गांधी परिवार के विश्वासपात्र,सीएम ना बनने का दर्द…

गांधी परिवार के विश्वासपात्र,सीएम ना बनने का दर्द…
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नई दिल्ली। मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के नए अध्यक्ष होंगे। आज घोषित हुए परिणाम में उन्होंने शशि थरूर को शिकस्त दी। 24 साल बाद कांग्रेस का अध्यक्ष गांधी परिवार के बाहर का बना है। इससे पहले सीताराम केसरी ने ये जिम्मेदारी संभाली थी। खड़गे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। कर्नाटक से आने वाले 80 वर्षीय खड़गे गांधी परिवार के विश्वासपात्र माने जाते हैं।

वर्ष 2004 में खड़गे कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने से तब वंचित हो गए थे,जब जद (एस) ने उन पर वरीयता देते संयुक्त सरकार के प्रमुख के रूप में वरिष्ठ नेता स्व. धरम सिंह का चयन कर लिया था। बाद में उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति की ओर से रुख किया और संसद में विपक्ष के नेता के रूप में कार्य किया। इस बीच खड़गे को पिछले लोकसभा चुनाव में अपने गृह जिले कलबुर्गी में भाजपा उम्मीदवार से पराजय का सामना करना पड़ा। बाद में वह राज्यसभा के लिए चुने गए। कांग्रेस पार्टी के सूत्रों ने कहा, राज्य के दलित व शोषित-वंचित वर्ग के दिलों में उनके लिए विशेष स्थान है।

खड़गे के विजयी होने का सीधा प्रभाव राज्य की राजनीति पर पड़ेगा और राजनीतिक समीकरण भी बदलेगा। राज्य के मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई और बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं ने भी कहा था कि अगर खड़गे एआईसीसी अध्यक्ष पद का चुनाव जीतते हैं, तो सोनिया गांधी व राहुल गांधी का रिमोट कंट्रोल खत्म होगा।

खड़गे को पहले निकालना होगा राजस्थान का समाधान
कांग्रेस के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने पहली चुनौती राजस्थान में जारी खींचतान को सुलझाना और मुख्यमंत्री के मुद्दे को सुलझाना होगा। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट दोनों ही जोर दे रहे हैं। पायलट चुप हैं और गहलोत कांग्रेस संस्कृति के विपरीत अधिक मुखर हैं।

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गांधी परिवार विद्रोह जैसी स्थिति से परेशान थी, लेकिन गहलोत ने आकर कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से माफी मांगी और यह तय किया गया कि नए अध्यक्ष के चुने जाने तक नेतृत्व के मुद्दे को ठंडे बस्ते में रखा जाएगा। गहलोत ने कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव में मतदान के बाद जयपुर में प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि अनुभव सबसे ज्यादा मायने रखता है और युवा नेताओं को अपनी बारी का इंतजार करना चाहिए।

पायलट पर अप्रत्यक्ष हमले में गहलोत ने कहा था कि युवा कड़ी मेहनत कर सकता है, लेकिन अनुभव का कोई विकल्प नहीं हो सकता है। गांव, शहर या पार्टी हो, सब कुछ अनुभव पर आधारित है। हालांकि, उनके विचारों का पायलट खेमे के नेता राजेंद्र गुढ़ा ने ढ़ता से विरोध किया, उन्होंने कहा कि जैसे कोई अनुभव को दरकिनार नहीं कर सकता, वैसे ही युवाओं को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है।

गुधा ने कहा,पायलट मुख्यमंत्री बनेंगे। कांग्रेस के अध्यक्ष पद चुनाव के बाद पायलट का समय आएगा। जो नेता पहले कह रहे थे कि वह पार्टी आलाकमान का पालन नहीं करेंगे,आज माफी मांग रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि गहलोत को पहली बार 1998 में राजस्थान के मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था,जब वह 47 वर्ष के थे, जबकि पायलट अभी 45 वर्ष के हैं।

खड़गे का सियासी सफर
राजनीति में 50 साल से अधिक समय से सक्रिय खड़गे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के अध्यक्ष बनने वाले एस निजालिंगप्पा के बाद कर्नाटक के दूसरे नेता और जगजीवन राम के बाद इस पद पर पहुंचने वाले दूसरे दलित नेता भी हैं। लगातार नौ बार विधायक चुने गये खड़गे के सियासी सफर का ग्राफ उत्तरोत्तर चढ़ाव दिखाता है। उन्होंने अपना सियासी सफर गृह जिले गुलबर्ग (कलबुर्गी) में एक यूनियन नेता के रूप में किया। वर्ष 1969 में वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और गुलबर्ग शहरी कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष बने।

