अवध में होली खेलें रघुवीरा | भक्तिरस और रंगोत्सव का पावन संगम

अवध में होली खेलें रघुवीरा | भक्तिरस और रंगोत्सव का पावन संगम

“अवध में होली खेलें रघुवीरा” — यह पंक्ति भक्तों की कल्पना को उस आनंदमय दृश्य में ले जाती है जहाँ भगवान श्रीराम, माता सीता और अवधवासी भक्त मिलकर प्रेम और उल्लास की होली खेल रहे हैं। यह केवल एक त्योहार का चित्रण नहीं, बल्कि भक्ति और आनंद के मिलन का प्रतीक है। जब भक्त इस पंक्ति का उच्चारण करता है, तो उसके हृदय में भी वही रंग भर जाते हैं — प्रेम, भक्ति और आनंद के। यह भजन हमें याद दिलाता है कि सच्ची होली केवल रंगों से नहीं, बल्कि प्रभु प्रेम में रंग जाने से पूरी होती है।

rajeshswari

होली खेलें रघुवीरा, अवध में होली खेलें रघुवीरा……

संग में खेलें जानकी माता,
हनुमत भरत लखन सब भ्राता,
बीच खड़े रघुवीरा,
होली खेलें रघुवीरा,
अवध में होली खेलें रघुवीरा……

अपने दास पे रंग डाला रघुवर,
किरपा की पिचकारी भरकर,
कोयला बन जाये हीरा,
होली खेलें रघुवीरा,
अवध में होली खेलें रघुवीरा……

रंग केसरिया राम जी को भावे,
जनक दुलारी माँग सजावें,
हनुमत रंगें शरीरा,
होली खेलें रघुवीरा,
अवध में होली खेलें रघुवीरा……

ऐसा रंग तुलसी पे डाला,
राम चरित मानस रच डाला,
सबपे किरपा करो रघुवीरा,
होली खेलें रघुवीरा,
अवध में होली खेलें रघुवीरा……

विधि भक्ति भाव से इस गीत या भाव का स्मरण करने की विधि

  1. स्थान और समय: होली के अवसर पर या किसी भी दिन जब मन प्रसन्न हो, घर या मंदिर में श्रद्धा से बैठें।
  2. तैयारी: श्रीराम, सीता माता और भक्त हनुमान जी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक और पुष्प अर्पित करें।
  3. प्रारंभ: “जय श्रीराम” का तीन बार उच्चारण करें और मन को आनंदमय बनाएं।
  4. भजन/जप: भावपूर्ण स्वर में “अवध में होली खेलें रघुवीरा” पंक्ति का भजन गाएँ या सुनें।
  5. भावना रखें: कल्पना करें कि आप भी उस अवध नगरी के साक्षी हैं, जहाँ रघुवर स्वयं भक्तों के संग रंगों में रमे हुए हैं।
  6. समापन: अंत में प्रणाम कर प्रभु से प्रार्थना करें कि आपके जीवन में भी सदा प्रेम और उल्लास के रंग बने रहें।
इसे भी पढ़े   भटको चाहे जिधर | प्रभु की ओर लौटने का भाव और सच्ची दिशा का संकेत

लाभ इस भक्ति भाव के आध्यात्मिक और मानसिक लाभ

  • भक्ति और आनंद का समागम: मन में उत्साह और प्रेम का संचार होता है।
  • सकारात्मक ऊर्जा: घर का वातावरण उल्लास और शांति से भर जाता है।
  • तनाव में कमी: संगीत और भक्ति के संग मन को हल्कापन मिलता है।
  • आध्यात्मिक जुड़ाव: प्रभु श्रीराम के प्रति प्रेम और श्रद्धा गहरी होती है।
  • परिवार में सौहार्द: यह भाव सभी में एकता और प्रेम की भावना जागृत करता है।

निष्कर्ष

“अवध में होली खेलें रघुवीरा” — यह पंक्ति केवल एक भजन नहीं, बल्कि प्रभु श्रीराम के भक्तों के हृदय में बसे आनंद का उत्सव है। जब हम इस भाव को जीते हैं, तो जीवन भी एक रंगमय होली बन जाता है — जहाँ हर रंग प्रेम, करुणा और भक्ति का प्रतीक होता है। अवध की इस पवित्र होली में भाग लेना यानी प्रभु के साथ मिलकर आत्मा को आनंद में डुबो देना है।
आइए, हम सब अपने मन के द्वार खोलें और प्रभु रघुवीर के रंगों से अपने जीवन को भर लें।

Shiv murti

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *