वाराणसी में देश का पहला स्वदेशी हाइड्रोजन ईंधन चालित यात्री जलयान शुरू
गंगा पर जीरो उत्सर्जन वाली नाव को केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने दिखाई हरी झंडी

वाराणसी (जनवार्ता)| भारत ने आज हरित समुद्री परिवहन के क्षेत्र में इतिहास रच दिया। केंद्रीय पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने वाराणसी के नमो घाट पर देश के पहले पूरी तरह स्वदेशी हाइड्रोजन ईंधन सेल चालित यात्री जलयान को हरी झंडी दिखाकर वाणिज्यिक सेवा के लिए रवाना किया।

यह 24 मीटर लंबी कैटामरान नौका पूरी तरह हाइड्रोजन से चलती है और इसका एकमात्र उत्सर्जन पानी है। इसमें डीजल इंजन नहीं है, धुआं नहीं है और शोर भी न के बराबर है। 50 यात्रियों की क्षमता वाली यह पूरी तरह वातानुकूलित नौका एक बार हाइड्रोजन भरवाने पर लगातार आठ घंटे चल सकती है तथा इसकी अधिकतम गति 7 से 9 नॉट यानी लगभग 13 से 17 किलोमीटर प्रति घंटा है।

नौका का नाम एफसीवी पायलट-01 है। इसका निर्माण कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड ने पूरी तरह स्वदेशी तकनीक से किया है और यह भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण (आईडब्ल्यूएआई) की संपत्ति है। यह लो-टेम्परेचर प्रोटॉन एक्सचेंज मेम्ब्रेन हाइड्रोजन फ्यूल सेल, बैटरी और सौर ऊर्जा के हाइब्रिड सिस्टम से संचालित होती है। शून्य कार्बन उत्सर्जन वाली इस नौका को इंडियन रजिस्टर ऑफ शिपिंग ने प्रमाणित किया है।
शुभारंभ के बाद श्री सोनोवाल ने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व में आज भारत ने साबित कर दिया कि स्वच्छ, टिकाऊ और आत्मनिर्भर परिवहन अब सपना नहीं, हकीकत है। गंगा के पवित्र जल पर हाइड्रोजन से चलने वाली यह नौका नेट-जीरो जलमार्गों की दिशा में बहुत बड़ा कदम है। यह ‘मेक इन इंडिया’ और ‘क्लीन गंगा’ दोनों मिशनों का जीता-जागता प्रमाण है।”
इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह, स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री रविंद्र जायसवाल और डॉ. दया शंकर मिश्रा ‘दयालू’, कई विधायक, वाराणसी के महापौर अशोक कुमार तिवारी, मंत्रालय के सचिव टी.के. विजय कुमार तथा आईडब्ल्यूएआई के अध्यक्ष सुनील पालीवाल सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।
वाराणसी अब विश्व के उन गिने-चुने शहरों में शामिल हो गया है जो हाइड्रोजन-संचालित सार्वजनिक यात्री जल परिवहन चला रहे हैं। आईडब्ल्यूएआई के अनुसार यह परियोजना मेरीटाइम इंडिया विजन 2030 और अमृत काल विजन 2047 का अहम हिस्सा है तथा 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन के राष्ट्रीय लक्ष्य की दिशा में एक मील का पत्थर साबित होगी।

