सुप्रीम कोर्ट ने कहा-हिजाब की तुलना चुन्नी से गलत:लड़कियों का तर्क-हिजाब पहनना मौलिक अधिकार;SC ने पूछा…

सुप्रीम कोर्ट ने कहा-हिजाब की तुलना चुन्नी से गलत:लड़कियों का तर्क-हिजाब पहनना मौलिक अधिकार;SC ने पूछा…
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नई दिल्ली। मुस्लिम लड़कियां स्कूल-कॉलेज में हिजाब पहन सकती हैं या नहीं,इस वक्त ये देश का सबसे हॉट टॉपिक है। देश की सबसे बड़ी अदालत में 5,7 और 8 सितंबर को जबर्दस्त बहस हुई। करीब 7 घंटे की इस पूरी जिरह को हमने पढ़ा और समझा। इस बहस में पगड़ी का जिक्र आया और तिलक का भी। कुरान का जिक्र आया और संविधान का भी।

तस्वीर अभी पूरी तरह साफ नहीं हो पाई है, इसलिए ये दलीलें आज दोपहर 2 बजे से फिर जारी रहेंगी।

मंडे मेगा स्टोरी में आज हम हिजाब मामले पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही बहस की रोचक दलीलें और न्यायाधीशों की सख्त टिप्पणियां पेश कर रहे हैं…

सुप्रीम कोर्ट में सीनियर एडवोकेट राजीव धवन ने 5 सितंबर को दोपहर 2 बजे हिजाब मामले पर मुस्लिम लड़कियों का पक्ष रखना शुरू किया। उन दलीलों की कुछ हाइलाइट्स…

एडवोकेट धवनः आर्टिकल 145 (3) के मुताबिक इस मामले को पांच-सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजा जाए। इसमें बड़ी संख्या में औरतें शामिल हैं, जिनके सामने सवाल है कि क्या वो ड्रेस कोड के सामने झुक जाएं या हिजाब एक जरूरी धार्मिक प्रथा है।

जस्टिस गुप्ताः हिजाब पहनना जरूरी धार्मिक प्रथा हो सकती है या नहीं भी, लेकिन हम एक सेकुलर देश हैं और सरकार ड्रेस कोड रेगुलेट कर सकती है।

एडवोकेट धवनः अगर ड्रेस कोड का सवाल है तो सुप्रीम कोर्ट में हम तिलक लगाते हैं। कोर्ट नंबर 2 में एक जज ने पगड़ी पहनी है।

जस्टिस गुप्ताः पगड़ी अलग है, ये रॉयल स्टेट्स में पहनी जाती थी। ये धार्मिक नहीं है। मेरे दादा वकालत करते हुए पगड़ी पहनते थे। इसे धर्म से मत जोड़ो।

एडवोकेट धवनः यहां सवाल लाखों लड़कियों का है, जो यूनिफॉर्म पहनने के लिए तैयार हैं, लेकिन हिजाब भी पहनना चाहती हैं।

जस्टिस गुप्ताः हम एक सेकुलर देश हैं। क्या यहां सरकारी संस्थान में धार्मिक कपड़े पहने जा सकते हैं? ये आपका तर्क है?

एडवोकेट हेगड़ेः क्या आप एक जवान औरत से कह सकते हैं कि उसे अपनी गरिमा कैसे बचानी है, इस पर उसका अधिकार नहीं है। वो चुन्नी नहीं पहन सकती।

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जस्टिस गुप्ताः मैंने एक न्यूज देखी जिसमें एक महिला वकील जीन्स पहनकर कोर्ट आ गई थी। इस पर जज ने ऐतराज जताया। क्या वो कह सकती है कि मुझे जीन्स पहनकर ही बहस करनी है।

एडवोकेट हेगड़ेः यहां मुद्दा सरकारी कॉलेज में पढ़ाई के एक्सेस का है। औरतें वैसे ही समाज में हाशिए पर हैं। क्या उनकी पढ़ाई के लिए शर्तें रख सकते हैं?

जस्टिस धूलियाः आप हमें पगडंडियों से ले जा रहे हो। हाईवे पर ले चलो।

एडवोकेट हेगड़ेः कभी-कभी हाईवे से दूर रहना सुरक्षित रहता है।

जस्टिस गुप्ताः सवाल ये है कि क्या आप स्कूल में हिजाब पहन सकते हो, जहां यूनिफॉर्म लागू है।

एडवोकेट हेगड़ेः सवाल ये है कि क्या कपड़े की वजह से शिक्षा देने से मना किया जा सकता है। स्कार्फ पहले से ही यूनिफॉर्म का हिस्सा है, क्योंकि चुन्नी की अनुमति है।

जस्टिस गुप्ताः चुन्नी अलग चीज है। वो कंधे पर पहनी जाती है।

ASG नटराजः मुद्दा बहुत सीमित है। ये सिर्फ स्कूल डिसिप्लिन का मामला है।

जस्टिस धूलियाः हिजाब पहनने से स्कूल का डिसिप्लिन कैसे टूट रहा है?

एडवोकेट जनरलः कुछ छात्र हिजाब पहन रहे हैं और कुछ भगवा शॉल। इस अव्यवस्था के बाद सरकार ने आदेश जारी किया। हम छात्रों से हिजाब पहनने या न पहनने को नहीं बोल रहे। हम सिर्फ उन्हें यूनिफॉर्म का पालन करने को बोल रहे हैं।

जस्टिस गुप्ताः आप कहते हैं कि स्कूल-कॉलेज एक नियम नहीं जारी कर सकते हैं, लेकिन मुझे बताएं कि क्या कोई स्टूडेंट मिनी, मिडी में आ सकता है। हर व्यक्ति को अपने धर्म का पालन करने का आधिकार है, लेकिन क्या इसे किसी ऐसे शिक्षण संस्थान के अंदर ले जाया जा सकता है, जिसने ड्रेस कोड निर्धारित किया है।

मामले की सुनवाई 7 सितंबर को दोपहर 2 बजे के लिए लिस्ट की गई।
एडवोकेट धवन की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए मुस्लिम लड़कियों की तरफ से एडवोकेट कामत ने आर्गुमेंट शुरू किए…

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एडवोकेट कामतः मैं संविधान के आर्टिकल 145(3) के तहत मामले को संवैधानिक बेंच के सामने रेफर करने के लिए तर्क रखूंगा। इससे छात्रों के आर्टिकल 19, 21 और 25 के तहत दिए अधिकारों का हनन हुआ है। मैं यूनिफॉर्म को चुनौती नहीं दे रहा, सिर्फ सरकार को चुनौती दे रहा हूं, जो छात्रों को यूनिफॉर्म पहनने के बावजूद हिजाब नहीं पहनने दे रही। यहां तक कि केंद्रीय विद्यालय में लड़कियों को हेड स्कार्फ की अनुमति है।

एडवोकेट कामतः दक्षिण अफ्रीका की कोर्ट ने एक फैसले में हिंदू लड़की को स्कूल में नाक की कील पहनने की अनुमति दी। कुछ वैसा ही मामला हिजाब को लेकर भी है।

जस्टिस गुप्ताः नोज पिन धार्मिक प्रैक्टिस नहीं है। दुनियाभर की महिलाएं पहनती हैं। साउथ अफ्रीका को छोड़ो, भारत में लौटो।

एडवोकेट कामतः यूएस सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में वर्कप्लेस पर हेड स्कार्फ की अनुमति दी है। कनाडा के एक जजमेंट में भी सिखों को स्कूल में कड़ा पहनने की अनुमति दी गई है।

जस्टिस गुप्ताः हम अमेरिका और कनाडा की तुलना भारत से कैसे कर सकते हैं। हम कंजर्वेटिव सोसाइटी हैं।

एडवोकेट कामतः जब मैं स्कूल जाता था तो नमाम (एक तरह का तिलक) लगाता था। कई स्टूडेंट्स रुद्राक्ष और क्रॉस पहनते थे।

जस्टिस गुप्ताः रुद्राक्ष और क्रॉस अलग हैं। वो कपड़ों के अंदर रहते हैं। इसलिए डिसिप्लिन का उल्लंघन नहीं है।

एडवोकेट कामतः अब आते हैं आर्टिकल 19 पर। इसमें कहा गया है कि फ्रीडम ऑफ एक्सप्रेशन में ड्रेस भी शामिल है। कुछ रीजनेबल रिस्ट्रिक्शंस बिल्कुल हैं। मैं ये नहीं कह रहा कि मैं यूनिफॉर्म नहीं पहनूंगा। मैं सिर्फ यूनिफॉर्म के साथ हेडस्कार्फ पहनना चाहता हूं।

जस्टिस गुप्ताः इसे अतार्किक अंत की तरफ मत ले जाओ। कपड़े पहनने के अधिकार में कपड़े उतारने का भी अधिकार है?

एडवोकेट कामतः स्कूल में कोई कपड़े नहीं उतार रहा। अगर आप स्कूल में हिजाब पहनकर आओगे तो हम अंदर आने की अनुमति नहीं देंगे, ये बोल कर स्टेट आर्टिकल 19 का उल्लंघन कर रहा है।

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जस्टिस गुप्ताः लड़कियों को हिजाब पहनने से कोई रोक नहीं रहा है… बात सिर्फ स्कूल की है।

सुनवाई 8 सितंबर को सुबह 11.30 बजे के लिए लिस्ट की गई।

8 सितंबर को 11.30 बजे सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट कामत ने अपनी दलीलें देनी शुरू कीं…
एडवोकेट कामतः भारतीय संविधान के आर्टिकल 25 (धर्म को मानने और उसे प्रैक्टिस करने की आजादी) में तीन बंदिशें हैं- पब्लिक ऑर्डर, मोरैलिटी और हेल्थ। उदाहरण के लिए सीनियर एडवोकेट के. परासरन नमम लगाते थे। क्या इससे पब्लिक ऑर्डर, मोरैलिटी या हेल्थ का उल्लंघन होता है? इसलिए हिजाब को भी अनुमति देनी चाहिए।

जस्टिस गुप्ताः सड़कों पर हिजाब पहनना हो सकता है किसी को ऑफेंड न करे, लेकिन जब स्कूल में पहनते हैं तो सवाल उठता है कि स्कूल किस तरह का पब्लिक ऑर्डर मेंटेन करना चाहता है।

एडवोकेट कामतः कोई स्कूल कानून व्यवस्था को आधार बनाकर ऐसे फैसले नहीं कर सकता। कल एडवोकेट जनरल ने कहा कि कुछ छात्रों के भगवा शॉल पहनने की डिमांड के बाद गवर्नमेंट ऑर्डर जारी किया गया। क्या हेकलर्स वीटो की अनुमति हो सकती है। जैसे- कुछ उपद्रवी भीड़ एक फिल्म की स्क्रीनिंग के खिलाफ थी। कोर्ट ने आदेश दिया कि जब CBFC ने पास कर दिया तो भीड़ कैसे रोक सकती है।

2 बजे से दोबारा शुरू हुई बहस में याचिकाकर्ताओं के वकील निजाम पाशा ने दलीलें रखीं…

एडवोकेट पाशाः जैसे सिखों के लिए 5क 5 स्तंभ हैं। मुस्लिम महिलाओं के लिए हिजाब भी ऐसा ही है। सिख छात्रों को पगड़ी पहनने की इजाजत है।

जस्टिस गुप्ताः पगड़ी और कृपाण को सुप्रीम कोर्ट की 5 जजों की पीठ ने सिखों के लिए जरूरी माना है। कृपाण को संवैधानिक संरक्षण मिला हुआ है। इसलिए दोनों धर्मों के रीति-रिवाजों की तुलना न की जाए।

सुनवाई 12 सितंबर को दोपहर 2 बजे से जारी रहेगी, जब सीनियर एडवोकेट सलमान खुर्शीद बहस करेंगे।

इलस्ट्रेशनःअवनीश सिंह

ग्राफिक्सःहर्षराज साहनी


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