धरो सर पे हाथ | शरण, भरोसा और कृपा का दिव्य भाव
“धरो सर पे हाथ” — यह केवल एक प्रार्थना नहीं, बल्कि भक्त के हृदय की सबसे गहरी पुकार है। जब जीवन में दुख या उलझनें आती हैं, तब यही शब्द मन से निकलते हैं — “हे प्रभु, अपनी कृपा का हाथ मेरे सिर पर रखो।” यह वाक्य सिखाता है कि सच्चा सुकून बाहरी चीज़ों में नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा में है। जिस क्षण हम प्रभु की शरण में जाते हैं, उस क्षण सारी थकान और भय मिट जाते हैं। यह भाव हर भक्त को विश्वास से भर देता है कि भगवान सदा उसके साथ हैं।

बैकुंठ नाथ धरो सर पे हाथ,
हो जाए कृपा जो थारी,
हे निकुंज निरंजन दीजो आशीर्वाद,
आया शरण मैं तुम्हारी,
पग पग राह कठिन है
मन मेरा दूषित मलिन है
जीवन नीरस लगने लगा भारी
हो जाए कृपा जो थारी,
आया शरण मैं तुम्हारी,
मन से मेरे विकार मिटादो
प्रभु जी अंधकार हटा दो
सच्ची मुझको राह दिखा दो
चरण शरण में ले लो भगवन
जाऊँ मैं वारी बलिहारी
हो जाए कृपा जो थारी
आया शरण मैं तुम्हारी
भाव से पूजन या स्मरण विधि
- दिन: सोमवार या गुरुवार का दिन विशेष शुभ माना जाता है।
- स्थान: घर के मंदिर या भगवान के चित्र के सामने दीपक जलाएँ।
- सामग्री: फूल, चंदन, धूप, दीपक, प्रसाद (खीर या फल) रखें।
- प्रारंभ: मन को शांत करें और “ॐ श्री श्यामाय नमः” या अपने आराध्य का नाम 11 बार जपें।
- पूजन: भगवान को पुष्प अर्पित करें हाथों से कहें — “हे प्रभु, बस धरो सर पे हाथ, यही मेरा सहारा है।”
- आरती: दीपक घुमाकर आरती करें और मन ही मन कृतज्ञता व्यक्त करें।
- समापन: अंत में प्रसाद ग्रहण करें और कुछ पल ध्यान में शांत बैठें।
इस भक्ति से मिलने वाले लाभ
- मन को शांति और आत्मबल प्राप्त होता है।
- जीवन की कठिनाइयाँ सरल लगने लगती हैं।
- भय, चिंता और नकारात्मकता दूर होती है।
- ईश्वर पर विश्वास और भक्ति में दृढ़ता आती है।
- घर-परिवार में सुकून और सौहार्द का वातावरण बनता है।
निष्कर्ष
“धरो सर पे हाथ” — यह भाव जीवन की हर परिस्थिति में शक्ति और सुकून देता है। जब हम ईश्वर से यह विनती करते हैं, तो हमारे भीतर एक नई आशा का संचार होता है। यह हाथ केवल आशीर्वाद नहीं, बल्कि सुरक्षा, प्रेम और करुणा का प्रतीक है। सच्चा भक्त वही है जो हर पल यह विश्वास रखता है कि प्रभु का हाथ सदा उसके सिर पर है। इस भावना के साथ जीवन में चलने वाला व्यक्ति कभी अकेला नहीं पड़ता — क्योंकि उसके हर कदम पर प्रभु का साथ होता है।

