सुन ल्यो अर्जा म्हारी | भक्त की सच्ची पुकार और प्रभु से करुणा की विनती
“सुन ल्यो अर्जा म्हारी” एक ऐसी पंक्ति है जो सीधे भक्त के मन की गहराइयों से निकलती है। जब जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं और मन ईश्वर की शरण में झुकता है, तब यह पुकार अपने आप होंठों पर आती है। यह केवल शब्द नहीं, बल्कि भक्ति का सार है — एक ऐसी भावना जिसमें आस्था, प्रेम और भरोसा समाया हुआ है। इस भक्ति में वह विश्वास झलकता है कि प्रभु सब सुनते हैं और अपने भक्तों की प्रार्थनाओं का उत्तर अवश्य देते हैं।

सुन ल्यो अर्जा म्हारी॥ ध्जाबन्द धारी
मैं तो आयो हूँ शरण मैं थारी,ध्जाबन्द धारी
उजड़ गया नै बाबा ,अब थे हि बसाओ,
घर गी म्हारी सगली , खुशियां लोटा ओ ॥
म्हाने थारो भरोसो बड़ों भारी, ध्जाबन्द धारी
मैं तो आयो हूँ शरण मैं थारी, ध्जाबन्द धारी
सुन ल्यो अर्जा ……….
जग ओ बेरी बाबा , म्हाने घनो सतायो
दर दर भटकयो बाबा , ना कन गले लगायो ॥
म्हाने सगला हि ठोक र मारी, ध्जाबन्द धारी
मैं तो आयो हूँ शरण मैं थारी , ध्जाबन्द धारी
सुन ल्यो अर्जा ……….
कर दयो किरपा बाबा , दिन असो दिखाओ,
आदिवाल परिवार रा, सब दुखड़ा मिटा ओ,
रवि दुखड़ा मैं उम्र गुजारी, ध्जाबन्द धारी
मैं तो आयो हूँ शरण मैं थारी , ध्जाबन्द धारी
सुन ल्यो अर्जा . . . . . . . .
भाव से पूजा या स्मरण विधि
- दिन: मंगलवार, शनिवार या अपने आराध्य देव के विशेष दिन पर करें।
- स्थान: घर के मंदिर या शांत स्थान पर बैठकर दीपक जलाएँ।
- सामग्री: फूल, धूप, दीपक, जल, और प्रसाद (फल या मिठाई)।
- प्रारंभ: “ॐ श्री हनुमते नमः” या अपने इष्ट देव का मंत्र 11 बार जपें।
- पूजन: भगवान को फूल और जल अर्पित करते हुए कहें — “हे प्रभु, सुन ल्यो अर्जा म्हारी, मेरे मन की व्यथा तुम ही जानो।”
- आरती करें: श्रद्धा से आरती करें और मन में अपनी प्रार्थना दोहराएँ।
- समापन: प्रसाद बाँटें और कुछ क्षण ध्यान में बैठकर ईश्वर की कृपा का अनुभव करें।
भाव से मिलने वाले लाभ
- मन की व्याकुलता और चिंता दूर होती है।
- भक्ति और श्रद्धा में दृढ़ता आती है।
- कठिन परिस्थितियों में भी आत्मविश्वास बना रहता है।
- ईश्वर की कृपा से जीवन में सुख-शांति और संतुलन आता है।
- परिवार में सकारात्मकता और आपसी प्रेम बढ़ता है।
निष्कर्ष
“सुन ल्यो अर्जा म्हारी” भक्त और भगवान के बीच उस पवित्र संवाद का प्रतीक है जो शब्दों से नहीं, भावनाओं से होता है। जब मन पूरी सच्चाई से ईश्वर को पुकारता है, तब प्रभु मौन रहते हुए भी हर अर्जा सुन लेते हैं। यह भाव हमें सिखाता है कि सच्ची प्रार्थना हमेशा स्वीकार होती है — बस उसमें प्रेम और समर्पण होना चाहिए। जो व्यक्ति भक्ति के इस भाव में जीता है, उसके जीवन में हर कठिनाई अवसर बन जाती है और हर दिन ईश्वर के आशीर्वाद से प्रकाशित होता है।

