राधे तोहिं भूलूँ नहिं कभू पल आधे | प्रेम, भक्ति और समर्पण का अमृत भजन

“राधे तोहिं भूलूँ नहिं कभू पल आधे” भजन राधारानी के प्रति अटूट प्रेम और समर्पण की भावना को प्रकट करता है। यह गीत एक भक्त के उस प्रेम का प्रतीक है, जिसमें राधे नाम ही जीवन का सार बन जाता है। इसे गाते समय मन में एक पवित्र भाव जागता है — जैसे हर श्वास में “राधे-राधे” का नाम बस गया हो। यह भजन मन को कोमल बनाता है, अहंकार मिटाता है और ईश्वर के सच्चे प्रेम की अनुभूति कराता है।

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राधे तोहिं भूलूँ नहिं कभू पल आधे।
मेरा सब कुछ तेरा दिया हुआ राधे।
तन ले ले मन ले ले धन ले ले राधे।
जनम जनम का भिखारी तोहिं का दे।
बरबस ले ले सब प्रेम सुधा दे।
भुक्ति मुक्ति माँगूँ नहिं प्रेम सुधा दे।
निज सेवा ना दे जो तो जन सेवा दे।
पिय सँग गलबाँही दै के दिखा दे।
ब्रजरस की इक बूँद पिला दे।
अधम उधारन विरद निभा दे।
तोहिं तजि जाऊँ कित नाम बता दे।
मुझ खोटे को खरों के सँग चला दे।
तू ही इक मेरी यह बोध करा दे।
छोड़ूंँ नहिं पाछा चाहे चक्र चला दे।
तेरी दासी माया वाय डाटि भगा दे।
तोहिं दीन प्रिय मोहिं दीन बना दे।।।
अपने कृपालु को भी प्रेम दिला दे॥

गायन की विधि

  • प्रातः या सायंकाल के समय शांत मन से बैठें।
  • श्री राधा-कृष्ण की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएँ।
  • ताजे फूल और तुलसीदल अर्पित करें।
  • फिर धीरे-धीरे भावपूर्ण स्वर में “राधे तोहिं भूलूँ नहिं कभू पल आधे” भजन गाएँ।
  • हर पंक्ति में राधे नाम का स्मरण और प्रेम का भाव रखें।
  • अंत में श्री राधे-कृष्ण से आशीर्वाद और प्रेम की कृपा की प्रार्थना करें।
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लाभ

  • मन में भक्ति और प्रेम का संचार होता है।
  • मानसिक शांति और स्नेहपूर्ण ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • अहंकार और नकारात्मक विचार धीरे-धीरे दूर होते हैं।
  • हृदय में करुणा, प्रेम और विश्वास का भाव उत्पन्न होता है।
  • राधे-कृष्ण की कृपा से जीवन में संतुलन और आनंद आता है।

निष्कर्ष

“राधे तोहिं भूलूँ नहिं कभू पल आधे” भजन केवल शब्दों का मेल नहीं, बल्कि एक भक्त की आत्मा का पुकार है। इसे गाने से मन में भक्ति की गहराई बढ़ती है और राधे-कृष्ण के प्रेम की अनुभूति होती है। यह भजन हमें सिखाता है कि सच्चा प्रेम भक्ति में है — जहाँ स्मरण ही साधना बन जाता है और “राधे नाम” ही जीवन का आधार।

Shiv murti

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