वृंदा-विष्णु लांवा फेरे | भक्ति, समर्पण और पवित्रता के दिव्य मिलन का प्रतीक
“वृंदा-विष्णु लांवा फेरे” यह भाव भगवान विष्णु और देवी तुलसी (वृंदा) के दिव्य विवाह का उत्सव है, जिसे तुलसी विवाह के नाम से जाना जाता है। यह पर्व हर साल कार्तिक मास में मनाया जाता है और इसे भक्ति तथा वैवाहिक पवित्रता का प्रतीक माना जाता है। तुलसी माता भक्ति, शुद्धता और प्रेम की मूर्ति हैं, जबकि भगवान विष्णु संरक्षण और करुणा के प्रतीक हैं। जब दोनों का संगम होता है, तो वह ब्रह्मांड में संतुलन और शुभता का संदेश देता है। यह विवाह केवल देवताओं का नहीं, बल्कि हर भक्त के हृदय में बसे विश्वास और प्रेम का मिलन भी है।

इक सांवरा ते इक गोरी। बड़ी सुन्दर सोहनी जोडी॥
चर्चे इस जोड़ी दे चार चुफेरे ने – होंण लगे….
वृंदा वरमाला पाई। वृंदा वरयो हरिराई॥
बरसे रंग रस कलियां फुल बथेरे ने – होंण लगे…..
मंगल धुन वेदां गाई। हर वैदिक रीत निभाई॥
वर वधु ने लए वेदी दे फेरे ने – होंण लगे……
होई शगणां नाल विदाई। डोली बैकुंठ विच आई॥
गीत ‘‘मधुप’’ दे गूंजे चार चुफेरे ने – होंण लगे….. ।
वृंदा-विष्णु विवाह करने की पूजा विधि
- समय: कार्तिक शुक्ल एकादशी (तुलसी विवाह का दिन)।
- स्थान: घर के आँगन या मंदिर में तुलसी चौरा के पास।
- सामग्री: तुलसी का पौधा, शालिग्राम या भगवान विष्णु की प्रतिमा, हल्दी, चावल, फूल, दीपक, मिठाई, और पानी।
- पूजन क्रम:
- सबसे पहले तुलसी माता और भगवान विष्णु की मूर्ति को साफ करें और पीले वस्त्र पहनाएँ।
- दोनों के सामने दीपक जलाकर मंगल गीत गाएँ – “वृंदा-विष्णु लांवा फेरे”।
- हल्दी, चावल, पुष्प और अक्षत अर्पित करें।
- तुलसी माता को मेहंदी, लाल चुनरिया और मंगल वस्त्र अर्पित करें।
- अंत में आरती करें और प्रसाद बाँटें।
- भाव: इस पूजन में हृदय से यह भावना रखें कि जैसे तुलसी और विष्णु का संगम हुआ है, वैसे ही आपके जीवन में भी प्रेम, पवित्रता और सामंजस्य बना रहे।
तुलसी विवाह करने के शुभ फल
- घर-परिवार में शांति, सौभाग्य और समृद्धि आती है।
- विवाह योग्य कन्याओं के विवाह में आने वाली बाधाएँ दूर होती हैं।
- पति-पत्नी के संबंधों में प्रेम और स्थिरता बनी रहती है।
- मन की पवित्रता और भक्ति भावना का विकास होता है।
- तुलसी विवाह करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है, जो हर कार्य में सफलता प्रदान करती है।
निष्कर्ष
“वृंदा-विष्णु लांवा फेरे” केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि प्रेम, निष्ठा और भक्ति का संदेश है। यह हमें सिखाता है कि सच्चा संबंध वही है जो समर्पण, सम्मान और विश्वास पर आधारित हो। तुलसी माता और भगवान विष्णु का यह मिलन हर भक्त के जीवन में शुभता और आध्यात्मिक शक्ति का संचार करता है। जब हम इस उत्सव को श्रद्धा से मनाते हैं, तो घर में सकारात्मकता, समृद्धि और ईश्वर की कृपा स्वतः बढ़ती है।

