सीता करें विलाप, जन्म बेटी को मत दीजो
“सीता करें विलाप, जन्म बेटी को मत दीजो” — यह पंक्ति माता सीता के जीवन की उन पीड़ाओं को उजागर करती है, जिन्हें उन्होंने अपनी पवित्रता, त्याग और मर्यादा के बावजूद सहा। एक स्त्री के रूप में सीता ने समाज की कठोरता का भार उठाया, और उनका जीवन यह संदेश देता है कि बेटियाँ चाहे कितनी भी गुणी हों, फिर भी उन्हें अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। यह पंक्ति दर्द भी है, चेतावनी भी, और साथ ही समाज को जागरूक करने का प्रयास भी। यह हमें याद दिलाती है कि बेटी का जन्म भार नहीं, बल्कि सौभाग्य है—और हमें उनके सम्मान और सुरक्षा के लिए संवेदनशील होना चाहिए।

सीता करें विलाप जन्म बेटी को मत दीजो,
हे मेरे दीनानाथ जन्म बेटी को मत दीजो,
सीता करें विलाप जन्म बेटी को मत दीजो…..
पहला हित बाबुल से लगाया,
जाने स्वयंवर दियो रचाए जन्म बेटी को मत दीजो,
सीता करें विलाप जन्म बेटी को मत दीजो…..
दूजा हित मैया से लगाया,
जाने भेज दई ससुराल जन्म बेटी को मत दीजो,
सीता करें विलाप जन्म बेटी को मत दीजो…..
तीजा हित ससुल से लगाया,
जिसने मांग लिए वरदान जन्म बेटी को मत दीजो,
सीता करें विलाप जन्म बेटी को मत दीजो…..
चौथा हित ससुरा से लगाया,
जाने भेज दई बनवास जन्म बेटी को मत दीजो,
सीता करें विलाप जन्म बेटी को मत दीजो…..
पांचवा हित मैंने पति से लगाया,
जाने घर से दई निकाल जन्म बेटी को मत दीजो,
सीता करें विलाप जन्म बेटी को मत दीजो…..
छठवां हित बाल्मीकि से लगाया,
दीया सारा ज्ञान बताएं जन्म बेटी को मत दीजो,
सीता करें विलाप जन्म बेटी को मत दीजो…..
सातवां हित बेटों से लगाया,
बेटो ने दी पहचान जन्म बेटी को मत दीजो,
सीता करें विलाप जन्म बेटी को मत दीजो…..
आठवां हित धरती माता से लगाया,
जाने गोद में लई बैठाए जन्म बेटी को मत दीजो
सीता करें विलाप जन्म बेटी को मत दीजो…..
हे मेरे भाग्य विधाता सुनियो,
नारी को दीजों सम्मान जन्म बेटी को जब दीजो,
सीता करें विलाप जन्म बेटी को मत दीजो…..
विधि
- समय: सोमवार, गुरुवार या कोई भी शांत शाम।
- स्थान: माता सीता या राम–सीता की तस्वीर के सामने दीपक जलाएँ।
- प्रारंभ: शांत मन से तीन गहरी साँसें लें।
- जप/भाव:
श्रद्धा से कहें—
“सीता करें विलाप, जन्म बेटी को मत दीजो…” - प्रार्थना:
- माँ सीता की शक्ति, धैर्य और आशीर्वाद के लिए निवेदन करें।
- समाज में बेटियों के सम्मान और सुरक्षा के लिए प्रार्थना करें।
- समापन:
माँ से कहें— “हे जनकनंदिनी, हमें आपकी करुणा और न्याय का मार्ग समझाएँ।”
इस भावना से मिलने वाले लाभ
- स्त्री के सम्मान और महत्व को समझने की प्रेरणा मिलती है।
- मन में करुणा, संवेदनशीलता और जागरूकता बढ़ती है।
- सीता माता की सहनशक्ति और धैर्य का गुण आत्मसात होता है।
- परिवार में प्रेम, सुरक्षा और समानता का भाव बढ़ता है।
- बेटियों को सम्मान देने की सोच मजबूत होती है।
निष्कर्ष
“सीता करें विलाप, जन्म बेटी को मत दीजो” — यह केवल एक पंक्ति नहीं, बल्कि समाज के लिए दर्पण है। यह हमें याद दिलाती है कि पीड़ा किसी देवी के लिए भी अलग नहीं थी, इसलिए हमें अपनी बेटियों को प्रेम, सुरक्षा और सम्मान देना हमारा कर्तव्य है। यह भाव हमें संवेदनशील बनाता है और सही दिशा में सोचने को प्रेरित करता है। सच में, जहाँ बेटियों को मान मिलता है, वहीँ घर, समाज और भविष्य उज्ज्वल होता है।

