसकी ट्रेनिंग फ्रांस में चल रही है।
गगनयान के लिए कई तरह की टेक्नोलॉजी को डेवलप किया जा रहा है। जैसे, ह्युमन रेटेड लॉन्च व्हीकल, जिसके जरिए क्रू को सुरक्षित धरती पर लाया जाएगा। पहले बिना क्रू मेंबर्स का फ्लाइट मिशन होगा, जिसका मकसद ह्यूमन रेटेड लॉन्च व्हीकल, मिशन मैनेजमेंट, कम्युनिकेशन सिस्टम और रिकवरी ऑपरेशन का परफॉर्मेंस देखना है। एस्ट्रोनॉट्स को ले जाने वाले ह्यूमन रेटेड लॉन्च व्हीकल GSLV-MK3 और LVM3 तैयार हो चुके हैं।
कुमार बताते हैं, ह्यूमन रेटिंग में एडिशनल सेफ्टी रखी जाती हैं। इसे आप ऐसे समझ सकते हैं कि, जब किसी रॉकेट में इक्विपमेंट या बैलून लॉन्च किए जाते हैं, तो उससे कई गुना ज्यादा सेफ्टी ह्यूमन रेटिंग में रखी जाएगी, क्योंकि सबसे जरूरी क्रू मेंबर्स की सेफ्टी ही है।
आगे महिला एस्ट्रोनॉट भेजने और स्पेसवॉक का प्लान
ISRO के सीनियर साइंटिस्ट के मुताबिक, इस बार हमारे एस्ट्रोनॉट्स स्पेसक्राफ्ट से बाहर नहीं निकलेंगे। स्पेस में जाने के बाद स्पेसक्राफ्ट धरती के चक्कर लगाएगा। मिशन कितने दिनों तक चलेगा, यह आगे के डेवलपमेंट से तय होगा, लेकिन हम 12 से 72 घंटे तक यात्रियों को वहां रोक सकते हैं।
पहली बार में हम अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित वापस लाने में कामयाब हो जाएंगे, तब दूसरी बार में हो सकता है कि हम उन्हें स्पेसवॉक भी करवाएं। इस तरह आगे के मिशन में ISRO की किसी सीनियर महिला साइंटिस्ट को भी अंतरिक्ष में भेजा जा सकता है। वो क्रू का हिस्सा होंगी, लेकिन ये काम स्टेप बाय स्टेप ही होंगे। अमेरिका, रूस और चीन ने भी इसी तरह अपने मिशन को आगे बढ़ाया है।
हमारा मिशन सक्सेस होने के बाद बाकी देशों के मुकाबले काफी सस्ता होगा। हमने अंतरिक्ष यात्रियों के लिए ट्रेनिंग सेंटर बनाया है, वो टेंपरेरी है। इसे सिर्फ गगनयान के हिसाब से बनाया गया है, लेकिन भविष्य में हम बेंगलुरु से 200 किमी दूर एक स्थायी सेंटर बनाएंगे। अभी पूरा फोकस गगनयान की कामयाबी पर है।
रूस के अलावा ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और रोमानिया भी मिशन में शामिल
गगनयान मिशन के लिए भारत 6 से ज्यादा देशों के साथ मिलकर काम कर रहा है। एस्ट्रोनॉट्स की ट्रेनिंग रूस में हुई। स्पेस मेडिसिन में फ्रांस का सपोर्ट लिया जा रहा है। विंड टनल टेस्टिंग के लिए कनाडा और रोमानिया के साथ काम किया जा रहा है। ग्राउंड स्टेशन सपोर्ट के लिए ऑस्ट्रेलिया और यूरोपियन स्पेस एजेंसी के साथ मिलकर काम हो रहा है।
पहले दो अनक्रूड मिशन लॉन्च किए जाएंगे
PM मोदी ने 2018 में गगनयान मिशन का ऐलान किया था, तब कहा था कि ‘भारत का कोई बेटा या बेटी अंतरिक्ष में स्वदेशी गगनयान से पहुंचेगा।’ ये तय हो चुका है कि, भारत का कोई बेटा ही स्वदेशी गगनयान से 2024 के आखिर में अंतरिक्ष में कदम रखेगा, क्योंकि गगनयान मिशन के लिए चुने गए चारों टेस्ट पायलट पुरुष हैं। इसरो ने 3 मेंबर्स को 3 दिन के लिए स्पेस में ले जाने की बात कही है।
2024 के आखिरी क्वार्टर में लॉन्च होने वाले ह्युमन स्पेस फ्लाइट मिशन (H1) के पहले दो अनक्रूड मिशन लॉन्च किए जाएंगे। इसमें एक 2023 के आखिरी क्वार्टर और दूसरा 2024 के सेकेंड क्वार्टर में होगा।