मेरी सुन लो पुकार गिरधारी मैं बुला बुलाकर हारी

“मेरी सुन लो पुकार गिरधारी मैं बुला बुलाकर हारी” — यह पंक्ति उस सच्चे भक्त की व्यथा को व्यक्त करती है जो अपने प्रभु श्रीकृष्ण को बार-बार पुकारते हुए थक चुका है, फिर भी उसकी श्रद्धा अटूट है। यह पुकार केवल दुख की नहीं, बल्कि गहरी भक्ति और विश्वास की भी प्रतीक है। जब मनुष्य संसार की उलझनों से थक जाता है, तो वह अपने गिरधारी को ही पुकारता है, क्योंकि वही सच्चा सहारा और मित्र हैं। इस भाव में भक्ति की गहराई है — जहाँ हार नहीं, बल्कि प्रेम का सम्पूर्ण समर्पण छिपा होता है।

rajeshswari

मेरी, सुन लो, पुकार, गिरधारी,
मैं, बुला, बुला के, हारी ll

जब, प्रह्लाद ने, तुम्हें पुकारा ll
तब, खंबे से, निकले, मुरारी
मैं, बुला, बुला के, हारी l
मेरी, सुन लो, पुकार,,,,,,,,,,,,,,,,

जब, अर्जुन ने, तुम्हें पुकारा ll
गीता ही, रच दी, सारी,
मैं, बुला, बुला के, हारी l
मेरी, सुन लो, पुकार,,,,,,,,,,,,,,,,

जब, द्रोपदी ने, तुम्हें पुकारा ll
तो, बढ़ा दी, सभा में साड़ी,
मैं, बुला, बुला के, हारी l
मेरी, सुन लो, पुकार,,,,,,,,,,,,,,,,

जब, मीरा ने, तुम्हें पुकारा ll
दिखी, विष में, छवि तुम्हारी,
मैं, बुला, बुला के, हारी l
मेरी, सुन लो, पुकार,,,,,,,,,,,,,,,,

जब, नरसी ने, तुम्हें पुकारा ll
तुमने, भर दिए, भात गिरधारी,
मैं, बुला, बुला के, हारी l
मेरी, सुन लो, पुकार,,,,,,,,,,,,,,,,

भाव से भक्ति करने की विधि

  1. दिन और समय: सोमवार या शुक्रवार, प्रातःकाल का समय श्रेष्ठ है।
  2. स्थान: श्रीकृष्ण की मूर्ति या गिरिराज गोवर्धन की छवि के सामने दीपक जलाएँ।
  3. सामग्री: तुलसीदल, पीले पुष्प, मक्खन-मिश्री, और शुद्ध जल रखें।
  4. प्रारंभ: “राधे कृष्ण” नाम जपते हुए मन को शांत करें।
  5. भजन या जप: प्रेमपूर्वक “मेरी सुन लो पुकार गिरधारी मैं बुला बुलाकर हारी” भजन गाएँ या इसका जप करें।
  6. भावना रखें: अपने सभी दुख, चिंताएँ और मन की व्यथा श्रीकृष्ण को समर्पित करें — जैसे एक बच्चा अपने माता-पिता से मन की बात करता है।
  7. समापन: अंत में प्रार्थना करें — “हे गिरधारी, मेरे जीवन में प्रेम, शांति और आपकी कृपा का प्रकाश भर दीजिए।”
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इस भक्ति से मिलने वाले लाभ

  • मन की शांति: ईश्वर को समर्पण करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है।
  • संकटों से मुक्ति: श्रीकृष्ण की कृपा से कठिन परिस्थितियाँ सरल होती जाती हैं।
  • आत्मिक सुकून: ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति से आत्मा को विश्राम मिलता है।
  • विश्वास की दृढ़ता: जीवन में हर परिस्थिति में ईश्वर पर भरोसा बना रहता है।
  • भक्ति की गहराई: यह भाव भक्ति को निष्ठा और प्रेम से भर देता है।

निष्कर्ष

“मेरी सुन लो पुकार गिरधारी मैं बुला बुलाकर हारी” — यह एक थकी हुई आत्मा की नहीं, बल्कि एक सच्चे प्रेमी की पुकार है जो अपने ईश्वर को याद करते हुए हार नहीं मानता। जब हम सच्चे मन से गिरधारी को पुकारते हैं, तो वे अवश्य हमारे जीवन में उत्तर देते हैं — कभी किसी संकेत के रूप में, कभी शांति के रूप में। यह पंक्ति हमें सिखाती है कि ईश्वर की कृपा के आगे कोई पुकार व्यर्थ नहीं जाती। श्रद्धा और समर्पण से किया गया हर आह्वान अंततः प्रेम की पूर्णता में बदल जाता है — जहाँ गिरधारी स्वयं अपने भक्त के हृदय में आकर बस जाते हैं।

Shiv murti

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