अद्भुत है काशी का ये दुर्गा पंडाल यहां 256 साल से विराजमान हैं मां दुर्गा

अद्भुत है काशी का ये दुर्गा पंडाल यहां 256 साल से विराजमान हैं मां दुर्गा
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देवनाथपुरा के दुर्गाबाड़ी में मां दुर्गा की प्रतिमा सनातनधर्मियों के लिए आस्था का केंद्र है। डॉ. देवाशीष दास ने बताया कि बंगाल के हुगली जिले से काशी पहुंचे जमींदार परिवार के काली प्रसन्न मुखर्जी बाबू ने मदनपुरा क्षेत्र में गुरुणेश्वर महादेव मंदिर के निकट दुर्गा पूजा का आरंभ करते हुए एक प्रतिमा स्थापित की।

शारदीय नवरात्र में शिव की नगरी सप्तशती के ओजस मंत्रों से गूंज रही है। काशी में दुर्गा पंडालों को सजाने की तैयारियां चल रही हैं। इन्हीं में एक पंडाल ऐसा है जहां 256 साल से मां दुर्गा विराजमान हैं। माता की प्रतिमा का आज तक विसर्जन नहीं हो सका। हर साल माता का आह्वान करके उसी प्रतिमा की पूजा की जाती है। माता की प्रतिमा देख कोई नहीं कह सकता कि प्रतिमा का इतिहास 250 साल से ज्यादा पुराना है। मां की आराधना मुखर्जी परिवार रोजाना करता है।

देवनाथपुरा के दुर्गाबाड़ी में मां दुर्गा की प्रतिमा सनातनधर्मियों के लिए आस्था का केंद्र है। डॉ. देवाशीष दास ने बताया कि बंगाल के हुगली जिले से काशी पहुंचे जमींदार परिवार के काली प्रसन्न मुखर्जी बाबू ने मदनपुरा क्षेत्र में गुरुणेश्वर महादेव मंदिर के निकट दुर्गा पूजा का आरंभ करते हुए एक प्रतिमा स्थापित की। 1767 में स्थापित प्रतिमा को पूजा के बाद विसर्जन के लिए लोगों ने उठाने का प्रयास किया लेकिन प्रतिमा टस से मस नहीं हुई। अंतत: प्रतिमा को वहीं छोड़ना पड़ा। रात में माता की पूजा करने वाले पुजारी को स्वप्न आया। मां ने पुजारी से कहा कि मुझे विसर्जित मत करो, मैं यहीं निवास करूंगी। इसके बाद से प्रतिमा उसी स्थान पर विराजमान है। मुखर्जी परिवार की दसवीं पीढ़ी की रानी देवी ने बताया कि बांस के फ्रेम में माटी और पुआल से बनी हुई प्रतिमा को हर साल शारदीय नवरात्र में रंग रोगन करके तैयार किया जाता है और प्रतिमा के शस्त्र-वस्त्र बदले जाते हैं। 1767 से मां दुर्गा की प्रतिमा उसी वेदिका पर विराजमान है।

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नजर आता है शिल्प कला का प्रभाव

प्रतिमा पर ढाई सौ साल पुरानी शिल्प कला का प्रभाव साफ नजर आता है। तैलीय रंगों से गढ़ी दुर्गा प्रतिमा के साथ गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिकेय और महिषासुर भी हैं।


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