भारत में बहुविवाह का चलन सिर्फ मुसलमानों में ही नहीं,पुरुषों में यौन संबंध बनाने के भी आंकड़े चौंकाने वाले

भारत में बहुविवाह का चलन सिर्फ मुसलमानों में ही नहीं,पुरुषों में यौन संबंध बनाने के भी आंकड़े चौंकाने वाले
ख़बर को शेयर करे

नई दिल्ली। निकाह-हलाला,तीन तलाक के बाद भारत में बहुविवाह पिछले कुछ दिनों से मीडिया की सुर्खियों में बना हुआ है। असम की बीजेपी सरकार ने इस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाने की बात कही है और रिटायर जज की अध्यक्षता में एक समिति भी बनाई है।

समिति 6 महीने में अपनी रिपोर्ट सरकार को देगी। समिति इस बात का अध्ययन करेगी कि राज्य विधायिका यानी असम सरकार के पास बहुविवाह पर प्रतिबंध लगाने के अधिकार हैं या नहीं।समिति अनुच्छेद 25 के साथ-साथ मुस्लिम पर्सनल लॉ अधिनियम, 1937 के प्रावधानों की जांच करेगी।

असम से सुलगा यह विवाद धीरे-धीरे पूरे देश में फैल रहा है। कहा जा रहा है कि बहुविवाह जैसी प्रथाओं को मुद्दा बनाकर सत्ताधारी दल यूनिफॉर्म सिविल कोड को केंद्र में लाना चाह रही है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि 2024 से पहले सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू कर सकती है।

यूनिफॉर्म सिविल कोड और बहुविवाह पर उलझी गुत्थी के बीच नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का डेटा चौंकाने वाला है। इस डेटा के मुताबिक मुसलमानों के साथ-साथ हिंदू और ईसाई धर्म में भी बहुविवाह धड़ल्ले से हो रहा है।

बहुविवाह का मतलब क्या है?
बहुविवाह शब्द ग्रीक के पोलुगा मियां (पोलोगेमी) का हिंदी अर्थ है,जिसका मतलब- एक से अधिक शादियों से हैं। समाजशास्त्र के अनुसार एक पुरुष जब एक ही समय में एक से ज्यादा महिलाओं से शादी करता है,तो बहुविवाह कहलाता है।

वहीं एक महिला अगर एक समय ही समय में एक से ज्यादा पुरुषों से विवाह करती है, तो इसे बहुपतित्व कहते हैं और जब एक पुरुष या एक महिला या फिर एक महिला एक ही पुरुष से शादी करते है तो इसे मोनोगैमी कहा जाता है।

भारत में बहुविवाह को लेकर धर्मों में अलग-अलग प्रावधान और मान्यताएं हैं। इसे विस्तार से जानते हैं…

  1. हिंदू धर्म में एक से अधिक शादी अमान्य है। शतपथ ब्राह्मण में विवाह के बारे में विस्तार से बताया गया है। हिंदू धर्म में विवाह को जन्म-जन्मांतरण का संबंध माना गया है। इसलिए विवाह के वक्त पति और पत्नी अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे लेते हैं।
इसे भी पढ़े   तेजस्वी के डिप्टी सीएम बनने पर राबड़ी बोलीं- भाग्यशाली हैं राजश्री

साल 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट बना, जिसमें तीन शर्त पर एक से अधिक शादी की छूट दी गई. पहला पत्नी के निधन पर,दूसरा तलाक हो जाने पर और तीसरा पत्नी के सात साल से अधिक समय तक गायब रहने पर।

  1. इस्लाम धर्म में शादी करना एक कर्तव्य माना गया है और पीढ़ी बढ़ाने का सबसे बेहतरीन तरीका भी। इस्लाम में मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत 4 शादी की मंजूरी है. यानी एक शख्स को चार शादी करने की छूट है। हालांकि, यह अनुमति सिर्फ पुरुषों को है।

