जय हनुमंत संत हितकारी | भक्ति, सेवा और शक्ति का अद्भुत संगम
“जय हनुमंत संत हितकारी” — यह वाक्य उस अनंत करुणा और सेवा भावना का प्रतीक है जो भगवान हनुमान जी के स्वभाव की पहचान है। वे केवल बल, बुद्धि और विजय के देवता ही नहीं, बल्कि सच्चे भक्तों और संतों के हितकारी भी हैं। जब जीवन में कठिनाइयाँ आती हैं या मन भयभीत होता है, तब “जय हनुमंत संत हितकारी” का उच्चारण हृदय में विश्वास और साहस भर देता है। यह पंक्ति हमें याद दिलाती है कि सेवा, नम्रता और निष्ठा से ही प्रभु की कृपा प्राप्त की जा सकती है।

दोहा:-
( निश्चय प्रेम प्रतीति ते
बिनय करै सनमान
तेहि के कारज सकल शुभ
सिद्ध करै हनुमान॥ )
चौपाई:-
जय हनुमंत संत हितकारी,
सुन लीजे प्रभु अरज हमारी,
जन के काज बिलंब न कीजे,
आतुर दौरि महा सुख दीजे।
जैसे कूदि सिंधु महिपारा,
सुरसा बदन पैठ बिस्तारा,
आगे जाए लंकिनी रोका,
मारेहु लात गयी सुर लोका।
जाय बिभीषन को सुख दीन्हा,
सीता निरखि परमपद लीन्हा,
बाग उजारि सिंधु महँ बोरा,
अति आतुर जमकातर तोरा।
अक्षय कुमार को मारि संहारा,
लूम लपेटि लंक को जारा,
लाह समान लंक जरि गयी,
जय जय धुनि सुरपुर नभ भयी।
अब बिलंब केहि कारन स्वामी,
कृपा करहु उर अंतरयामी,
जय जय लखन प्रान के दाता,
आतुर होय दुख करहु निपाता।
जय हनुमान जयति बल सागर,
सुर-समूह-समरथ भट-नागर,
ओम हनु हनु हनु हनुमंत हठीले,
बैरिहि मारु बज्र की कीले।
ॐ ह्नीं ह्नीं ह्नीं हनुमंत कपीसा,
ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर सीसा,
जय अंजनि कुमार बलवंता,
शंकरसुवन बीर हनुमंता।
बदन कराल काल-कुल घालक,
राम सहाय सदा प्रतिपालक,
भूत प्रेत पिसाच निसाचर,
अग्नि बेताल काल मारी मर।
इन्हें मारु तोहि सपथ राम की,
राख नाथ मरजाद नाम की,
सत्य होहु हरि सपथ पाइ के,
राम दूत धरु मारु धाइ के।
जय जय जय हनुमंत अगाधा,
दुख पावत जन केहि अपराधा,
पूजा जप तप नेम अचारा,
नहिं जानत कछु दास तुम्हारा।
बन उपबन मग गिरि गृह माहीं,
तुम्हरे बल हौं डरपत नाहीं,
जनकसुता हरि दास कहावो,
ताकी सपथ बिलंब न लावो।
जै जै जै धुनि होत अकासा,
सुमिरत होय दुसह दुख नासा,
चरन पकरि कर जोरि मनावौं,
यहि औसर अब केहि गोहरावौं।
उठु उठु चलु तोहि राम दुहायी,
पायँ परौं कर जोरि मनाई,
ओम चं चं चं चं चपल चलंता,
ओम हनु हनु हनु हनु हनुमंता।
ओम हं हं हाँक देत कपि चंचल,
ओम सं सं सहमि पराने खल-दल,
अपने जन को तुरत उबारौ,
सुमिरत होय आनंद हमारौ।
यह बजरंग-बाण जेहि मारै,
ताहि कहौ फिरि कवन उबारै,
पाठ करै बजरंग-बाण की,
हनुमत रक्षा करै प्राण की।
यह बजरंग बाण जो जापैं,
तासों भूत-प्रेत सब कापैं,
धूप देय जो जपै हमेशा,
ताके तन नहिं रहै कलेशा।
दोहा:-
( प्रेम प्रतीतिहिं कपि भजै
सदा धरै उर ध्यान
तेहि के कारज सकल शुभ
सिद्ध करै हनुमान॥ )
विधि
- स्थान की तैयारी: हनुमान जी के चित्र या मूर्ति के सामने दीपक और चंदन का दीप जलाएँ।
- प्रारंभ: तीन बार “जय हनुमंत संत हितकारी” का उच्चारण करें।
- स्मरण: हनुमान चालीसा या हनुमान जी के किसी प्रिय मंत्र का पाठ करें।
- भावना: मन में यह भाव रखें कि प्रभु आपके जीवन से भय और बाधाएँ दूर कर रहे हैं।
- अर्पण: प्रसाद में गुड़ या चने का भोग लगाएँ।
- समापन: अंत में हाथ जोड़कर प्रार्थना करें — “हे हनुमंत, मेरे जीवन में भी सेवा और सद्बुद्धि का प्रकाश करें।”
लाभ
- भय और बाधाओं से मुक्ति: हनुमान जी की कृपा से नकारात्मक शक्तियाँ दूर होती हैं।
- बल और आत्मविश्वास: मानसिक और शारीरिक शक्ति में वृद्धि होती है।
- सद्बुद्धि और विवेक: जीवन में सही निर्णय लेने की शक्ति मिलती है।
- भक्ति में वृद्धि: मन में प्रभु श्रीराम और हनुमान जी के प्रति गहरी आस्था उत्पन्न होती है।
- संरक्षण और सफलता: हनुमान जी का आशीर्वाद जीवन के हर क्षेत्र में सफलता दिलाता है।
निष्कर्ष
“जय हनुमंत संत हितकारी” — यह पंक्ति भक्त के जीवन में आशा, शक्ति और श्रद्धा का दीपक प्रज्वलित करती है।
हनुमान जी न केवल अपने भक्तों के संकट हरते हैं, बल्कि उन्हें धर्म, सेवा और प्रेम के मार्ग पर चलने की प्रेरणा भी देते हैं।
जब भी जीवन में अंधकार छाए, बस श्रद्धा से पुकारें — “जय हनुमंत संत हितकारी” — और महसूस करें कि संकटमोचन आपके साथ हैं।

