रोये रोये पाती रुक्मणि बिटिया लिख रही जी
“रोये रोये पाती रुक्मणि बिटिया लिख रही जी” — यह पंक्ति उस पवित्र क्षण की याद दिलाती है जब रुक्मिणीजी अपने प्रिय श्रीकृष्ण को सच्चे हृदय से पुकारती हैं। उनके आँसुओं में न केवल विरह की पीड़ा है, बल्कि भक्ति और प्रेम की गहराई भी छिपी है। रुक्मिणीजी का यह भाव सिखाता है कि सच्चा प्रेम कभी दूरियों से कम नहीं होता, बल्कि भक्ति और समर्पण के आँसू उसे और गहरा बना देते हैं। यह पंक्ति हमें अपने आराध्य के प्रति सच्चे प्रेम और विश्वास की प्रेरणा देती है।

रोये रोये पाती रुक्मणि बिटिया लिख रही जी
ऐजी जाके नैनन हाँजी जाके नैनन, बरसत नीर
व्याह रचावे भैया शिशुपाल से जी
ऐजी मेरो प्यार दुश्मन है गयो जी,
रोये रोये पाती रुक्मणि बिटिया लिख रही जी
आएके खबरिया जल्दी मेरी लीजियो जी
ऐजी कोई नन्द सुवन यदुवीर
रोये रोये पाती रुक्मणि बिटिया लिख रही जी
जो नही आओ जल्दी मेरे साँवरे जी
ऐजी अपने प्राणन को करूंगी में अखीर
रोये रोये पाती रुक्मणि बिटिया लिख रही जी
भाव से भक्ति करने की विधि
- दिन और समय: शुक्रवार या पूर्णिमा का दिन सर्वोत्तम है।
- स्थान: भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी की मूर्ति या चित्र के सामने दीपक जलाएँ।
- सामग्री: फूल, तुलसीदल, मिश्री, मक्खन, और शुद्ध जल रखें।
- प्रारंभ: “जय श्रीकृष्ण-रुक्मिणी” बोलकर मन को शांत करें।
- भजन या जप: “रोये रोये पाती रुक्मणि बिटिया लिख रही जी” भजन को मधुर स्वर में गाएँ।
- भावना रखें: यह अनुभव करें कि आप स्वयं रुक्मिणीजी की उस भक्ति में डूबे हैं, जो अपने आराध्य के प्रेम में पूरी तरह समर्पित हैं।
- समापन: अंत में प्रार्थना करें — “हे रुक्मिणी-मोहन, मेरे जीवन में भी ऐसा ही सच्चा प्रेम और समर्पण भर दो।”
इस भक्ति से मिलने वाले लाभ
- हृदय की शुद्धि: प्रेम और समर्पण से मन निर्मल होता है।
- सच्चे प्रेम की अनुभूति: रुक्मिणीजी के भाव से सच्चे प्रेम का महत्व समझ आता है।
- भक्ति में स्थिरता: ईश्वर के प्रति विश्वास और लगाव गहराता है।
- आंतरिक शांति: प्रेम और भक्ति के आँसू हृदय को हल्का और शांत करते हैं।
- ईश्वरीय कृपा: श्रीकृष्ण-रुक्मिणी की कृपा से जीवन में आनंद और सौभाग्य आता है।
निष्कर्ष
“रोये रोये पाती रुक्मणि बिटिया लिख रही जी” — यह केवल एक पंक्ति नहीं, बल्कि प्रेम और भक्ति का शाश्वत प्रतीक है। इसमें उस सच्चे भाव की झलक मिलती है जो आत्मा को ईश्वर के प्रति समर्पण की ओर ले जाती है। जब हम इस भाव से श्रीकृष्ण और रुक्मिणीजी का स्मरण करते हैं, तो हमारे भीतर का हर दुःख प्रेम में बदल जाता है। यह भक्ति हमें यह सिखाती है कि जो प्रेम आँसुओं में भी भक्ति का स्वर बन जाए — वही ईश्वर तक पहुँचने का सबसे सच्चा मार्ग है।

