पकड़ लो बाँह रघुराई | एक विनती भक्ति गीत
“पकड़ लो बाँह रघुराई — नहीं तो डूब जाएँगे” एक सच्चे भक्त की आत्मीय पुकार है, जहाँ वे रघुवीर (राम) से अपनी आशा और जीवन की रक्षा की विनती करते हैं। इस पंक्ति में विनम्रता, विश्वास और जीवन-रक्षक आश्रय की भावना साफ़ झलकती है। जब मन विपदा में झूलता है, तब यही सरल पुकार हृदय को साहस और भरोसा देती है। यह भजन हर सुनने वाले को याद दिलाता है कि सच्चा आश्रय और शरण वही है जहाँ हमें बिना शर्त स्वीकार किया जाता है।

पकड़ लो बाँह रघुराई नहीं तो डूब जाएँगे,
भरोसा तुम पे है राघव तुम्हीं को ही बुलाएंगे……..
डगर ये अगम अनजानी पथिक मै मूढ अज्ञानी,
संभालोगे नही राघव तो कांटे चुभ जाएँगे,
भरोसा तुम पे है राघव तुम्हीं को ही बुलाएंगी,
पकड़ लो बाँह रघुराई नहीं तो डूब जाएँगे……….
नहीं बोहित मेरा नौका नहीं तैराक मै पक्का,
कृपा का सेतु बंधन हो प्रभु हम खूब आएँगे,
भरोसा तुम पे है राघव तुम्हीं को ही बुलाएंगी,
पकड़ लो बाँह रघुराई नहीं तो डूब जाएँगे……….
नहीं है बुधि विधा बल माया में डूबी मती चंचल,
निहारेंगे मेरे अवगुण तो प्रभु जी ऊब जाएँगे,
भरोसा तुम पे है राघव तुम्हीं को ही बुलाएंगी,
पकड़ लो बाँह रघुराई नहीं तो डूब जाएँगे……….
प्रतीक्षारत है ये आँगन शरण ले लो सिया साजन,
शिकारी चल जिधर प्रहलाद जी भूल जाएँगे,
भरोसा तुम पे है राघव तुम्हीं को ही बुलाएंगी,
पकड़ लो बाँह रघुराई नहीं तो डूब जाएँगे……….
विधि श्रद्धा के साथ कैसे गाएँ
- शांत और स्वच्छ स्थान चुनें; सुबह या साँझ का समय उत्तम है।
- श्रीराम या रघुवीर की छवि/मूर्ति के सामने दीपक और पुष्प रखें।
- पाँच–दस गहरी सांस लें, मन को थोड़ा शांत करें और संकल्प लें कि यह निवेदन सच्चे मन से है।
- धीमे, भावपूर्ण स्वर में पंक्ति को 11/21/108 बार जप करें या भजन के रूप में गाएँ — हर बार “पकड़ लो बाँह रघुराई” का अर्थ समझते हुए।
- जप के बाद 1–2 मिनट मौन बैठकर प्रभु की उपस्थिति महसूस करें और उन्हें अपना समर्पण अर्पित करें।
लाभ इस भक्ति से मिलने वाले प्रभाव
- आत्मिक शांति: भीतर का भय और अनुकूल न होने का अहसास घटता है।
- विश्वास और साहस: संकट में मन को एक स्थिर आश्रय मिलता है।
- भावनात्मक समर्थन: अकेलापन कम होकर आत्मविश्वास बढ़ता है।
- आध्यात्मिक सुरक्षा: भक्त को लगेगा कि प्रभु ने उसकी रक्षा के लिए हाथ बढ़ाया है।
- जीवन सरल होता है: निर्णयों में स्पष्टता और मनोबल आता है, कार्य सहज बनते हैं।
निष्कर्ष
यह पंक्ति सिर्फ एक शब्द-समूह नहीं, बल्कि संकट के समय की वह सच्ची पुकार है जो दिल को थाम लेती है। “पकड़ लो बाँह रघुराई” का अर्थ है — अपने अंदर की मजबूरी को खोल कर प्रभु के कदमों तक पहुँचना, और विश्वास से उनका हाथ थाम लेना। जब हम यही भाव लेकर बैठते हैं, तो अनुभव होता है कि आध्यात्मिक सहायता मिल जाती है — और जीवन की लहरें भी किनारे की ओर बहती दिखाई देती हैं। ऐसे ही सरल, भरोसे वाले स्मरण से मन में सच्ची शांति और मार्गदर्शन आता है। जय श्रीराम।

