अगर हनुमान नहीं होते | निष्ठा, सेवा और शक्ति का अप्रतिम प्रतीक
“अगर हनुमान नहीं होते” — यह पंक्ति हमें उस अद्भुत भूमिका की याद दिलाती है जो भगवान हनुमान जी ने श्रीराम के जीवन और संपूर्ण रामकथा में निभाई। यह केवल एक प्रश्न नहीं, बल्कि उस भक्ति की गहराई को महसूस करने का अवसर है जो मर्यादा, सेवा और प्रेम से परिपूर्ण है। हनुमान जी बिना कुछ चाहे, केवल श्रीराम की प्रसन्नता के लिए कार्य करते रहे — यही उन्हें सबसे महान भक्त बनाता है। यह भाव हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति वही है, जहाँ “मैं” का अहंकार मिट जाए और केवल “राम” का नाम रह जाए।

हनुमान नहीं होते अगर हनुमान नहीं होते,
हनुमान नहीं होते अगर हनुमान नहीं होते,
चाहे कुछ भी कहो मेरे राम तुम्हारे काम नहीं होते……
तुम्हारा भक्त है सच्चा तुम्हारा दीवाना है
तेरे चरणों में प्रभु जी इनका ठिकाना है
ये भक्त नहीं होते तो तुम भगवान नहीं होते,
हनुमान नहीं होते अगर हनुमान नहीं होते,
हनुमान नहीं होते अगर हनुमान नहीं होते,
चाहे कुछ भी कहो मेरे राम तुम्हारे काम नहीं होते…..
ओढ़कर फिरता है यह तुम्हारे नाम की चादर
तेरे चरणों में बैठे हमेशा सर को झुका कर
ये देता नहीं तेरा साथ तेरे गुणगान नहीं होते,
हनुमान नहीं होते अगर हनुमान नहीं होते,
हनुमान नहीं होते अगर हनुमान नहीं होते,
चाहे कुछ भी कहो मेरे राम तुम्हारे काम नहीं होते….
बिछुड़ जाते सीते से बिछुड़ जाते हैं भैया से,
कैसे मुख दिखलाते तुम अयोध्या में मैया से,
यह काम बड़े मुश्किल कभी आसान नहीं होता,
हनुमान नहीं होते अगर हनुमान नहीं होते,
हनुमान नहीं होते अगर हनुमान नहीं होते,
चाहे कुछ भी कहो मेरे राम तुम्हारे काम नहीं होते……
तेरे रघुकुल की कहावत आज भी दोहराते हैं
तेरे झंडे बनवारी आज भी लहराते हैं
रघुकुल रीत सदा चली आई,
प्राण जाए पर वचन न जाए,
माता कौशल्या को हे राम आप ने वचन दिया,
जब वन से लौटूंगा तो सीता को साथ लाऊंगा,
लक्ष्मण भैया को साथ लाऊंगा,
लेकिन हे राम अगर हनुमान नहीं होते,
तो न लक्ष्मण वापस आते ना सीता वापस आती……
तेरे रघुकुल की कहावत आज भी दोहराते हैं
तेरे झंडे बनवारी आज भी लहराते हैं,
ये होता नहीं इसके अगर एहसान नहीं होते,
हनुमान नहीं होते अगर हनुमान नहीं होते,
हनुमान नहीं होते अगर हनुमान नहीं होते,
चाहे कुछ भी कहो मेरे राम तुम्हारे काम नहीं होते……
भाव से स्मरण या भजन करने की विधि
- स्थान और तैयारी: मंगलवार या शनिवार को हनुमान जी के चित्र या मूर्ति के सामने दीपक और लाल फूल चढ़ाएँ।
- प्रारंभ: तीन बार “जय हनुमान” कहें और श्रीराम-हनुमान जी का ध्यान करें।
- भजन या जप: श्रद्धा से “अगर हनुमान नहीं होते” भाव वाला भजन गाएँ या सुनें।
- भावना रखें: यह अनुभव करें कि हनुमान जी आज भी आपके हर कार्य में आपके सहायक हैं।
- प्रार्थना: अंत में कहें — “हे पवनसुत, मेरे जीवन को भी आपकी तरह सेवा और भक्ति से भर दो।”
इस भक्ति भाव से मिलने वाले लाभ
- सेवा का भाव: मन में निस्वार्थता और दूसरों की सहायता की भावना उत्पन्न होती है।
- संकट से मुक्ति: जीवन के हर कठिन समय में हनुमान जी शक्ति प्रदान करते हैं।
- साहस और आत्मविश्वास: भय और भ्रम मिटाकर आत्मबल बढ़ाते हैं।
- भक्ति में वृद्धि: श्रीराम और हनुमान जी के प्रति प्रेम और समर्पण बढ़ता है।
- सदाचार का विकास: मन में सत्य, मर्यादा और विनम्रता की भावना आती है।
निष्कर्ष
“अगर हनुमान नहीं होते” — यह पंक्ति हमें यह एहसास कराती है कि प्रभु श्रीराम की लीला अधूरी होती अगर हनुमान जी न होते। वे केवल एक भक्त नहीं, बल्कि भक्ति के साक्षात प्रतीक हैं। उनका जीवन सिखाता है कि सच्चा प्रेम बिना अपेक्षा, सच्ची भक्ति बिना दिखावे और सच्ची शक्ति बिना अहंकार के होती है।

