शैलपुत्री चालीसा: माँ दुर्गा का प्रथम रूप
नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री की पूजा की जाती है। Shailputri Chalisa पढ़ने से भक्त के जीवन में आत्मविश्वास और सकारात्मकता आती है। यह न केवल भक्ति का माध्यम है, बल्कि जीवन में शांति और सुख लाने का भी साधन है। यहां अआप्के लिए शैलपुत्री चालीसा का पूरा लिरिक्स दिया गया है-
Shailputri Chalisa
नमो नमो दुर्गे सुख करनी,
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निर्विकार है ज्योति तुम्हारी,
त्रिभुवन में फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला,
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे,
दर्शन करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना,
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला,
तुम ही आदि सुंदरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशनहारी,
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावे,
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावे॥
रूप सरस्वती को तुम धारा,
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धर्यो रूप नरसिंह को अंबा,
प्रकट भई फाड़कर खंभा॥
रक्षा करी प्रह्लाद बचायो,
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहिं,
श्री नारायण अंग समाहिं॥
क्षीरसिंधु में करहु विलासा,
दयासिंधु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्ह ही भवानी,
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावती माता,
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी,
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरी वाहन सोह भवानी,
लंगूर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै,
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला,
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्ह ही विराजत,
त्रिभुवन में डंका बाजत॥
शुंभ-निशुंभ दानव तुम मारे,
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी,
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा,
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥२३॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब,
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बसव लोका,
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी,
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावे,
दुःख दरिद्र निकट नहीं आवे॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई,
जन्म-मरण ताकौं छुटि जाई॥
योगी, सुर, मुनि कहत पुकारि,
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकराचार्य तप कीनो,
काम अरु क्रोध जीत सब लीन्हो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को,
कबहुं काल नहीं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो,
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी,
जय जय जय जगदंब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदंबा,
दई शक्ति नहीं कीन विलंबा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो,
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावे,
रिपु मूर्ख मोहि डरपावे॥
शत्रु नाश कीजे महारानी,
सुमिरौं एकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला,
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला॥
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं,
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावे,
सब सुख भोग परमपद पावे॥
देवीदास शरण निज जानी,
करहु कृपा जगदंब भवानी॥
चालीसा का पाठ करने की विधि
1. तैयारी
- पूजा स्थल को साफ करें और माँ शैलपुत्री की तस्वीर या मूर्ति स्थापित करें।
- दीपक, अगरबत्ती और फूल रखें।
- मन को शांत करके भक्ति भाव से तैयार हो जाएँ।
2. पाठ
- सुबह या शाम के समय श्रद्धा के साथ शैलपुत्री चालीसा का पाठ करें।
- ध्यान रखें कि मन एकाग्र और विचार शुद्ध हों।
- चाहें तो परिवार के साथ बैठकर सामूहिक रूप से भी पाठ किया जा सकता है।
3. भोग और समापन
- माँ को फल, मिठाई या दुग्ध से बने प्रसाद अर्पित करें।
- अंत में माँ से आशीर्वाद लेकर दिन की शुरुआत या समापन करें।
माता की चालीसा पढ़ने के लाभ
- आत्मविश्वास और धैर्य में वृद्धि होती है।
- मानसिक शांति और सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।
- कठिनाइयों को सहने और उनसे बाहर निकलने की शक्ति मिलती है।
- परिवार में सौहार्द और सुख-शांति बनी रहती है।
Shailputri Chalisa का पाठ करने से माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप का आशीर्वाद मिलता है। यह साधक के जीवन से भय और नकारात्मकता को दूर करता है और सुख, शांति व समृद्धि प्रदान करता है। नवरात्रि के पहले दिन विशेष रूप से इसका पाठ करना शुभ माना जाता है, लेकिन इसे नियमित भी पढ़ा जा सकता है। श्रद्धा और सच्चे मन से किए गए इस पाठ से जीवन में नए उत्साह और विश्वास का संचार होता है।