इस कानून को लेकर समय-समय पर काफी विवाद भी हुआ है। अनीशा बेगम बनाम मोहम्मद मुस्तफा केस में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस्लाम में शादी को समझौता के साथ ही एक संस्कार भी बताया था।

  1. ईसाई धर्म में शादी को समझौते के साथ ही एक संस्कार माना गया है। चर्च में शादी के दौरान दूल्हा और दुल्हन अंतिम सांस तक एक-दूसरे के वफादार रहने की शपथ लेते हैं। क्रिश्चियन मैरिज एक्ट 1872 के के मुताबिक ईसाईयों में दूसरी शादी करने की मनाही है।

हिंदुओं की तरह ही ईसाइयों में भी दूसरी शादी तभी हो सकती है, जब पत्नी की मौत हो जाए या दोनों का एक-दूसरे से तलाक।

असम में क्यों उठी बहुविवाह पर रोक की मांग, 2 वजह
NFHS के डेटा के मुताबिक मुसलमानों में 3.6 फीसदी बहुविवाह के मामले सामने आए हैं। खासकर बांग्लादेश से आए मुसलमानों में यह संख्या काफी ज्यादा है। मुसलमानों के मुकाबले हिंदुओं में बहुविवाह के 1.8 प्रतिशत केस ही देखे गए हैं।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बहुविवाह के मुद्दे को तुल देकर असम सरकार ध्रुवीकरण की राजनीति करने की कोशिश में है। असम में 34 फीसदी आबादी मुसलमानों की है, जिसका लोकसभा की 5-7 सीटों पर दबदबा है।

बहुविवाह को लेकर सरकार का डेटा क्या है?
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS) ने 2019-21 में अपनी 5वीं रिपोर्ट जारी की थी। आंकड़ों को आधार बनाकर हाल ही में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पॉपुलेशन साइंसेस (IIPS) ने एक स्टडी की। इसके मुताबिक 2006 की तुलना में 2019-21 में बहुविवाह में कमी आई है।

भारत में 2019-21 के दौरान 1.4 फीसदी बहुविवाह के मामले आए हैं, जो कि 2006 के 1.9% से कम है। IIPS ने अपनी रिपोर्ट में पाया कि बहुविवाह का मुख्य कारण शिक्षा और गरीबी है। भारत में शहरों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में बहुविवाह के आंकड़े अधिक है।

इसे भी पढ़े   सपा सांसद डिंपल यादव चेन्नई पहुंची,डीएमके के महिला अधिकार सम्मेलन में होंगी शामिल

धर्म के आधार पर देखा जाए तो ईसाइयों में बहुविवाह की संख्या अधिक है। इसके बाद मुसलमान, बौद्ध और हिंदू में बहुविवाह की संख्या देखी गई है। ईसाइयों में 2.1%, मुसलमानों में 1.9%, बौद्ध में 1.5% और हिंदुओं में 1.3% बहुविवाह के मामले सामने आए हैं।

हिंदू धर्म में जाति आधार पर देखा जाए तो सबसे अधिक बहुविवाह के आदिवासियों में होते हैं। डेटा के मुताबिक आदिवासियों में 2.4%, दलितों में 1.5%, पिछड़े वर्ग में 1.3% अन्य 1.2% बहुविवाह के मामले देखे गए हैं।

इतना ही नहीं, शिक्षा और गरीबी की वजह से 2.4 प्रतिशत महिलाएं बहुविवाह की दलदल में आ गईं। 2006 में यह आंकड़ा 2.7 के आसपास था। राज्यों की बात करें तो मेघालय में सबसे अधिक 6.1% बहुविवाह के मामले सामने आए हैं, जबकि हरियाणा में सबसे कम 0.3 प्रतिशत बहुविवाह के केस देखने को मिला।

बहुविवाह का कनेक्शन यौन संबंध बनाने से है?
बहुविवाह पर चल रहे विवाद के बीच कर्नाटक कांग्रेस के नेता इब्राहिम कोंडिजल का एक पुराना बयान वायरल हो रहा है। कोंडिजल ने बहुविवाह का समर्थन करते हुए कहा था- इस्लाम में बहुविवाह की इजाजत है, क्योंकि कोई भी आदमी अपनी यौन इच्छाओं को पूरा कर सके। इससे वैश्यावृति पर रोक लगती है।

हालांकि, पुरुषों पर नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे का डेटा चौंकाने वाला है. सर्वे में शामिल 6.7 फीसदी पुरुषों ने बताया कि उसने 15 साल की उम्र में ही पहली बार यौन संबंध बना लिया था।

इतना ही नहीं, 60 फीसदी लोगों ने सर्वे में बताया कि 18 साल होने के बाद उन्होंने पहली बार यौन संबंध बनाए। इस सर्वे में करीब 2 लाख लोगों ने अपनी राय दी थी।

बहुविवाह रोकने को लेकर भारत में क्या है कानून?
सुप्रीम कोर्ट ने एक से अधिक शादी के करने के एक मामले को क्रूर बताया था। हालांकि,सभी धर्मों और जातियों में बहुविवाह को रोकने के लिए कोई ठोस कानून सरकार के पास नहीं है।

इसे भी पढ़े   जयपुर एयरपोर्ट पर स्वागत के दौरान झूम उठीं बांग्लादेशी PM शेख हसीना

भारतीय दंड संहिता के धारा 494 में एक पत्नी के रहते दूसरी शादी को अपराध माना गया है। इसमें दोषी पुरुष को सात साल की सजा का भी प्रावधान है। इस दंड संहिता में मुसलमानों को छूट दी गई है।

सुप्रीम कोर्ट के वकील ध्रुव गुप्ता कहते हैं- आजादी से पहले भारत में द्विविवाह या बहुविवाह खूब प्रचलित थे। हर धर्म के लोग बहुविवाह करते थे. 1955 में हिंदू मैरिज एक्ट में इसकी वैधता को खत्म कर दिया।

इसके बाद यह आईपीसी की धारा 494 और 495 के तहत एक अपराध की श्रेणी में आ गया। हालांकि,मुसलमानों के पर्सलन लॉ में इसकी मान्यता अब तक खत्म नहीं की गई है। यानी इस्लाम में कानूनन बहुविवाह अपराध नहीं है।

ध्रुव गुप्ता के मुताबिक भारत में बहुविवाह किसी भी स्पष्ट कानून द्वारा बैन नहीं है और इसे धार्मिक मान्यता भी प्राप्त है। इसलिए लोग इसमें दंडित नहीं हो पाते हैं।

सुप्रीम कोर्ट में 23 मार्च 2023 को इस मामले में अंतिम बार सुनवाई हुई थी। सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा था कि पांच न्यायाधीशों की नई संविधान पीठ का गठन सही समय पर किया जाएगा।

चीफ जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की पीठ से वकील अश्विनी उपाध्याय ने मामले पर नई संविधान पीठ के गठन का अनुरोध किया था।

जात-जाते दुनिया जहान की बात…
साल 2019 बहुविवाह को लेकर अमेरिकी सर्वे एजेंसी प्यू रिसर्च सेंटर (पीआरएस) ने एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया की लगभग दो प्रतिशत आबादी बहुविवाह वाले परिवारों में अपना जीवन बसर कर रही है। बहुविवाह के मामले सबसे अधिक अफ्रीकी देशों में देखा गया है।

हालांकि, तुर्किए और ट्यूनीशिया जैसे मुस्लिम बहुल देशों ने अब बहुविवाह प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया है। संयुक्त राष्ट्र बहुविवाह के रिवाज को ‘महिलाओं के ख़िलाफ़ स्वीकार न किया जाने वाला भेदभाव’ बताता है। उसकी अपील है कि इस प्रथा को ‘निश्चित तौर पर ख़त्म’ कर दिया जाए।


ख़बर को शेयर करे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *