वाराणसी के आर.एस. शिव मूर्ति स्कूल में नवरात्रि और दशहरा का भव्य उत्सव
नवरात्रि और विजयदशमी का पर्व
वाराणसी (जनवार्ता) । वाराणसी की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। इसी कड़ी में रोहनिया स्थित आर.एस. शिव मूर्ति पब्लिक स्कूल में शनिवार को भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम ने न सिर्फ बच्चों के उत्साह को सामने लाया बल्कि माता के जयकारों और रामायण की झलकियों से पूरे वातावरण को भक्ति और उल्लास से भर दिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ पारंपरिक ढंग से हुआ। छोटे-छोटे बच्चों ने देवी माँ के सभी स्वरूपों का वेश धारण किया। माता दुर्गा के शौर्य, माता लक्ष्मी की समृद्धि, माता सरस्वती की विद्या और माँ काली की शक्ति को जब बच्चों ने मंच पर उतारा तो उपस्थित दर्शक भावविभोर हो उठे। स्कूल प्रांगण में रंग-बिरंगी सजावट, फूलों की महक और बच्चों के उत्साह ने एक अनूठा माहौल बना दिया।
बच्चों ने रामायण की विशेष प्रस्तुति दी, जिसमें राम, सीता और लक्ष्मण के विवाह दृश्य को बाल स्वरूप में प्रस्तुत किया गया। बच्चों की मासूम अदाओं और सुंदर मंचन ने दर्शकों का दिल जीत लिया। इसके अलावा बच्चों ने डांडिया नृत्य प्रस्तुत कर नवरात्रि की झांकी को और भी आकर्षक बना दिया। कार्यक्रम के अंत में रावण दहन का आयोजन किया गया। रावण का पुतला दहन होते ही पूरे वातावरण में “जय श्रीराम” और माता रानी के जयकारे गूंज उठे। इस अवसर पर बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश गूंजता रहा।
स्कूल के डायरेक्टर योगेंद्र प्रताप सिंह ने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि ऐसे आयोजन बच्चों को अपनी संस्कृति और परंपरा से जोड़ते हैं। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है और उनका सर्वांगीण विकास होता है। वहीं प्रिंसिपल राकेश तिवारी ने बच्चों की मेहनत और प्रस्तुति की सराहना करते हुए कहा कि यह कार्यक्रम बच्चों की रचनात्मकता और टीम भावना का शानदार उदाहरण है।
इस पूरे आयोजन को सफल बनाने में स्कूल के सभी शिक्षकों और स्टाफ की अहम भूमिका रही। खास तौर पर बच्चों को तैयार करने, रिहर्सल कराने और मंच पर प्रस्तुति दिलाने में बड़ा योगदान दिया। अभिभावकों ने भी बच्चों का उत्साह बढ़ाने के लिए बड़ी संख्या में भाग लिया और उनकी प्रस्तुतियों पर जमकर तालियाँ बजाईं।
आर.एस. शिव मूर्ति पब्लिक स्कूल में आयोजित यह नवरात्रि और दशहरा उत्सव न केवल बच्चों के लिए बल्कि अभिभावकों और शिक्षकों के लिए भी यादगार पल साबित हुआ। यह आयोजन इस बात का प्रतीक बन गया कि वाराणसी की पावन धरती पर धर्म, संस्कृति और शिक्षा का संगम आज भी उतना ही जीवंत है जितना सदियों पहले था।