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चुनावी मैदान में खड़गे अजेय रहे और वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने कर्नाटक खासकर हैदराबाद-कर्नाटक क्षेत्र में नरेंद्र मोदी लहर के बावजूद गुलबर्ग से 74 हजार मतों के अंतर से जीत हासिल की। उन्होंने वर्ष 2009 में लोकसभा चुनाव के मैदान में कूदने से पहले गुरुमितकल विधानसभा क्षेत्र से नौ बार जीत दर्ज की। वह गुलबर्ग से दो बार लोकसभा सदस्य रहे।

हालांकि, वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में खड़गे को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता उमेश जाधव के हाथों गुलबर्ग में 95,452 मतों से हार का सामना करना पड़ा। अपने गृह राज्य कर्नाटक में ‘सोलिल्लादा सरदारा’ (कभी नहीं हारने वाला नेता) के रूप में मशहूर खरगे के कई दशकों के सियासी सफर में यह उनकी पहली हार थी। खड़गे ने कर्नाटक विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभाने के अलावा वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) प्रमुख के रूप में काम किया।

लोकसभा में वर्ष 2014 से 2019 तक खरगे कांग्रेस के नेता रहे,हालांकि वह लोकसभा में प्रतिपक्ष के नेता नहीं बन सके क्योंकि कांग्रेस सांसदों की संख्या सदन की कुल संख्या की 10 प्रतिशत से कम थी। मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार में खड़गे ने केंद्रीय कैबिनेट मंत्री के रूप में श्रम एवं रोजगार,रेलवे और सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण विभाग संभाला। उन्होंने राज्य में शासन करने वाली लगातार कांग्रेस सरकारों में विभिन्न विभागों का कार्यभार संभाला था।

कर्नाटक में जब एस एम कृष्णा मुख्यमंत्री थे तो उस वक्त खड़गे राज्य के गृह मंत्री रहे। उनके कार्यकाल में कन्नड़ अभिनेता राजकुमार का कुख्यात चंदन तस्कर वीरप्पन ने अपहरण कर लिया था, उसी दौरान कावेरी जल विवाद भी छाया था। इन दोनों मुद्दों से राज्य में कानून-व्यवस्था की स्थिति पैदा हुई।

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जून, 2020 में खड़गे कर्नाटक से राज्यसभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित हुए और कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव में उतरने से पहले हाल तक उच्च सदन में विपक्ष के 17वें नेता थे। खड़गे ने पिछले साल फरवरी में गुलाम नबी आजाद की जगह ली।

खड़गे को कई बार कर्नाटक में मुख्यमंत्री बनने के शीर्ष दावेदार के रूप में देखा गया, लेकिन वह कभी इस पद पर नहीं पहुंच पाए। जब कभी कर्नाटक में उनको दावेदार के रूप में पेश करके दलित मुख्यमंत्री की बात उठी तो उन्होंने कई बार कहा, आप क्यों बार-बार दलित कहते रहते हैं? ऐसा मत कहिये। मैं एक कांग्रेसी हूं।

मिजाज और स्वभाव से सौम्य खड़गे कभी किसी बड़ी राजनीतिक समस्या या विवाद में नहीं फंसे. बीदर के वारावट्टी में एक गरीब परिवार में जन्मे खड़गे ने स्कूली पढ़ाई के अलावा स्नातक और वकालत की पढ़ाई कलबुर्गी में की। राजनीति में आने से पहले वह वकालत के पेशे में थे। वह बौद्ध धर्म के अनुयायी हैं और कलबुर्गी में बुद्ध विहार परिसर में निर्मित सिद्धार्थ विहार ट्रस्ट के संस्थापक-अध्यक्ष हैं।

उन्होंने 13 मई, 1968 को राधाबाई से विवाह रचाया और दोनों के दो पुत्रियां और तीन बेटे हैं। उनके एक बेटे प्रियांक खड़गे विधायक हैं और कर्नाटक में मंत्री रहे हैं। नरेंद्र मोदी नीत सरकार के मुखर आलोचक खड़गे के कांग्रेस का नेतृत्व करने से कार्यकर्ताओं को बढ़ावा मिलने और राज्य में पार्टी नेतृत्व को एकजुट करने की उम्मीद है,जहां अगले साल अप्रैल तक विधानसभा चुनाव होने वाले हैं।


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