पितृपक्ष 2025: क्या करें और क्या न करें, जानें शास्त्रों के अनुसार नियम और महत्व
## पितृपक्ष का महत्व
हिंदू धर्म में पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) का विशेष महत्व है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक (लगभग 15 दिन) चलने वाले इस काल में अपने पितरों की आत्मा की शांति और आशीर्वाद के लिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है।
**गरुड़ पुराण**, **मनुस्मृति** और **विष्णु पुराण** में वर्णित है कि इस समय पितरों की आत्माएं पृथ्वी पर आती हैं और अपने वंशजों से तर्पण व दान प्राप्त कर प्रसन्न होती हैं।
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## पितृपक्ष में क्या करें?
### 1. श्राद्ध और पिंडदान
* शास्त्र कहते हैं – *“श्राद्धेन पितरः तृप्यन्ति”* यानी श्राद्ध से पितर तृप्त होते हैं।
* पिंडदान में तिल, कुश, चावल और जल का विशेष महत्व है।
- ### 2. तर्पण
* रोज़ प्रातःकाल तिल और जल से सूर्य की ओर मुख कर तर्पण करें।
* इससे पितरों की आत्मा तृप्त होती है और वंशजों पर आशीर्वाद बना रहता है।
### 3. दान-पुण्य
* अन्न, वस्त्र, धान्य, तिल, गुड़, बर्तन आदि का दान करें।
* शास्त्रों के अनुसार अन्नदान सबसे श्रेष्ठ दान है।
### 4. ब्राह्मण भोजन व गौ सेवा
* ब्राह्मणों को भोजन कराना और दक्षिणा देना पितृ तृप्ति का श्रेष्ठ मार्ग है।
* गौ सेवा करना भी पुण्यकारी माना गया है।
### 5. तीर्थस्थल श्राद्ध
* गया, काशी, प्रयागराज, हरिद्वार जैसे पवित्र स्थलों पर पिंडदान का विशेष महत्व है।
### 6. धार्मिक अनुष्ठान
* गीता, गरुड़ पुराण, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें।
* घर में दीप जलाकर पितरों का स्मरण करें।
## पितृपक्ष में क्या न करें?
### 1. साज-सज्जा और विलासिता
* बाल, दाढ़ी, नाखून काटना, इत्र-गहनों का उपयोग करना वर्जित है।
### 2. मांसाहार और तामसिक भोजन
* मांस, शराब, प्याज, लहसुन और तामसिक आहार से बचें।
### 3. नए कार्यों की शुरुआत
* विवाह, गृहप्रवेश, मुंडन, नामकरण जैसे शुभ कार्य इस समय वर्जित हैं।
### 4. अपशब्द और विवाद
* पितृपक्ष में झगड़ा, चुगली और अपमान से बचना चाहिए।
### 5. मनोरंजन और व्यर्थ खर्च
* पार्टियां, नृत्य-गान और मौज-मस्ती करना उचित नहीं।
* इस समय दान-पुण्य और सेवा करना श्रेष्ठ है।
### 6. श्राद्ध तिथि पर विशेष परहेज़
* श्राद्ध के दिन यात्रा, बाल-दाढ़ी कटाना और उत्सव मनाना वर्जित है।
पितृपक्ष हमारे पूर्वजों के प्रति **कृतज्ञता का पर्व** है। इस दौरान संयम, श्रद्धा, तर्पण और दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और परिवार सुख-समृद्धि प्राप्त करता है।
**शास्त्रों में कहा गया है – “पितृपूजया देवता: प्रीयन्ते”** अर्थात पितरों की पूजा से देवता भी प्रसन्न होते हैं।