ओ राधे काहे नैन चुरावे मोते बच ना पावेगी

ओ राधे काहे नैन चुरावे मोते बच ना पावेगी

“ओ राधे काहे नैन चुरावे मोते बच ना पावेगी” — यह पंक्ति ब्रज की उस मधुर लीला की याद दिलाती है जहाँ श्रीकृष्ण और राधारानी का प्रेम खेल स्वयं भक्ति का प्रतीक बन जाता है। इसमें शरारत के साथ गहरा आध्यात्मिक अर्थ भी छिपा है — प्रेम में कोई छल नहीं, केवल सच्ची भावना और समर्पण होता है। यह भाव हमें यह सिखाता है कि ईश्वर से संबंध केवल पूजा का नहीं, बल्कि स्नेह और आत्मीयता का भी होता है। जब भक्ति प्रेम में घुल जाती है, तब राधा-कृष्ण का मिलन भीतर घटने लगता है।

rajeshswari

ओ राधे कहे नैन चुरावे मोते बच ना पावेगी
कन्हिया क्यों ज्यादा इतरावे आफत तोपे आवेगी
राधे काहे नैन चुरावे मोते बच ना पावेगी
कन्हिया क्यों ज्यादा इतरावे आफत तोपे आवेगी

1 ) तेरी मेरी प्रीत पुरानी , कहे रार करे वृजरानी
कान्हा का तने मन मे ठानी , उलटी बात करे मनमानी
राधिके कर मेरी पहचान , ना मोते फिर शरमावेगी
कन्हैयाँ क्यों ज्यादा इतरावे आफत तोपे आवेगी

2 ) तेरा बरसाने क्या काम , चला जा उलटा तू नंदगाँव
तू राधा में तेरो श्याम , मिटाएले प्यारी भ्रम तमाम
रही ना तेरी अखियन में लाज की दुनियाँ बात बनावे गी
राधे कहे नैन चुरावे मोते बच ना पावेगी

3 ) प्रेम की बात तोये समझाऊँ मुरलिया तेरे लिए बजाऊँ
में बातन में ना ही आऊँ जल भर के अपने घर जाऊँ
मैं मार्ग रोक खड़ा हो जाऊँ किशोरी कैसे जावेगी
कन्हिया क्यों ज्यादा इतरावे आफत तोपे आवेगी

4 ) छेड़े काहे मोहे मुरारी मोते दूर हटो बनवारी
प्रेम की भिक्षा दे दो प्यारी दुभिदा खत्म करो अब सारी
ओ भूलन त्यागी हरि की लीला सब की वाणी गावेगी
ओ राधे काहे नैन चुरावे मोते बच ना पावेगी
बच ना पावेगी ओ राधे बच ना पावेगी
राधे काहे नैन चुरावे मोते बच ना पावेगी
कन्हैयाँ क्यों ज्यादा इतरावे आफत तोपे आवेगी
राधे काहे नैन चुरावे मोते बच ना पावेगी
कन्हैयाँ क्यों ज्यादा इतरावे आफत तोपे आवेगी

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इस भाव से भक्ति करने की विधि

  1. समय: ब्रह्ममुहूर्त या संध्या का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है।
  2. स्थान: श्रीकृष्ण और राधारानी की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीपक और धूप जलाएँ।
  3. प्रारंभ: “जय श्रीराधे जय श्रीकृष्ण” का उच्चारण करते हुए मन को स्थिर करें।
  4. भजन या जप: इस पंक्ति को भक्ति भाव से गाएँ —
    “ओ राधे काहे नैन चुरावे मोते बच ना पावेगी।”
    इसे गाते समय यह भाव रखें कि राधा और कृष्ण आपके हृदय में लीला कर रहे हैं।
  5. भावना: यह अनुभव करें कि आपकी आत्मा राधारानी के समान प्रेममयी है और कृष्ण आपके भीतर की चेतना हैं।
  6. समापन: अंत में दोनों को प्रणाम करें और हृदय में यह भाव जगाएँ — “मेरा प्रेम तुमसे ही है और तुम्हीं में विलीन हो जाए।”

इस भाव से भक्ति करने के लाभ

  • प्रेम और भक्ति में गहराई आती है।
  • मन आनंद और शांति से भर जाता है।
  • अहंकार मिटता है और नम्रता आती है।
  • राधा-कृष्ण की कृपा से जीवन में प्रेममयता बढ़ती है।
  • भक्ति में सहजता और सच्ची आत्मीयता का अनुभव होता है।

निष्कर्ष

“ओ राधे काहे नैन चुरावे मोते बच ना पावेगी” — यह केवल प्रेम का संवाद नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा की अनन्त लीला का प्रतीक है। इसमें वह संदेश छिपा है कि ईश्वर से कोई भी नज़रों से नहीं बच सकता, क्योंकि वे हृदय में वास करते हैं। जब हम इस भाव से भक्ति करते हैं, तो जीवन की हर कठिनाई प्रेम में बदल जाती है। राधा-कृष्ण का यह खेल हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम वही है जो नज़रों से नहीं, आत्मा से जुड़ता है।

Shiv murti

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