हथ विच डमरू पैरान विच घुँघरू | नटराज शिव का दिव्य नृत्य और ब्रह्मांड की लय

हथ विच डमरू पैरान विच घुँघरू | नटराज शिव का दिव्य नृत्य और ब्रह्मांड की लय

हथ विच डमरू पैरान विच घुँघरू यह पंक्ति भगवान शिव के उस अद्भुत रूप का वर्णन करती है जिसमें वे नटराज बनकर सृष्टि की ताल और लय को साधते हैं। उनके हाथ में डमरू सृष्टि के सृजन और संहार का प्रतीक है, तो उनके पैरों में बंधे घुँघरू जीवन की गति और ऊर्जा का प्रतीक हैं। जब भोलेनाथ नृत्य करते हैं, तो ब्रह्मांड की हर धड़कन उनकी ताल पर थिरक उठती है। यह भाव हमें सिखाता है कि शिव ही जीवन की लय हैं — सृजन, संहार और संतुलन के आधार।

rajeshswari

हाथ में डमरू, पैरों में घुंघरू,
भोले बाबा नाचें ॥
भोले, बाबा नाचें, गौरा मां के आगे ॥
हो के, दीवाने, बड़े मस्ताने,
भोले बाबा नाचें ॥
हो, हाथ में डमरू…

तेरे, डमरू पे, लगा है फीता,
पियाला, भंग का, भोले ने भर के पीता ॥
हो, हाथ में डमरू…

तेरे, डमरू की, लाल-लाल गानी,
सारी, दुनिया है, भोले की दीवानी ॥
हो, हाथ में डमरू…

तेरे, डमरू की, मीठी-मीठी तान रे,
दर्शन, भोले के, तड़पे जिंद-जान रे ॥
हो, हाथ में डमरू…

तेरे, डमरू पे, सोने की मेखें,
सूरत, भोले की, मैं रज-रज देखूं ॥
हो, हाथ में डमरू…

तेरा, डमरू है, जहां-जहां बजता,
भक्तों, का है, मेला वहां लगता ॥
हो, हाथ में डमरू…

तेरा, डमरू है, डम-डम बजता,
गेर, चौरासी वाले, भक्तों के काटता ॥
हो, हाथ में डमरू…

जब, डमरू को, भोला है बजाता,
आप, नाचता और, सबको नचाता ॥
हो, हाथ में डमरू…

हर हर महादेव

भाव से पूजन या ध्यान विधि

  1. दिन और समय: सोमवार या महाशिवरात्रि के दिन विशेष रूप से उपयुक्त।
  2. स्थान: घर के मंदिर में भगवान नटराज या शिवलिंग की स्थापना करें।
  3. सामग्री: दीपक, धूप, पुष्प, बेलपत्र, गंगाजल और चंदन रखें।
  4. प्रारंभ: “ॐ नमः शिवाय” का तीन बार जप करें और दीप प्रज्वलित करें।
  5. पूजन या ध्यान: भगवान नटराज की प्रतिमा के सामने बैठकर डमरू की ध्वनि की कल्पना करें और “हथ विच डमरू पैरान विच घुँघरू” भाव से ध्यान लगाएँ।
  6. भजन या जप: इस पंक्ति को श्रद्धा से भजन रूप में गाएँ या दोहराएँ।
  7. समापन: अंत में प्रार्थना करें — “हे नटराज, मेरे जीवन में भी आपकी लय और संतुलन बना रहे।”
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इस भक्ति से मिलने वाले लाभ

  • मानसिक शांति: ध्यान और भक्ति से मन को सुकून और स्थिरता मिलती है।
  • संतुलन और सकारात्मकता: जीवन में लय और सामंजस्य की भावना आती है।
  • साहस और ऊर्जा: शिव के नृत्य रूप की उपासना से आत्मविश्वास और शक्ति बढ़ती है।
  • संकटों से मुक्ति: प्रभु की कृपा से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं।
  • भक्ति में गहराई: शिव के प्रति प्रेम और आत्मिक जुड़ाव गहरा होता है।

निष्कर्ष

हथ विच डमरू पैरान विच घुँघरू यह भाव केवल भगवान शिव के नृत्य का नहीं, बल्कि सृष्टि के संचालन का प्रतीक है। जब भोलेनाथ अपने डमरू की ताल बजाते हैं, तो वह केवल संगीत नहीं, बल्कि सृष्टि की गति है। उनके घुँघरुओं की झंकार से जीवन में नव ऊर्जा और प्रेरणा का संचार होता है। यह भाव हमें सिखाता है कि जीवन भी एक नृत्य है, और उसके हर कदम में शिव की लय बसती है। जो इस लय को पहचान लेता है, वह जीवन में संतुलन, भक्ति और आनंद का अनुभव करता है।

Shiv murti

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